scriptगुमनाम धरोहर को पहचान देने के जतन | Attempts to recognize anonymous heritage | Patrika News

गुमनाम धरोहर को पहचान देने के जतन

locationनागौरPublished: Apr 17, 2021 10:43:01 pm

Submitted by:

Ravindra Mishra

मेड़ता सिटी(nagaur) . आज विश्व धरोहर दिवस है। इतिहास और संस्कृति के महत्व को समझने के लिए विरासत का संरक्षण जरूरी है। संरक्षण से ही यह सुनिश्चित होता है कि यह विरासत आने वाली पीढ़ी तक अक्षुण्ण रूप से पहुंचेगी। इसके लिए हमें मिलकर प्राचीन धरोहर के संरक्षण के लिए आगे आना होगा।

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विरासत

– विश्व धरोहर दिवस आज : जानिए मेड़ता क्षेत्र के आसपास की धरोहर व विरासत

इतिहास और संस्कृति के महत्व को समझने के लिए प्राचीन धरोहर के संरक्षण की दरकार

किसी भी देश या प्रदेश के वर्तमान स्परूप को जानने के लिए उसके अतीत को जानना बेहद जरूरी है। ऐसा ही शोध कार्य पिछले कई वर्षो में युवा साहित्यकार नरेंद्र सिंह जसनगर ने किया है। उन्होंने मारवाड़ क्षेत्र की अनेकों गुमनाम धरोहरों को उजागर किया है।
मीरा स्मारक (पेनोरमा) के व्यवस्थापक नरेंद्र सिंह ने अब तक नागौर जिले सहित पाली, जोधपुर, अजमेर के अन्य स्थलों पर धरोहर के रूप में मौजूद प्राचीन मंदिर, मठ, गढ़, किले, दुर्ग, कोर्ट, छतरियां, बावड़ी, तालाब, कुंड सहित अन्य पुरा महत्व के तथ्य संग्रहित कर पर्यटन पुरातत्व एवं प्राधिकरण कार्यालय को भेजी है। इस पर पर्यटन विभाग ने पोस्टर, गाइड बुक भी तैयार किए हैं। जिन्हें दूर-दराज से आने वाले पर्यटकों को वितरित किए जा रहे हैं।
आठवीं से लेकर अठाहरवीं सदी के शिलालेख
इस खोज में मेड़ता, डेगाना, रियांबड़ी, परबतसर, मकराना, मुंडवा का क्षेत्र शामिल है। यहां से विक्रम संवत 1008 (ई. सन 951) आठवीं-नवमी सदी से लेकर अठारहवीं सदी तक के शिलालेख खोजे गए हैं। इन शिलालेखों में प्राचीन संस्कृत भाषा अंकित है। इनमें अधिकतर मंडोर (मारवाड़) के शासक रहे प्रतिहार वंश के अलावा सांखला, परमार, गुहिल, चौहान, खींची, दहिया, सोलंकी, भाटी, राठौड़ व मुगल राजवंशों से संबंधित है। जल स्त्रोतों की खुदाई के दौरान कई प्रकार की खंडित मूर्तियां व शिलालेख का गहन अध्ययन कर इनकी ऐतिहासिक जानकारी जुटाई जा रही है। कुंडल सरोवर व खेडूली की तरह बहने वाली जोजरी व जिले के सीमा पर लूनी नदी क्षेत्र जसनगर, सुरपुरा, लाडवा, मेडास, आलनियावास के अलावा सातलावास, सोगावास, जारोड़ा, इंदावड़, गगराना, मोकलपुर, डांगावास, भंवल सहित क्षेत्रों में देवली स्तम्भ, शिलालेख, छतरी व मंदिर स्थापत्य कला की जानकारी संग्रहित है। दुर्दशा की भेंट चढ़ रहे इन धरोहरों के संरक्षण के लिए ग्रामीण व युवा वर्ग को जागरूक किया जा रहा है।
सर्वाधिक गोवर्धन स्तम्भों का अध्ययन
इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा गोवर्धन स्तम्भों का अध्ययन किया है। इसके बारे में इतिहासकार डॉ.श्रीकृष्ण जुगनु बताते हैं कि इस प्रकार के स्तम्भ 9-10वीं सदी से लेकर वर्तमान समय तक मारवाड़ क्षेत्र में स्थापित किए जाते आ रहे हैं। गोवर्धन स्तम्भ के चारों ओर क्रमश: श्रीहरि विष्णु, सूर्य, गणेश जी के अलावा पार्वती, नंदी महाराज तथा गोवर्धनधारी श्रीकृष्ण की मूर्तियां उत्र्कीण है।
जिले की महत्वपूर्ण धरोहरों को विभाग की पुस्तक में किया जाएगा प्रकाशित
इन प्राचीन धरोहरों के बारे में मेहरानगढ़ म्यूजिम ट्रस्ट, इंटैक चैप्टर जोधपुर, महाराज मानसिंह पुस्तक प्रकाशन शोध केंद्र के अलावा ब्राऊन विश्वविद्यालय की एलिजाबेथ ने भी शोध कार्य किया है। पुरातत्व एवं संग्राहलय विभाग की अधीक्षक धर्मजीत कौर ने बताया कि बंवरला गांव में 8वीं सदी का चर्तुमुखी शिवलिंग, जसनगर में गुप्तकालीन कुबेर, गजलक्ष्मी की खंडित मूर्तियां, रामाचरणा गांव में संवत 1154, घटेला की ढाणी में 1062 तथा इंदावड़ में 11वीं से 17वीं सदी के शिलालेख सहित जिले की महत्वपूर्ण धरोहर बावड़ी, दुर्ग व मंदिरों की जानकारी को विभागीय पुस्तक में प्रकाशित किया जाएगा।

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