टिस की रिपोर्ट सार्वजनिक करने की मांग
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार के शेल्टर होम्स, बालिका और बाल गृहों के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) की ओर से की गई ऑडिट सर्वे रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के निर्देश दिए हैं। गौरतलब है कि इसे सार्वजनिक करने की सियासी मांग भी जोर पकड़ रही थी। इसमें राज्य भर के कम से कम पंद्रह होम्स ऐसे हैं, जहां यातना और यौन शोषण का वीभत्स रूप सामने आया। मुजफ्फरपुर में ही स्वाधार गृह और नारी निकेतन सहित शॉर्ट स्टे होम में भी गड़बड़ियों की शिकायतें सर्वे रिपोर्ट में शामिल हैं। इनके संचालन की जिम्मेदारी भी ब्रजेश ठाकुर के एनजीओ के हवाले रही है।
बरामद हुई थी आपत्तिजनक सामग्री
स्वाधार गृह में छापेमारी के दौरान पिछले दिनों आपत्तिजनक सामान और शराब की बोतलें बरामद हुई थीं। शॉर्ट स्टे होम पटना में एक लड़की ने गत वर्ष यातनाओं और बदहाली से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी। इसी तरह बाल गृह, मुंगेरनारी गुंजन संस्थान, मधुबनी, ऑब्जर्वेशन होम, कैमूर और मधुबनी, ज्ञान भारती कैमूर में गड़बड़ियों की दास्तान रिपोर्ट में दर्ज है। बालगृह, भागलपुर में शिकायत पेटिका जब खोली गई, तो उसमें बच्चों के शिकायत पत्र भरे पड़े थे। अमूमन पिटाई, खाना नहीं दिए जाने और शारीरीक शोषण की शिकायतें बच्चों ने कर रखी हैं।
बिखरी पड़ी हैं यौन शोषण की कहानियां
शॉर्ट स्टे होम कैमूर,गया,मधुबनी, वैशाली, बेगूसराय और मधेपुरा में भी यही आलम है। सभी जगह महिलाओं और बच्चों के शोषण की कहानियां हैं। खाना बनवाने से लेकर अधिकारी इनसे कपड़ा धुलवाने और दूसरे काम करवाने के आदी हैं। बच्चों और महिलाओं के यौन शोषण की बातें उजागर हुई हैं। पटना के आसरा गृह की सच्चाई सामने आने के बाद अब यह भी कम हैरतअंगेज नहीं कि समाज कल्याण विभाग के उस अधिकारी को ही इसके संचालन का जिम्मा दे दिया गया, जो संवासिनों के भागने की सूचना के बाद संस्थान का निरीक्षण करने पहुंचा और संवासिनों की बीमारी और वहां की बदइंतजामी पर मौन साधे रहा।