तीन दोस्तों ने किया मुश्किलों भरा सफर
महाराष्ट्र के अहमदनगर में तीनों फैक्ट्री में काम करते थे। बंदी के बाद काम बचा नहीं। खाने को वाले पडऩे लगे। घर आने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। मगर घर आएं भी तो कैसे। इतना लंबा सफर कैसे तय करते। कोई साधन नहीं था। बमुश्किल जमा पैसों को जोड़कर तीनों ने दो नई साइकिलें खऱीदीं और 20 अप्रैल को नवादा के दुर्गम सफर पर निकल पड़े। एमपी,यूपी, झारखंड होते तीनों बड़ी कठिनाइयों को पार करते हुए आखिर पहुंच ही गए।
नवादा ट्रा़ंजिट क्वारंटाइन सेंटर ही पहुंचे
दानी पंडित, श्यामसुंदर और भूषण ठाकुर अलग अलग इलाकों के हैं। मगर एक साथ काम करते थे। दानी पंडित विकलांग हैं । उसका एक हाथ फैक्ट्री में कट चुका है। उसने बताया कि हमने रास्ते में अनेक परेशानियां झेलीं। वारिसलीगंज के श्यामसुंदर ने बताया ,कई बार हिम्मत जवाब देने लगी पर हमारे और साथियों ने साहस बढ़ाया। अहमदनगर से चले तो रास्ते में बिहार के और भी लोग जुड़ गए। सभी अपने क्षेत्र के लिए चले गए।
सीधा जांच कराने पहुंचे और क्वारंटाइन हुए
भूषण ठाकुर ने हौसले बढ़ाए। वह रास्ते में गाने गाकर उत्साह बढ़ाते रहा। नवादा आकर सबसे पहले आईटीआई ट्रांजिट क्वारंटाइन सेंटर आकर जांच करवाई। सेंटर पर मौजूद बीडीओ ने सभी को खाना खिलाया और सभी के ठहरने के इंतजाम किए। केन्द्र सरकार की पहल पर प्रवासी मजदूरों और छात्रों को लेकर अब कई ट्रेनें बिहार आ रही हैं और हजारों लौट भी गए हैं। लेकिन अब भी लाचार मजदूरों का पैदल या साइकिलों से घर लौटने का सिलसिला जारी है।