सभी यात्रियों से स्लीपर क्लास का किराया और 50 रुपए स्पेशल ट्रेन का चार्ज वसूल किया जा रहा है। मुंबई से गोरखपुर जाने के लिए प्रति यात्री 740 रुपए वसूले जा रहे हैं। बड़ा सवाल यह कि 42 दिन से खाली बैठे मजदूर किराया कहां से चुकाएंगे।
सामाजिक संस्थाओं और सरकार के दिए भोजन से पेट भरने वाले मजदूरों के लिए यह रकम पहाड़ जैसी है। मजूदरों के सवाल का जवाब देने से अधिकारी कतरा रहे हैं।
रेलवे की गाइड लाइन के अनुसार मजदूरों के जाने का खर्च राज्य सरकार को वहन करना है।
रेलवे का कहना है कि राज्य सरकार खुद किराया दे या मजदूरों से लेकर दे, इससे हमें कोई सरोकार नहीं है। विदित हो कि राज्य सरकार की मांग पर मजदूरों को उनके गांव भेजने के लिए रेलवे ट्रेन मुहैया करा रही है।
हमारी पीड़ा का अहसास नहीं
दिहाड़ी कामगार संतोष ने कहा, हमारी पीड़ा का अहसास किसी को नहीं है। 42 दिन से कोई काम नहीं है। राशन खत्म है। घंटों लाइन लगाने पर खिचड़ी मिलती है, जिससे पेट भरते हैं।
ऐसे में हम किराया कहां से चुकाएंगे। बैठे-ठाले कोई हमें उधार भी नहीं देता। घरेलू काम करनेवाली विमला ने कहा, हमारे परिवार में चार लोग हैं। हम हमेश चालू (जनरल) डिब्बे में सफर करते हैं। ऐसे में हम स्लीपर का किराया कहां से लाएंगे।
राज्य वहन करे खर्च
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने ने कहा कि जो लोग किराया देने में सक्षम नहीं हैं, ऐसे मजदूरों का किराया उन राज्यों को वहन करना चाहिए, जहां के वे मूल निवासी हैं। जिस राज्य से मजदूर जा रहे हैं, वह संबंधित राज्य को सूचित कर दे कि ट्रेन से कितने मजदूर भेजे हैं। इसके बाद संबंधित राज्य रेलवे को किराया चुका दे।
मदद करनी चाहिए
भाजपा सांसद मनोज कोटक ने कहा कि मजदूर राज्य के विकास में योगदान देते हैं। संकट की घड़ी में राज्य सरकार को उनकी मदद करनी चाहिए। जिस राज्य से मजदूर जा रहे हैं, यह जिम्मेदारी उसे उठानी चाहिए।
अच्छा है रेल मंत्री का सुझाव
महाराष्ट्र के परिवहन मंत्री अनिल परब ने कहा कि हम मजदूरों के जाने, रहने और खाने की व्यवस्था कर रहे हैं। रास्ते का भोजन भी दे रहे हैं। रेल मंत्री का सुझाव अच्छा है। हम इस सुझाव पर काम करने के लिए तैयार हैं।
महाराष्ट्र सरकार से चर्चा करेंगे
उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री अशोक कटारिया ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार से इस बारे में पर चर्चा करेंगे। मैं समझता हूं कि संकट के समय में मजदूरों से किराया लेना उचित नहीं है। हम अपने राज्य के मजदूरों के लिए जो भी बन सकेगा, करेंगे।