मुंबई

सरकार को क्यों नहीं दिखते हमारे जख्म

26/11 हमले का शिकार बने मछुआरों के परिजन भोग रहे सरकारी उपेक्षा

मुंबईNov 26, 2018 / 11:50 pm

arun Kumar

Why do not the government see our wounds

धवल पारिख @ मुंबई/नवसारी. 26 नवंबर 2008 को मुंबई आतंकी हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों ने आर्थिक नगरी को दहलाने से ठीक पहले नवसारी के तीन मछुआरों को गोली का शिकार बनाया। इन मछुआरों के परिजनों के आंसू आज तक नहीं सूखे हैं। वादे और इंतजार में दस साल बीत गए। पाकिस्तान से समुद्री मार्ग से आए आतंकियों ने पोरबंदर की कुबेर बोट पर कब्जे से पहले नटू नानू राठौड़, मुकेश अंबू राठौड़ और बलवंत प्रभु टंडेल पर गोलियां बरसाई थीं। इन आतंकियों में अजमल भी शुमार था। दस्तावेजों में मछुआरों की हत्या आतंकियों की गोलियो से दर्ज है मगर गुजरात सरकार ने इसे आज तक नहीं माना। हालांकि उस दौरान परिजनों को 50 हजार रुपए की मदद थी। साथ ही शर्त भी रख दी थी कि यदि वे जिंदा लौटे तो यह राशि सरकार को वापस कर दी जाएगी। सरकार ने मछुआरों की मृत्यु का प्रमाणपत्र भी कोर्ट के आदेा पर दिया।
नहीं मिली सहायता राशि

दस साल बाद भी इनका सहायता नहीं मिली। नटू राठौड़ की विधवा धर्मिष्ठा साड़ी पर कढ़ाई और लोगों के घरों में काम कर बच्चों का पेट पाल रही है। मुकेश राठौड़ की दादी लक्ष्मी बताती हैं कि सरकार ने कभी सुध नहीं ली। बलवंत की विधवा दमयंत्री टंडेल ने बताया कि अब तो सरकार से सहायता मांगने में भी शर्म महसूस होती है। आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला।
मौत पर भी कर दिया भेदभाव

ब लवंत के बेटे उमेश टंडेल का कहना है कि पिता का शव नहीं मिला, इसलिए सरकार कुछ देने को राजी नहीं है। आतंकी कब्जा करने के बाद बोट के कैप्टन अमरसिंह को मुंबई तक ल गए। उन्हें भी वहां पहुंचने के बाद मार दिया था। उनका शव बरामद हुआ था। सरकार ने उनके बेटे को सरकारी नौकरी व सहायता दोनों दी, लेकिन यहां हमारी गुहार सुनने वाला कोई नहीं है।

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