इनके धरने के दारौन कई सरकारें आईं और चली गईं। ऐसा नहीं की उनकी सुनवाई नहीं हुई लेकिन ये बस आश्वासन ही होकर रह गए।
विजय सिंह ने सन् 1982 में जय भारत किसान इंटर काॅलेज चौसाना में पढ़ाना शुरू किया था। गांव में ही एक भूखे बच्चे की हालत देखकर उनकी राह बदल गई।
मास्टर जी बताते हैं कि एक दिन वो कहीं से आ रहे थे। रास्ते में उन्होंने बच्चे को मां से कहते सुना- मां, कहीं से आटा ले आ। शाम को तू रोटी बना लेना। बहुत भूख लगी है। ये शब्द सुनकर मैं परेशान हो गया। इसके बाद मैंने मास्टर की नौकरी से इस्तीफा दे दिया और अपने गांव की सार्वजनिक भूमि पर शोध किया। इसमें पाया गया कि 4575 बीघा जमीन सार्वजनिक थी, जिसमें 4 हजार बीघा पर भू-माफियाओं का अवैध कब्जा है। इसकी अनुमानित कीमत करीब 350 करोड़ रुपये है। मैंने इसे मुक्त कराने के लिए दृढ़ संकल्प ले लिया
मास्टर का कहना है कि महात्मा गांधी, विनोबा भावे और जयप्रकाश को आदर्श मानने वाले मास्टर विजय सिंह को धरना देते हुए 22वां वर्ष चल रहा है किंतु अभी तक उनकी न्यायिक आस पहले जैसी ही है।
जांच में मास्टर विजय सिंह के आरोप भी सही पाए गए और 300 बीघा भूमि प्रशासन द्वारा भूमाफिया के अवैध कब्जे से मुक्त भी कराई गई। 3200 बीघा भूमि पर जांच में घोटाला साबित हो चुका है तथा 136 मुकदमे भी राजस्व अभिलेखों में हेराफेरी के दर्ज हुए।