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60 सरपंचों की गलती, खमियाजा भुगत रही 407 ग्राम पंचायतें

locationनागौरPublished: Aug 26, 2018 06:13:34 pm

Submitted by:

shyam choudhary

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mgnrega labour

Secretary will be on compassionate appointment

नागौर. देश में पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत करने वाला नागौर जिला पिछले काफी महीनों से विवादों में है। विवाद की वजह भी पंचायतीराज व्यवस्था के त्रिस्तरीय ढांचे की तीनों संस्थाएं ग्राम पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद है। जिले की ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत होने वाले विकास कार्यों में कच्चे व पक्के कामों का अनुपात बिगडऩे से एक ओर जहां भुगतान अटक गया है, वहीं दूसरी ओर नए कार्य भी स्वीकृत नहीं हो रहे हैं।
पत्रिका की पड़ताल में सामने आया कि जिले की मात्र 60 ग्राम पंचायतों के सरपंचों की गलती का खमियाजा शेष 407 ग्राम पंचायतें भुगत रही हैं। स्थिति यह है कि वित्तीय वर्ष 2018-19 में मनरेगा योजना में जिले को आवंटित कुल राशि में से 67 करोड़ रुपए (41 प्रतिशत) श्रम पर खर्च हुए हैं, जबकि सामग्री पर 97 करोड़ रुपए (59 प्रतिशत) खर्च किए गए हैं। मनरेगा में जहां श्रम व सामग्री का अनुपात 60 व 40 संधारित करना जरूरी है, वहीं यह अनुपात गड़बड़ाने से नए कार्यों की स्वीकृति रुक गई है, जिससे खफा सरपंचों ने हाल ही जिला परिषद सीईओ का पदभार ग्रहण करने वाले आरएएस अधिकारी रामनिवास जाट का विरोध करना शुरू कर दिया है। हालांकि सरपंच संघ का विरोध सीईओ जाट द्वारा वाजपेयी की मृत्यु के बाद राजकीय शोक के दौरान जायल में ली गई बैठक को लेकर है, जबकि सीईओ का कहना है कि सरपंचों का विरोध पक्के कार्यों की स्वीकृति पर रोक लगाना है।
मूण्डवा ब्लॉक में स्थिति सबसे ज्यादा खराब
जिला अधिकारियों से मिली जानकारी क अनुसार जिले की जिन 60 ग्राम पंचायतों में श्रम व सामग्री का अनुपात बिगड़ा है, उनमें 28 अकेले मूण्डवा पंचायत समिति की है। इसके अलावा खींवसर की 7, जायल की 5, रियां की 8 मौलासर की 6, मेड़ता की 3, नागौर की 2 तथा कुचामन की एक ग्राम पंचायत है। मूण्डवा ब्लॉक की 29 में से 28 पंचायतों में सामग्री मद में अधिकतम 40 प्रतिशत की सीमा को लांघते हुए 74 प्रतिशत खर्च कर दिया है। इससे जिले की अन्य 407 ग्राम पंचायतों को सामग्री मद में देय राशि रुक गई है।
10 प्रतिशत सरपंचों पर मेहरबानी
पत्रिका पड़ताल में यह भी सामने आया कि जिले के मात्र 10 प्रतिशत रसूखदार सरपंचों ने चालू वित्तीय वर्ष के 4 माह के दौरान मनरेगा योजना के तहत जिले में सामग्री मद में हुए कुल खर्च का 45 प्रतिशत उपयोग किया है, जबकि शेष 90 प्रतिशत ग्राम पंचायतों को मात्र 55 प्रतिशत राशि ही मिल पाई है।
गड़बड़ करने वाले खुद अधिकारी
जिला परिषद सीईओ क्या चाहते हैं, यह हमारी समझ से परे है। वे न तो पक्के कार्यों की स्वीकृति जारी कर रहे हैं और न ही कच्चे। जब काम ही नहीं होंगे तो अनुपाम कैसे सुधरेगा। मनरेगा में श्रम व सामग्री का अनुपात बिगाडऩे में भी जिला परिषद अधिकारियों व कर्मचारियों का हाथ है। सरपंचों ने तो कार्यों की स्वीकृति जारी की नहीं, ऐसे में पूरे मामले की जांच होनी चाहिए, ताकि सच सामने आए। सीईओ हमें जांच का डर बता रहे हैं, लेकिन उन्हें यह पता होना चाहिए कि जांच पहले उनके कार्यालय से ही शुरू होगी। राष्ट्रीय शोक में बैठक रखकर सीईओ क्या साबित करना चाह रहे थे।
– अर्जुनराम काला, जिलाध्यक्ष, राजस्थान सरपंच संघ, नागौर
दबाव में काम स्वीकृत नहीं करेंगे
चालू वित्तीय वर्ष में मनरेगा योजना में श्रम व सामग्री का अनुपात गड़बड़ा गया है, ऐसे में मनरेगा के कुल खर्च में श्रम मद का 60 प्रतिशत खर्च नहीं होने तक श्रम प्रधान कच्चे काम ही स्वीकृत करेंगे। किसी के दबाव में पक्का काम स्वीकृत नहीं होगा।
– रामनिवास जाट, सीईओ, जिला परिषद, नागौर
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