कई प्रश्नों की स्थिति तो यह है कि विधायकों को उनके जवाब आगामी विधानसभा चुनाव तक भी मिल जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं है। या यूं कहें कि विधायकों के सवालों का जवाब देने में नौकरशाही को जोर आ रहा है, क्योंकि राजस्थान की 15वीं विधानसभा के अब तक सात सत्र हो चुके हैं और आठवें की तैयारी चल रही है, लेकिन विधायकों की ओर से पहले सत्र में पूछे गए कई सवालों के जवाब अब तक नहीं दिए गए हैं। दूसरे, चौथे, पांचवें, छठे व सातवें सत्र के तो साढ़े 4 हजार से अधिक सवालों के जवाब देने शेष हैं। कई विधायकों के प्रश्न तो ऐसे हैं, जिनकी अब प्रासंगिकता ही समाप्त हो चुकी है।
विधानसभा सत्र – अनुत्तरित प्रश्नों की संख्या
पहला – 30
दूसरा – 395
तीसरा – 4
चौथा – 415
पांचवां – 153
छठा – 1089
सातवां – 2469
कुल – 4555
विधायक चाहे विपक्ष का हो या सत्तासीन पार्टी का, कोई फर्क नहीं पड़ता
विधायकों के प्रश्नों के जवाब देने को लेकर कर्मचारी और अफसर इतने निश्चिंत और लापरवाह हैं कि वे ये भी नहीं देखते कि सवाल लगाने वाला विधायक कौन है। यानी चाहे सत्तासीन पार्टी कांग्रेस का विधायक हो या फिर विपक्षी पार्टी का। यहां तक कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया, वासुदेव देवनानी, संयम लोढ़ा, अशोक लाहौटी, मेवाराम जैन, ज्ञानचंद पारख जैसे वरिष्ठ विधायकों के सवालों का जवाब भी नहीं दिया जा रहा है।
15वीं विधानसभा के सातों सत्र में प्रदेश के विधायकों द्वारा लगाए गए 4555 प्रश्नों के जवाब आज भी नहीं दिए गए हैं। बिना उत्तर वाले प्रश्नों की सूची लम्बी है, लेकिन पत्रिका ने कुछ प्रश्न निकाले हैं, जो इस प्रकार हैं-
– करीब ढाई साल पहले चौथे सत्र में विधायक वासुदेव देवनानी ने राज्य में झोलाछाप डॉक्टर के रूप में लोगों के विरूद्ध गत 3 वर्षों में विभाग की ओर से की गई कार्रवाई से जुड़ा प्रश्न लगाया, लेकिन सरकार ने आज तक जवाब नहीं दिया।
– 15वीं विधानसभा के प्रथम सत्र में खींवसर से विधायक हनुमान बेनीवाल ने नागौर नगर परिषद की ओर से अवैध आवंटन/नियमन आदि से जुड़ी 60 से अधिक पत्रावलियों की जांच की वर्तमान स्थिति के बारे में जानाकरी मांगी थी, लेकिन आज तक जवाब नहीं दिया।
– प्रथम सत्र में ही विधायक सूर्यकांता व्यास ने स्वायत्त शासन से जुड़ा सवाल प्रदेश में प्रत्येक स्थानीय निकाय क्षेत्र में मांस विक्रय और मांसाहार सुविधा वाले रेस्टोरेन्ट संचालन के क्या नियम है? इसको लेकर सवाल पूछा, लेकिन जवाब आज तक नहीं दिया।
– दूसरे सत्र में विधायक संयम लोढ़ा ने पूछा कि – राज्य सरकार के किन-किन विभागों की ओर से किन-किन कार्मिकों के विरूद्ध नियम-16 के तहत आरोप पत्र जारी किए गए और किन-किन के प्रकरण अभी कार्मिक विभाग में लंबित है? इसका जवाब आज भी नहीं मिला।
विधायकों का कहना है कि सरकार में नौकरशाही पूरी तरह हावी है, विधायक तो क्या, अफसर मंत्रियों को भी भाव नहीं देते। अधिकारी भ्रष्टाचार व नियम विरुद्ध किए गए कार्यों को लेकर लगाए गए प्रश्नों के जवाब पहली बात तो देते नहीं और देना भी पड़ा तो डेढ़-दो साल का समय निकलने के बाद देंगे। कुछ अधिकारी तो विधानसभा में भी गलत जानकारी दे देते हैं।
सत्र की अधिसूचना के साथ ही विधायक लिखित सवाल विधानसभा सचिवालय को देते हैं। सचिवालय इनके जवाब सरकार से लेकर पुस्तक के रूप में प्रकाशित करता है। सदन में ये जवाब पेश होते हैं। मंत्री जवाब देते हैं। यदि एक सत्र में कोई जवाब नहीं आता तो उसे अगले सत्र में पेश करना अनिवार्य होता है, लेकिन विभाग इसमें लापरवाही करते हैं।
विधानसभा में प्रश्न लगाना विधायक का बहुत बड़ा अधिकार है। लोकतंत्र की प्रणाली को सफल बनाने के लिए भी यह जरूरी है। विधायक का कर्तत्व है कि जनता की समस्याओं के लिए विधानसभा में भाग लें, चर्चा करें और क्षेत्र के विकास एवं समस्याओं के समाधान के लिए विधानसभा में प्रश्न लगाए, लेकिन यदि प्रश्नों का जवाब नहीं आ रहा है या गलत व तथ्यों से परे दिया जा रहा है तो यह लोकतंत्र का सबसे बड़ा मजाक है। इस बार मैंने देखा है कि ज्यादातर विधायकों के सवालों को अधिकारी गंभीरता से नहीं लेते हैं, इसकी जिम्मेदारी सरकार की है। विधायक मेहनत करके प्रश्न लगाते हैं, लेकिन या तो जवाब नहीं देते या फिर देते हैं तो आधा-अधूरा देते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अब जनप्रतिनिधियों पर ब्यूरोक्रेट्स हावी हो रहे हैं।
– रूपाराम मुरावतिया, विधायक, मकराना