सूत्रों के अनुसार प्रदेश में बढ़ रहे बलात्कार अथवा यौन शोषण के मामलों में कम उम्र की बच्चियां भी शिकार हो रही हैं। छह माह यानी करीब 180 दिन में बारह बरस से कम उम्र की 130 बालिकाएं हवस का शिकार हुईं। बदलते मानसिक विकार ने दो-तीन साल तक की बच्चियां नहीं छोड़ी गई। जयपुर, जोधपुर ही नहीं कई बड़े जिलों में ऐसी वारदातों की संख्या दर्जन भर तक की रहीं। करीब आधा दर्जन की हत्या कर दी गई। जबकि सात की तबीयत बिगडऩे से मौत हो गई। हाल ही मालाखेड़ा, बहरोड़ और डूंगरपुर में भी इसी तरह के वाकये सामने आए।
अपने ही ज्यादा सूत्र बताते हैं कि इनमें अस्सी फीसदी में तो आरोपी हाथोंहाथ धरे गए। अधिकांश अपने ही नाते-रिश्तेदार अथवा पड़ोसी निकले। करीब तीन-चार माह पूर्व नागौर जिले में भतीजी के साथ दुष्कृत्य के बाद चाचा ने आत्महत्या कर ली। जबकि पादूकलां में मुंहबोले मामा ने सात साल की भांजी को हवस का शिकार बनाकर मौत के घाट उतार दिया। 37 मामलों में आरोपी पीडि़ता का रिश्तेदार अथवा परिवार का ही निकला। 21 वारदात पड़ोसी, परिवार के मित्र अथवा जानकार ने की। केवल दस फीसदी मामलों में ही आरोपी अनजान निकले।
305 मामलों की जांच बकाया नागौर में हुई वारदात के बाद डीएनए सैम्पल की जांच जयपुर ही होती थी। गत दिसम्बर से जोधपुर में भी इसे शुरू किया गया। नागौर जिले के कुल 305 मामलों की रिपोर्ट बकाया चल रही है। इनमें पोक्सो के 109 व बलात्कार के 196 मामले हैं। दिसम्बर से यह सैम्पल जोधपुर लैब भेजे जा रहे हैं, जबकि पिछले साल के भी काफी मामले जयपुर में बकाया चल रहे हैं।
क्विक रेस्पांस टीम फिर भी... सूत्र बताते हैं कि जयपुर की विधि विज्ञान प्रयोशाला कम उम्र की बच्चियों के साथ हुई ज्यादती की जांच के लिए बनाई गई है। बावजूद इसके मामलों के अम्बार के चलते रिपोर्ट जल्द देना संभव नहीं हो पा रहा। कोर्ट अथवा उच्च स्तर पर मिले आदेश या फिर वारदात की भयावहता को देखते हुए रिपोर्ट दो-तीन दिन में दे दी जाती है अन्यथा रफ्तार धीमी हो जाती है। जयपुर के साथ जोधपुर में भी सैम्पल रिपोर्ट मिलने की गति धीमी है।
वारदात नहीं बढ़ी, सैम्पल दोगुने हो गए... सूत्र बताते हैं कि दिसम्बर से पहले जयपुर भेजने वाले सैम्पलों की संख्या हर माह 30-35 थी, जो अब सत्तर तक पहुंच गई है। ऐसा नहीं है कि बलात्कार/पोक्सो एक्ट के तहत मामलों में वृद्धि हुई है, लेकिन हकीकत कुछ और है। बताया जाता है कि जयपुर डीएनए जांच के लिए सैम्पल जाता था। ज्यादा दूरी, आलस, सैम्पल टूटने-फूटने का डर आदि था तो करीब चालीस-पचास फीसदी सामान्य माने जाने वाले मामलों में अन्य जांचें जोधपुर में ही करवाकर काम चलाया जाता था। अब जोधपुर में ही डीएनए की जांच शुरू हो गई है, जबसे भेजे जाने वाले सैम्पल दोगुने हो गए।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पोक्सो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जल्द से जल्द एफएसएल की डीएनए रिपोर्ट देने के आदेश दे रखे हैं। इसकी वजह यह भी है कि रिपोर्ट में देरी से पीडि़ता को न्याय मिलने में विलम्ब होता है। आरोपियों को मिलने वाली सजा अटक जाती है।राज्य सरकार ने भी इसके लिए दबाव बना रखा है। शून्य से बारह साल की बालिकाओं के मामले में तो रिपोर्ट फिर भी जल्द मिल जाती है, लेकिन इससे अधिक उम्र के अधिकांश मामले धीमी गति से नतीजे तक पहुंचते हैं।
इनका कहना कम उम्र की बालिकाएं शिकार हो रही है जो वाकई चिंताजनक है। पोक्सो/बलात्कार मामले में डीएनए सैम्पल की लम्बित रिपोर्ट जल्द से जल्द देने के लिए संबंधित को लिखा जा रहा है। अदालत में चल रहा मामला काफी कुछ इस रिपोर्ट पर निर्भर करता है।
-राममूर्ति जोशी, एसपी नागौर .... पिछले छह माह में शून्य से बारह साल तक की राज्य की 130 बालिकाएं यौन शोषण का शिकार हुईं। इनमें चार तो नागौर जिले की हैं, इनके सैम्पल जल्द से जल्द देने की कोशिश रहती है। जोधपुर में डीएनए जांच के दिसम्बर से शुरू होने पर इसमें और तेजी आएगी। पहले नागौर से औसतन तीस-चालीस सैम्पल ही हर माह जयपुर आते थे, अब जोधपुर जाने वाले सैम्पल की संख्या 70 हो गई। संभवतया डीएनए जांच अब हर बलात्कार/यौन शोषण मामले में फोकस की जा रही है। शायद दूरी या अन्य कारणों से पहले कई मामलों की अन्य जांच जोधपुर ही करा ली जाती थी, केवल जरूरी मामलों में ही डीएनए सैम्पल जयपुर भेजे जाते थे।
-डॉ राजेश सिंह सहायक निदेशक विधि विज्ञान प्रयोग शाला जयपुर