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पंचायती राज के 61 साल पूरे, न हर घर तक पहुंच पाए और न हर आंख से आंसू पौंछ पाए

locationनागौरPublished: Dec 01, 2020 11:16:34 am

Submitted by:

shyam choudhary

पंचायती राज व्यवस्था पर विशेष रिपोर्ट – 1959 में नागौर से हुई थी देश में पंचायतीराज की स्थापना- नागौर में 60 वर्षों में 9 जिला प्रमुख बने तो 7 प्रशासकों ने भी 10 साल संभाले रखी जिला परिषद की कमान- नागौर में पिछले 15 वर्षों से महिला के हाथों में रही जिला प्रमुख की बागडोर

Nagaur zila parishad frist meeting in 1959

61 years of Panchayati Raj, neither reach every house nor wipe tear

नागौर. ‘राजस्थान के हृदय नागौर’ से 2 अक्टूबर 1959 को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ‘हिन्द स्वराज’ के सपने को साकार करने के लिए पूरे देश में लोकतांत्रिक विकेन्द्रीकरण व्यवस्था का शुभारम्भ किया था, लेकिन गांधीजी का सपना 61 साल बाद भी अधूरा है। गांधी ने जब देश की प्रशासनिक व्यवस्था के बारे में सोचा तो उनके मन में सबसे प्रमुख यह बात थी कि देश का शासन गांव के हाथ में होना चाहिए। शासन व्यवस्था केन्द्र से गांव की ओर न होकर गांव से केन्द्र की ओर होनी चाहिए। उनका कहना था कि मजबूत भारत तभी बनेगा, जब देश का हर गांव मजबूत बनेगा।
बावजूद इसके आज भी ‘हर घर को पहुंचा जावे तथा हर आंख से आंसू पौंछा जावे’ वाली उस समय की प्रसिद्ध उक्ति फलितार्थ नहीं हो पाई है। कृषि, पशुपालन, पंचायत, सहकारिता, शिक्षा आदि क्षेत्रों में अभूतपूर्व कार्य तो शुरू हुए, लेकिन पूरे नहीं किए जा सके। गांधीजी का सपना था कि भारत में कृषि, पशुपालन व कुटीर उद्योग को महत्व दिया जाए, तीनों ही उपेक्षा की भेंट चढ़ गए।
1986 में एलएम सिंघवी की अध्यक्षता में बनी एलएम सिंघवी कमेटी की रिपोर्ट पर 1992 ने संविधान में 73वां संशोधन करते हुए हर पांच में चुनाव कराए जाने निश्चित किए। ग्राम सभा की बैठकों को अनिवार्य किया गया। ग्राम सभा को सबसे महत्वपूर्ण बताया था, लेकिन आज सबसे ज्यादा उपेक्षा ग्राम सभा की है। हालात यह है कि हर महीने बैठक आयोजित करना तो दूर, साल में अनिवार्य की गई बैठकें भी कागजी हो रही हैं।
लिखमाराम चौधरी बने थे देश के पहले जिला प्रमुख, 18 वर्षों तक रहे
पंचायती राज की स्थापना से छह दिन पूर्व 27 सितम्बर 1959 को लिखमाराम चौधरी नागौर के प्रथम जिला प्रमुख बने थे। पंचायती राज की स्थापना के साथ ही चौधरी को देश के सबसे पहले जिला प्रमुख के रूप में ख्याति मिली थी। इससे पहले चौधरी मूण्डवा पंचायत समिति के प्रधान बने। प्रधान रहते वे करीब 15-20 दिन बाद जिला प्रमुख बन गए और तीन बार निर्विरोध जिला प्रमुख बने। 7 अगस्त 1977 तक वे नागौर के जिला प्रमुख रहे। उन्होंने जीवन भर किसानों को समाज में उचित स्थान दिलाने एवं उन्हें आर्थिक व राजनीतिक शोषण से मुक्ति दिलाने के ध्येय से काम किया।
नागौर जिला परिषद : 61 वर्षों में 9 जिला प्रमुख बने तो 7 बार प्रशासकों ने संभाला काम
नाम – पद – कार्यकाल

