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Ramadan 2023: ये ‘रमजान नहीं रमदान कहो’ का क्या मसला है? रमजान कहने से क्या गुनाह मिलता है?

locationमुजफ्फरनगरPublished: Mar 24, 2023 09:21:13 am

Submitted by:

Rizwan Pundeer

Ramadan 2023: रमजान का महीना आज से शुरू हो गया है। इसके साथ ही बीते कुछ सालों की तरह एक बार फिर रमजान या रमदान की बहस भी शुरू हो गई है।

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रमजान शुरू होने के साथ ही इस महीने की मुबारकबाद देते हुए कुछ मैसेज मोबाइल पर आए। इसमें एक मैसेज का जवाब देते हुए रमजान मुबारक लिखकर भेजा तो सामने से रिप्लाई आया- भाई, रमजान नहीं, रमदान। रमदान कहना ठीक नहीं, गुनाह मिलता है।
दरअसल इस तरह के मैसेज बीते कुछ सालों में रमजान का महीना शुरू होने के साथ ही होने लगती हैं। मुसलमानों के लिए पवित्र माने जाने वाले इस महीने के नाम को लेकर ये कन्फयूजन क्या है, क्या सचमुच इसके नाम से गुनाह यानी पाप लगने जैसा कुछ है?

रमजान और रमदान में फर्क क्या?
रमजान और रमदान का ये मामला फारसी और अरबी की वर्णमाला की वजह से है। रमजान फारसी का शब्द है जो उर्दू में शामिल हो गया। रमदान अरबी का लफ्ज है।

दरअसल रमजान लिखने में अरबी में ज्वाद अक्षर का इस्तेमाल होता है। ज्वाद बोलने में ज (Z) की बजाय द (D) की आवाज देता है। ऐसे में अरबी बोलने वाले लोग रमदान कहते हैं। भारत में फारसी का प्रभाव ज्यादा रहा, ऐसे में भारत में रमजान कहते हैं। अरब दुनिया में रमदान है।
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रमजान और रमदान में फर्क क्या?
सहारनपुर के गंगोह के रहने वाले मौलवी आशु कहते हैं कि बीते कुछ सालों से रमदान बोलने वालों की संख्या बढ़ी है। इसकी वजह काफी संख्या में भारत के लोगों का अरब देशों में जाना और इंटरनेट की वजह से भाषा का दुनियाभर में आसानी से पहुंचना हो सकता है। वो कहते हैं कि आज यूट्यूब पर एक देश का आलिम दूसरे देशों में सुना जाता है। ऐसे में लोग सुनते हैं कि ये रमदान क्यों बोल रहा है या रमजान क्यों बोल रहा है।
मौलवी आशु रमजान या रमदान कहने में गुनाह मिलने जैसी बात को बचपना कहते हैं। उनका कहना है कि गुनाह में शरीक होने की सूरत तब तो हो सकती है जब कोई जानबूझकर रोजे, नमाज की मजाक उड़ाए। जुबान की वजह से बोलचाल में आए फर्क से गुनाह या सवाब का कोई ताल्लुक नहीं है।

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निष्कर्ष क्या?
इससे साफ है कि रमजान और रमादान में ना कोई शब्द गलत है और ना कोई ज्यादा सही। दोनों ही शब्द ठीक हैं, ये पूरा मामला उच्चारण के फर्क का है। ऐसे में इसे धर्म की बहस के बजाय भाषा की बहस तक ही सीमित रखा जाए तो बेहतर है।
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