नंदीशाला में एक हजार गुणा 20 फीट के टिन शेड का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है, इसके साथ गोवंश के लिए पानी की खेळियां, चारे के ठाण आदि का काम भी हो चुका है, जबकि नंदीशाला का कार्यालय व पशुओं की चिकित्सा के लिए एक कक्ष का निर्माण भी किया जा रहा है।
विभागीय अधिकारियों के अनुसार जिला स्तरीय नंदीशाला में कम से कम 500 नर गोवंश को रखना अनिवार्य होगा। इससे अधिक चाहे जितने नर गोवंश रखे जा सकेंगे, उसी के अनुरूप अनुदान दिया जाएगा। हालांकि वर्तमान में यहां 741 सांड संधारित किए जा रहे हैं।
पशुपालन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले में 368 गोशालाएं पंजीकृत हैं, जिनमें करीब एक लाख गोवंश संधारित है। सरकारी आंकड़े इस बात के गवाह हैं कि नागौर में गोवंश के साथ गोशालाओं की संख्या भी प्रदेश में सबसे अधिक है। यह स्थिति आज की नहीं, बल्कि प्राचीन समय से है। नागौरी नस्ल के बैल देश ही नहीं विश्व प्रसिद्ध हैं, जिसके चलते पशु मेले भी नागौर में सबसे अधिक आयोजित होते हैं। नागौर, मेड़ता व परबतसर के पशु मेलों को तो राज्य स्तरीय मेलों का दर्जा प्राप्त है।
जिले में गत वर्षों में अचानक बढ़ी नर गोवंश की संख्या अब किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या बन गई है। स्थिति यह है कि नर गोवंश/सांड खेतों में खड़ी फसलों को जबरदस्त नुकसान पहुंचा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ गोशाला संचालक भी नर गोवंश को गोशाला में रखने से मना कर रहे थे, जिसको देखते हुए तीन साल पहले मुख्यमंत्री ने नंदीशाला खोलने की घोषणा की थी।
राज्य सरकार के सहयोग से हमने नंदीशाला का संचालन शुरू कर दिया हैं, यहां वर्तमान में 741 नर गोवंश हैं। छाया के लिए टिन शेड निर्माण भी करवा दिया है। अब यहां मीठे पानी की परेशानी है, जिसके लिए जिला कलक्टर व पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक को अवगत कराया है।
– सुखराम सोलंकी, प्रबंधक, नंदीशाला, नागौर
भारत सरकार की राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के अंतर्गत नागौर जिले की जिला स्तरीय नंदीशाला का संचालन चूंटीसरा के पास शुरू करवा दिया है, जहां नर गोवंश को रखा जा रहा है। यहां चारे-पानी की व्यवस्था प्रबंधक द्वारा की जा रही है। यहां शहर सहित अन्य स्थानों से निराश्रित व लावारिस नर गोवंश को लाया जा रहा है।
– डॉ. जगदीश बरवड़, संयुक्त निदेशक, पशुपालन विभाग, नागौर