लिखमाराम चौधरी – प्रमुख – 27.9.1959 – 7.8.1977
अर्जुनराम भंडारी – प्रशासक – 8.8.1977 – 18.5.1978
धर्मसिंह मीणा – प्रशासक – 7.6.1978 – 13.7.1978
पीसी जैन – प्रशासक – 26.7.1979 – 19.8.1981
एसपी पैगोरिया – प्रशासक – 20.8.1981 – 8.1.1982
भंवराराम सूपका -प्रमुख – 9.1.1982 – 28.2.1985
हरिराम बागडिय़ा – प्रमुख – 1.3.1985 – 22.7.1988
हरेन्द्र मिर्धा – प्रमुख – 23.7.1988 – 26.7.1991
तपेन्द्र कुमार – प्रशासक – 27.7.1991 – 6.8.1993
ललित मेहरा – प्रशासक – 7.8.1993 – 12.2.1995
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 13.2.1995 – 12.2.2000
जेठमल बरबड़ – प्रमुख – 13.2.2000 – 11.2.2005
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 12.2.2005 – 11.2.2010
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 12.2.2010 – 6.2.2015
सुनीता चौधरी – प्रमुख – 7.2.2015 – 6.2.2020
जवाहर चौधरी – प्रशासक – 7.2.2020 से अब तक
प्रथम जिला परिषद बोर्ड में थे 16 सदस्य
नागौर के प्रथम जिला परिषद बोर्ड में जिला प्रमुख लिखमाराम चौधरी सहित कुल 16 सदस्य थे। इसमें उप प्रमुख रामसिंह कुड़ी के अलावा सदस्य के रूप में नरसाराम, रसीद अहमद, मोहनीदेवी, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, मोतीलाल, गोपाललाल, जेठमल, माणकचंद, किशनलाल, गौरी देवी पूनिया, मथुरादास माथुर, यशवंतराय मेहता का नाम शामिल है।
विकास के द्वार खुले
पंचायतीराज की स्थापना के साथ ही जिले सहित देशभर में सामुदायिक विकास योजनाएं नवजीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आई। सर्वथा उपेक्षित ग्राम्य जीवन में सर्वांगीण विकास के क्षेत्र खुले और एक नई आशा का जन्म हुआ। लोगों की सुख सुविधा के प्राप्त साधनों का लेखा-जोखा हुआ और उनके अभाव अभियोगों की जानकारी प्राप्त की गई। सदियों से निराद्दत उपेक्षित क्षेत्र को प्रगति के पथ पर खड़ा किया गया।
जिले में थी 11 पंचायत समितियां
भारत में पंचायतीराज की स्थापना नागौर से 2 अक्टूबर 1959 में हुई थी, तब नागौर जिले में कुल 11 पंचायत समितियां थीं। जिसमें डीडवाना, नागौर, जायल, मूण्डवा, लाडनूं, कुचामन, रियां बड़ी, डेगाना, मेड़ता, परबतसर व मकराना का नाम शामिल है। गौरतलब है कि वर्तमान में जिले में कुल 15 पंचायत समितियां हैं, जिनमें से भैरूंदा इसी वर्ष बनाई गई है, जबकि मौलासर, खींवसर व नावां पंचायत समिति का गठन वर्ष 2015 में किया गया था।
ये बने थे पहली बार प्रधान
पंचायती राज की स्थापना के बाद नागौर की 11 पंचायत समितियों में जो सबसे पहले प्रधान बने थे उनमें डीडवाना से चेनाराम, नागौर से हरिराम, मूण्डवा से गणेशराम, लाडनूं से हरजीराम, कुचामन से हनुमानसिंह, रियां बड़ी से रामलाल, डेगाना से रामरघुनाथ चौधरी, मेड़ता से भैराराम, परबतसर से अर्जुनराम तथा मकराना से बिरमाराम थे।
बनी थी पंचवर्षीय विकास योजना, 29 विषय किए थे शामिल
जिले में पंचायती राज की व्यवस्था का शुभारम्भ करने के बाद नागौर के जनप्रतिनिधियों एवं तत्कालीन अधिकारियों में काफी जोश भर गया था। उसी साल नागौर की पंचवर्षीय विकास योजना बनाई गई, जिसमें 29 विषयों को शामिल किया गया। हालांकि एलएम सिंघवी कमेटी ने भी पंचायती राज में 29 विभागों को शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन आज भी मात्र पांच विभाग पंचायती राज के अधीन हैं और वे भी मनमर्जी के मालिक बने हुए हैं। उस समय 29 विषयों में विभागीय योजनाएं, सिंचाई, खाने एवं भूगर्भ विभाग, श्रम विभाग, आयुर्वेदिक विभाग, भूमि एकीकरण विभाग, सांख्यिकीय विभाग, ग्राम्य गृह निर्माण विभाग, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग, शिक्षा, समाज कल्याण विभाग, सार्वजनिक सम्पर्क विभाग, पशुपालन एवं चिकित्सा विभाग, कृषि विभाग, समाज शिक्षा विभाग, सहकारी विभाग, वन विभाग तथा पथ एवं भवन निर्माण विभाग को शामिल किया गया था।

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