फूल रहे हाथ पांव सूत्रों के अनुसार पदों की तंगी से अपराध तो बढ़ ही रहा है, वारदात तक खोलने में इनके हाथ-पांव फूल रहे हैं। इसके बाद काम के बोझ ने भी अपराधियों पर पुलिस की पकड़ को कमजोर कर दिया है। केवल पुलिस निरीक्षक (सीआई) के पद ही लगभग पूरे हैं। कांस्टेबल तक के पद तक खाली हैं। तकरीबन सात साल से हैड कांस्टेबल पदोन्नति का मामला न्यायालय में विचाराधीन है। राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण जयपुर ने वरिष्ठता देने तथा पद नहीं होने की स्थिति में काल्पनिक पद सृजित कर वरिष्ठता देने के आदेश दिए थे। इसी के खिलाफ पुलिस मुख्यालय ने राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर में अपील दायर की, जहां अब मामला विचाराधीन है। नई भर्ती नहीं होने के साथ पदोन्नति प्रक्रिया के अटकने से थानों की हालत खराब है। आईओ (अनुसंधान अधिकारी) की तंगी चल रही है।
थानों में एएसआई के नब्बे फीसदी पद खाली जिले में अकेले सहायक उप निरीक्षक (एएसआई) के ही 90 फीसदी पद खाली हैं, जबकि मामलों के अनुसंधान की सबसे मजबूत कड़ी एएसआई को ही माना जाता है। जिले में एएसआई के स्वीकृत पद 199 हैं, जबकि उपलब्ध 36 हैं, 163 पद रिक्त चल रहे हैं, वहीं थानों में तो स्थिति और भी खराब है। यहां स्वीकृत 173 में से केवल 18 पद ही भरे हुए हैं, 155 पद खाली पड़े हैं। ये भी प्रमोशन की उलझन से। जिले में एसआई के 74 स्वीकृत पदों में भी आधे से अधिक पद खाली हैं। थानों में भी इनकी स्थिति कोई खासा अच्छी नहीं है, यहां 46 स्वीकृत पदों में से 18 खाली पड़े हैं। एसआई के पचास प्रतिशत पद प्रमोशन तो पचास प्रतिशत सीधी भर्ती से भरे जाते हैं। हैड कांस्टेबल के स्वीकृत 405 में से सौ तो कांस्टेबल के 25 पद खाली हैं। थानों में तो हैड कांस्टेबलों के पचास फीसदी पद खाली पड़े हैं। स्वीकृत 284 में से 141 पद खाली हैं। ऐसे में अधिकांश थानों में पुलिसकर्मियों को काम का भारी दबाव झेलना पड़ रहा है। कई थाने चालीस फीसदी से भी कम स्टाफ से चल रहे हैं।
चालीस फीसदी थानों में न एसआई न एएसआई सूत्र बताते हैं कि एक दर्जन थानों में तो न एसआई है न ही एएसआई। 18 थानों में एएसआई नहीं हैं तो 19 थानों में एसआई। मतलब साफ है कि कहीं तो इंचार्ज के बाद का अफसर हैड कांस्टेबल ही है, एसआई-एएसआई तक नहीं हैं। ऐसे में काम चौगुना है, आईओ से लेकर अन्य कई झमेले झेलने पड़ते हैं। न पदोन्नति हो रही है न ही भर्ती, ऐसे में पार कैसे पड़े।पुलिस मुख्यालय/सरकार और पुलिसकर्मी के बीच न्यायिक प्रक्रिया से तकरीबन सवा छह साल से तो प्रमोशन ही रुके पड़े हैं। कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल तो हैड कांस्टेबल से एएसआई ही नहीं एएसआई से एसआई तक कोई पदोन्नत नहीं हो पा रहा
यहां अटका है मामला नागौर जिले में वर्ष 2015 में कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल पद की विभागीय पदोन्नति परीक्षा वर्ष 2012-13 की रिक्तियों के विरुद्ध 57 कांस्टेबल का हैड कांस्टेबल पद पर चयन किया गया। इन अभ्यर्थियों ने पुलिस ट्रेनिंग स्कूल, जोधपुर में पीसीसी पूरी कर उर्तीण की। बावजूद इसके वर्ष 2012-13, 13-14, 14-15 व 15-16 में पदोन्नति से होने वाली सभी रिक्तियां वर्ष 2016-17 की रिक्तियों में सम्मिलित करने के निर्देश की पालना नहीं होने के कारण जिला नागौर में वर्ष 2012-13 में कुल चयनित 57 पदों में 29 पद पदोन्नति से (हैड कांस्टेबल से एएसआई) रिक्त होने के कारण 29 अयार्थियों को अधिक चयनित मानकर वर्ष 2013-14 में वरिष्ठता क्रम में समायोजित किया गया। राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण जयपुर ने विजय सिंह बनाम राज्य सरकार मामले में दस मार्च-2017 को पुलिस महानिदेशक के आदेश को अगस्त-17 में अपास्त कर दिया गया। इस प्रकार जिला नागौर की वर्ष 2012-2013 की कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल पद की योग्यात्मक परीक्षा नियमानुसार सही पाई गई। विभाग की ओर से जिला नागौर में वर्ष 2012-2013 की कांस्टेबल से हैड कांस्टेबल पद पर चयनित अभ्यार्थियों में से करीब 36 अभ्यर्थियों को वर्ष 2013-14 में कांस्टेबल. की वरीयता क्रम अनुसार समायोजित किया गया। जिससे उक्त अभ्यर्थियों की वरिष्ठता क्रम अत्यधिक प्रभावित होने पर राजस्थान सिविल सेवा अपील अधिकरण जयपुर में अपील दायर की गई। अब मामला और आगे बढ़ गया है। राज्य सरकार इसके लिए हाईकोर्ट जयपुर चली गई है, सो मामला अब कितना और चलेगा कुछ कहा नहीं जा सकता।
पटाक्षेप के प्रयास सूत्रों का कहना है कि हाल ही एसपी राममूर्ति जोशी ने इन हैड कांस्टेबलों से उनका पक्ष जाना। हैड कांस्टेबलों का कहना था कि वर्ष 2013-14 से वरिष्ठता का उन्हें लाभ दिया जाए। बताया जाता है कि इनकी मंशा को एसपी जोशी ने एडीजी (पुलिस भर्ती एवं पदोन्नति बोर्ड) विनीता ठाकुर तक पहुंचाया है।
इनका कहना थानों में एसआई-एएसआई के पद खाली हैं। मामला न्यायालय में विचाराधीन है, इसलिए प्रमोशन-भर्ती का काम भी प्रभावित है। प्रयास कर जल्द से जल्द इसका समाधान किया जाएगा। -राममूर्ति जोशी एसपी नागौर