‘राम मर्यादा की ऊंचाई तो श्रीकृष्ण प्रेम की गहराई हैं’
मुंगेली. पुराना बस स्टैण्ड सामुदायिक भवन में स्व. अरुण कुमार दीवान के वार्षिक श्राद्ध के अवसर पर आयोजित श्रीमद भागवत महापुराण ज्ञानयज्ञ में कथावाचक आचार्य पं. गजानंद द्विवेदी ने कहा कि रामजी महल में जन्म लिये तो खूब रोये, लेकिन कृष्ण रोये नहीं।
उन्होंने कहा कि जब आपके जीवन में भोग प्रसाधन है तो फूलो मत ये रामजी ने बताया और जब आपके जीवन में अभाव है, दु:ख है तो तड़पो मत, ये कृष्ण ने बताया। कृष्ण कारागार में जन्म लेकर भी मुस्कुराते हंै। रामजी मर्यादा की ऊंचाई हैं तो भगवान कृष्ण प्रेम की अटूट गहराई। ऊंचाई में पहुंचने पर भी जो मर्यादा पालन करें, वह राम की शिक्षा है और दु:ख में रहकर भी सबसे प्रेम व्यवहार न भूले वह कृष्ण की शिक्षा है। हृदय में कृष्ण हों तो दु:ख आकर भी चला जायेगा। जो सबको यश देतीं हैं, वह यशोदा हंै, जिनके घर भगवान आते हैं। जो सभी को आनंद बांटे वह बाबा नंद हंै, जिसके आंगन में कृष्ण बाललीला करते है। गोकुल में ढूंढ़ा उसे मथुरा में पाया है। भगवान गोकुल से नहीं इस देह नगर रूपी मथुरा से प्रवेश करते हैं और गोकुल रूपी मन में वास करते है।
उन्होंने कहा कि मथुरा रूपी देह नगर में बहुत सारे राक्षस हैं। इसलिए भगवान यहां रहना नहीं चाहते, जब तक काम क्रोध आदि का नाश न हो, लीला होगी कैसे। जीवन के विकारों से मुक्त होकर निष्पाप बनेंगे तो इसी जन्म में हृदय रूपी वृंदावन में प्रभु की नित्य लीला होगी और देह दानव का विनाश करके भगवान इस देह को विदेह अर्थात द्वारिकापुरी बना लेंगे। साधारण मानव देह नगर मथुरा में रहते हैं। जहां अधासुर बकासुर, कंस, कालिया और पूतना जैसे विकार भरे हैं। मगर संत महात्मा का जीवन विदेह नगर है, जहां कोई विकार नहीं, कोई संग्रह नहीं और जहां विकार नहीं, वहां सतत कृष्ण रस है। वहां का आनंद अमिट है। इसलिए हमारे देश में भोगी की नहीं योगी की पूजा है।