घाटे का सौदा बन गई शाही लीची
बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह कहते हैं कि इस वर्ष शाही लीची का उत्पादन घाटे का सौदा साबित हुई है। देशभर में लगे लॉकडाउन से मुंबई, दिल्ली और अन्य शहरों के बड़े बाजार नही मिलने से किसानों की लागत भी नहीं निकल पाई। लीची की आधी कीमत भी नहीं मिल सकी है। इससे उत्पादन और परिवहन का खर्चा भी नहीं निकल सका। बिहार से प्रतिदिन 68 टन शाही लीची मुंबई भेजी जाती थी। 12 दिन ढुलाई चलती थी। लॉकडाउन ने इसके उत्पादकों को इतना मायूस किया कि इस बार एक टन लीची भी मुंबई नहीं जा सकी है। इसी तरह गुजरात में भी पर्याप्त लीची नहीं पहुंच सकी है।
कंपनी पहुंचा रही घर-घर लीची
बिहार सरकार की पहल के चलते बागवानी मिशन के तहत मुरौल कृषि उत्पादक एवं वितरक कंपनी घर-घर लीची पहुंचा रही है। डाकघर के सहयोग से यह कंपनी लीची की होम डिलीवरी करा रही है। कंपनी के सीईओ जयप्रकाश राय ने बताया कि बाग से लेकर घर तक लीची पहुंचाई जा रही है। इससे किसानों के पास सीधे पैसा जा रहा है। पैकिंग भी अच्छी है। लोगों को ताजा लीची मिल रही है। लीची उत्पादक किसानों की मानें तो पिछले साल शाही लीची ने बंपर कारोबार किया था। वहीं, एईएस के चलते चाइना लीची को बाजार नहीं मिलने से नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार परिस्थितियां थोड़ी उलट हैं। शाही लीची को बाजार तो मिला, लेकिन लॉकडाउन से कीमत नही मिल पाई।
चाइना लीची से हैं उम्मीदें
शाही लीची जहां बड़े बाजार के अभाव में गोता लगा गई, वहीं अब लीची उत्पादकों की निगाहें चाइना लीची पर टिकी हुई हैं। उत्पादकों को उम्मीद है कि जो घाटा शाही लीची के पर्याप्त दाम नहीं मिलने से हुआ है, वह शायद चाइना लीची की बिक्री से पूरा हो जाए। लॉक डाउन में बाजार खुलने और परिवहन चालू होने से उत्पादकों की उम्मीदों को बल मिला है। चाइना लीची की तुड़ाई १० जून से शुरू होगी। इसकी भी इस बार बम्पर पैदावार हुई है। हालांकि अचानक मौसम बदलने से किसान लीची की पैदावार के नुकसान को लेकर चिंतित हैं, किन्तु उम्मीद यही है कि इसकी पूर्ति बिक्री से हो सकेगी।
मिल चुका जीआई टैग
गौरतलब है कि बिहार की शाही लीची को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल हुई है। बौद्धिक संपदा कानून के तहत शाही लीची को जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफिकेशन) मिल हुआ है। इस उपलब्धि के बाद शाही लीची एक ब्रांड के रूप में बन गई है। लीची की प्रजातियों में ऐसे तो चायना, लौगिया, कसैलिया, कलकतिया सहित कई प्रजातियां है परंतु शाही लीची को श्रेष्ठ माना जाता है। यह काफी रसीली होती है। गोलाकार होने के साथ इसमें बीज छोटा होता है। स्वाद में काफी मीठी होती है। इसमें खास सुगंध होता है।
40 प्रतिशत लीची बिहार से
बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार बिहार में 32 से 34 हजार हेक्टेयर में लीची का उत्पादन होता है। भारत में पैदा होने वाली लीची का 40 फीसदी उत्पादन बिहार में ही होता है। कुल 300 मिट्रिक टन से ज्यादा लीची का उत्पादन होता है। वहीं बिहार के कुल लीची उत्पादन में से 70 फीसदी उत्पादन मुजफ्फरपुर में होता है। मुजफ्फरपुर में 18 हजार हेक्टेयर में लीची की पैदावार होती है। जिसमें से शाही लीची का उत्पादन सबसे अधिक क्षेत्र में करीब 12 हजार हेक्टेयर में होता है।