बागडोर में रही शिष्य परम्परा
मंदिर के पुजारी विजेश्वर दत्त व ओमा शंकर ने बताया कि करीब 250 साल पहले मारवाड़ के राजा महाराजाओं व अहमदाबाद के राजाओं के बीच युद्ध हुआ। उनके साथ युद्ध में शामिल हुए लूणवां के ठाकुर को अहमदाबाद में भगवान श्रीकृष्ण बिहारी जी की मूर्तियां पंसद आ गई। उन्होंने मूर्तियों को लाकर लूणवां के वार्ड 5 में छोटा सा मंदिर बनाकर पूजा-अर्चना की बागडोर पंडित जयनारायण दत्त को सोप दी। जयनारायण दत्त का स्वर्गवास होने के बाद उनके पुत्र शिवदत्त शर्मा ने भगवान की पूजा-अर्चना कई सालों तक की। शिवदत्त के बाद उनके पुत्र सोमदत्त ने मंदिर की बागडोर संभाली। वर्तमान में सोमदत्त के पुत्र ओमदत्त भगवान श्रीकृष्ण बिहारी की पूजा-अर्चना कर रहे है। लूणवां में स्थित भगवान श्रीकृष्ण बिहारी के मंदिर व विराजमान भगवान के ऐतिहासिक स्वरूप को देखने के लिए जन्माष्टमी के दिन पूरा गांव उमड़ जाता है। भगवान श्रीकृष्ण बिहारी की मूर्ति सभी लोगों को अपनी और आकर्षित करती है।
2001 में हुआ जीर्णोद्धार
पुजारी व ग्रामीणों ने मंदिर का जीर्णोद्धार 2001 में करवाया। मंदिर व आकर्षिक गुम्ंबद पर बनाई गई डिजाइन से यह स्थान अनूठी स्थापत्यकला को दर्शाता है। पुजारी ने बताया कि एक बार मंदिर में चोरों ने भगवान के मुकूट व अन्य किमती सामान ले गए थे। जिसके बाद मंदिर के अंदर व बाहर सीसीटीवी कैमरे लगवाने पड़े। पुजारी ने बताया कि गांव में भगवान राधा-कृष्ण के दो ओर भी मंदिर है। जहां भक्तों का जमावड़ा रहता है, लेकिन वहां दर्शन करने के बाद भक्त यहां आने से अपने आप को रोक नहीं पाते। मंदिर में कृष्ण जन्माष्टमी का कार्यक्रम धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है।