1986 में एलएम सिंघवी की अध्यक्षता में बनी एलएम सिंघवी कमेटी की रिपोर्ट पर 1992 ने संविधान में 73वां संशोधन करते हुए हर पांच में चुनाव कराए जाने निश्चित किए। ग्राम सभा की बैठकों को अनिवार्य किया गया। ग्राम सभा को सबसे महत्वपूर्ण बताया था, लेकिन आज सबसे ज्यादा उपेक्षा ग्राम सभा की है। हालात यह है कि हर महीने बैठक आयोजित करना तो दूर, साल में अनिवार्य की गई बैठकें भी कागजी हो रही हैं।
पंचायती राज की स्थापना से छह दिन पूर्व 27 सितम्बर 1959 को लिखमाराम चौधरी नागौर के प्रथम जिला प्रमुख बने थे। पंचायती राज की स्थापना के साथ ही चौधरी को देश के सबसे पहले जिला प्रमुख के रूप में ख्याति मिली थी। इससे पहले चौधरी मूण्डवा पंचायत समिति के प्रधान बने। प्रधान रहते वे करीब 15-20 दिन बाद जिला प्रमुख बन गए और तीन बार निर्विरोध जिला प्रमुख बने। 7 अगस्त 1977 तक वे नागौर के जिला प्रमुख रहे। उन्होंने जीवन भर किसानों को समाज में उचित स्थान दिलाने एवं उन्हें आर्थिक व राजनीतिक शोषण से मुक्ति दिलाने के ध्येय से काम किया।
नाम – पद – कार्यकाल लिखमाराम चौधरी – प्रमुख – 27.9.1959 – 7.8.1977
अर्जुनराम भंडारी – प्रशासक – 8.8.1977 – 18.5.1978
धर्मसिंह मीणा – प्रशासक – 7.6.1978 – 13.7.1978
पीसी जैन – प्रशासक – 26.7.1979 – 19.8.1981
एसपी पैगोरिया – प्रशासक – 20.8.1981 – 8.1.1982
भंवराराम सूपका -प्रमुख – 9.1.1982 – 28.2.1985
हरिराम बागडिय़ा – प्रमुख – 1.3.1985 – 22.7.1988
हरेन्द्र मिर्धा – प्रमुख – 23.7.1988 – 26.7.1991
तपेन्द्र कुमार – प्रशासक – 27.7.1991 – 6.8.1993
ललित मेहरा – प्रशासक – 7.8.1993 – 12.2.1995
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 13.2.1995 – 12.2.2000
जेठमल बरबड़ – प्रमुख – 13.2.2000 – 11.2.2005
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 12.2.2005 – 11.2.2010
बिन्दू चौधरी – प्रमुख – 12.2.2010 – 6.2.2015
सुनीता चौधरी – प्रमुख – 7.2.2015 – 6.2.2020
जवाहर चौधरी – प्रशासक – 7.2.2020 से अब तक
नागौर के प्रथम जिला परिषद बोर्ड में जिला प्रमुख लिखमाराम चौधरी सहित कुल 16 सदस्य थे। इसमें उप प्रमुख रामसिंह कुड़ी के अलावा सदस्य के रूप में नरसाराम, रसीद अहमद, मोहनीदेवी, नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा, मोतीलाल, गोपाललाल, जेठमल, माणकचंद, किशनलाल, गौरी देवी पूनिया, मथुरादास माथुर, यशवंतराय मेहता का नाम शामिल है।
पंचायतीराज की स्थापना के साथ ही जिले सहित देशभर में सामुदायिक विकास योजनाएं नवजीवन का एक महत्वपूर्ण संदेश लेकर आई। सर्वथा उपेक्षित ग्राम्य जीवन में सर्वांगीण विकास के क्षेत्र खुले और एक नई आशा का जन्म हुआ। लोगों की सुख सुविधा के प्राप्त साधनों का लेखा-जोखा हुआ और उनके अभाव अभियोगों की जानकारी प्राप्त की गई। सदियों से निराद्दत उपेक्षित क्षेत्र को प्रगति के पथ पर खड़ा किया गया।
भारत में पंचायतीराज की स्थापना नागौर से 2 अक्टूबर 1959 में हुई थी, तब नागौर जिले में कुल 11 पंचायत समितियां थीं। जिसमें डीडवाना, नागौर, जायल, मूण्डवा, लाडनूं, कुचामन, रियां बड़ी, डेगाना, मेड़ता, परबतसर व मकराना का नाम शामिल है। गौरतलब है कि वर्तमान में जिले में कुल 15 पंचायत समितियां हैं, जिनमें से भैरूंदा इसी वर्ष बनाई गई है, जबकि मौलासर, खींवसर व नावां पंचायत समिति का गठन वर्ष 2015 में किया गया था।
पंचायती राज की स्थापना के बाद नागौर की 11 पंचायत समितियों में जो सबसे पहले प्रधान बने थे उनमें डीडवाना से चेनाराम, नागौर से हरिराम, मूण्डवा से गणेशराम, लाडनूं से हरजीराम, कुचामन से हनुमानसिंह, रियां बड़ी से रामलाल, डेगाना से रामरघुनाथ चौधरी, मेड़ता से भैराराम, परबतसर से अर्जुनराम तथा मकराना से बिरमाराम थे।
जिले में पंचायती राज की व्यवस्था का शुभारम्भ करने के बाद नागौर के जनप्रतिनिधियों एवं तत्कालीन अधिकारियों में काफी जोश भर गया था। उसी साल नागौर की पंचवर्षीय विकास योजना बनाई गई, जिसमें 29 विषयों को शामिल किया गया। हालांकि एलएम सिंघवी कमेटी ने भी पंचायती राज में 29 विभागों को शामिल करने की सिफारिश की थी, लेकिन आज भी मात्र पांच विभाग पंचायती राज के अधीन हैं और वे भी मनमर्जी के मालिक बने हुए हैं। उस समय 29 विषयों में विभागीय योजनाएं, सिंचाई, खाने एवं भूगर्भ विभाग, श्रम विभाग, आयुर्वेदिक विभाग, भूमि एकीकरण विभाग, सांख्यिकीय विभाग, ग्राम्य गृह निर्माण विभाग, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग, शिक्षा, समाज कल्याण विभाग, सार्वजनिक सम्पर्क विभाग, पशुपालन एवं चिकित्सा विभाग, कृषि विभाग, समाज शिक्षा विभाग, सहकारी विभाग, वन विभाग तथा पथ एवं भवन निर्माण विभाग को शामिल किया गया था।