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मुगलिया सल्तनत में धमक दिखाने वाले वीर की यादें धूल-धूसरित

locationनागौरPublished: Feb 19, 2020 12:46:20 pm

Submitted by:

Jitesh kumar Rawal

अपनी धरती पर ही बेगाने हो रहे वीर अमरसिंह राठौड़, अपनों में ही उपेक्षित होने लगा उनकी जीवनी से रूबरू कराता पैनोरमा

मुगलिया सल्तनत में धमक दिखाने वाले वीर की यादें धूल-धूसरित

पैनोरमा स्थल पर मुगल बादशाह के किले को लांघकर निकल आने वाले इस वीर का पूरा दृश्यांकन

जीतेश रावल

नागौर. मुगलिया सल्तनत में अपनी वीरता की धमक दिखाने वाले वीर अमरसिंह राठौड़ अपनों के बीच बेगाने हो रहे हैं। उनकी जीवनी व वीरता भरी कहानियां एक तरह से विस्मृत होने लगी है। जी हां, वीर अमरसिंह राठौड़ की यादें संजोने के लिए शहर में पैनोरमा बनाया हुआ है, लेकिन इसकी देखभाल तो दूर यहां काम करने वाले कार्मिक को वेतन तक नहीं मिल रहा। उपखंड स्तरीय पर्यटन विकास समिति न तो इसके उत्थान को लेकर काम कर रही है और न समुचित प्रचार कर पा रही है। पैनोरमा स्थल पर मुगल बादशाह के किले को लांघकर निकल आने वाले इस वीर का पूरा दृश्यांकन कर रखा है, जिसे देख कर उनके स्वाभिमान व जीवट की पूरी बानगी समझ में आ जाती है। पैनोरमा उनकी जीवनी और इतिहास से रूबरू करवाता है, लेकिन इसे संजाने वाला कोई नजर नहीं आता। गाहे-बगाहे कोई पर्यटक इस ओर चला जाए तो ठीक अन्यथा कई-कई दिन तक यहां कोई झांकता तक नहीं। विशेषज्ञ बताते हैं कि इस पैनोरमा का समुचित प्रचार-प्रसार किया जाए तो इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है। इससे पर्यटक तो इतिहास से रूबरू होंगे ही स्थानीय लोग भी गौरवान्वित हो सकेंगे।
भारी पड़ रहा सामंजस्य का अभाव

पैनोरमा बनाने के बाद उपखंड स्तरीय पर्यटन विकास समिति को जिम्मा सौंपा गया था, लेकिन इसकी सार-संभाल नहीं हो रही। यहां होने वाली आय समिति के कोष में जमा होती है और कार्मिकों को वेतन-भत्ते नगर परिषद की ओर से दिए जाते हैं, लेकिन सामंजस्य का अभाव भारी पड़ रहा है। प्रशासनिक उदासीनता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यहां केवल एक ही कार्मिक कार्यरत है और उसे भी दो वर्षों से वेतन नहीं मिला। कहने को यहां लिपिक, गार्ड, बागवान व सफाईकर्मी के पद स्वीकृत है, लेकिन दो वर्षों से लिपिक ही कार्यरत है। उसे जनवरी, 2018 से ही वेतन नहीं मिला है।
झाडिय़ों में बदरंग हो रही खूबसूरती

बताया जा रहा है कि इसकी देखभाल नगर परिषद के जिम्मे है, लेकिन साफ-सफाई भी कभी-कभार ही होती है। झाड़-झंखाड़ के बीच पैनोरमा की खूबसूरती बदरंग हो रही है। कई माह बाद परिसर में कुछ सफाई हुई है, लेकिन काटी गई झाडिय़ों के ढेर यूं ही पड़े हैं। इनको बाहर फेंकने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। परिसर में चारदीवारी के किनारे बड़ी-बड़ी कंटीली झाडिय़ां मुश्किल बढ़ा रही है।
गौरवपूर्ण इतिहास से वंचित है लोग

पैनोरमा के विकास की गेंद नगर परिषद व उपखंड स्तरीय समिति के बीच झूल रही है, लेकिन झेलने को कोई तैयार नहीं। ऐसे में इस पर्यटन स्थल का विकास नहीं हो पा रहा है। प्रचार-प्रसार का समुचित अभाव होने से स्थानीय लोग भी यहां नहीं आ पाते, जिससे लोग अपने गौरवपूर्ण इतिहास से वंचित ही है। यहां वीर अमरसिंह राठौड़ की जीवनी से जुड़े कई तथ्य तो है ही जिले के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थलों का भी पैनोरमा बना हुआ है। इसमें बुटाडी धाम, दधिमति माता समेत कई विशिष्ठ स्थलों को शामिल किया गया है, लेकिन उदासीनता की मार झेलती यह सामग्री धूल-धूसरित हो रही है।
यह होना चाहिए

– धरोहरों का समुचित संरक्षण करते हुए लोगों में जागरूकता लानी चाहिए

– समुचित प्रचार-प्रसार होने पर लोग ऐतिहासिक जानकारी से रूबरू हो सकेंगे

– विद्यालय व महाविद्यालयों में प्रचार करते हुए भ्रमण के दिन निर्धारित होने चाहिए
– वीर अमरसिंह राठौड़ की कहानियां स्कूलों में सुनाते हुए आकर्षण बढ़ाना चाहिए

तो विकसित हो सकता है पर्यटन सर्किट…

वीर अमरसिंह राठौड़ के इस पैनोरमा को बनाने की योजना बनी तो मैं खुद रोमांचित था। एक-एक दृश्य को अपनी देखरेख में बनवाया एवं इसकी डिजाइन व ऐतिहासिक तथ्य भी संकलित किए। इसकी देखरेख को लेकर उपखंड स्तर पर पर्यटन विकास समिति गठित है। यह सही है कि कमेटी इसके रख-रखाव व प्रचार-प्रसार पर ध्यान नहीं दे रही है। हमने कई बार इसके लिए पत्र व्यवहार भी किया है। स्कूल-कॉलेज और अन्य जगहों पर समुचित प्रचार किया जाए तो इसे पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किया जा सकता है।
टीकमचंद बोहरा, सीइओ, राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रान्नति प्राधिकरण, जयपुर

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