गौरतलब है कि 20-25 वर्ष पहले तक पश्चिमी राजस्थान के नाम से लोग डरते थे। खासकर सरकारी नौकरी करने वाले लोग पश्चिमी राजस्थान के जिलों में अपनी पोस्टिंग कराने से कतराते थे, लेकिन इंदिरा गांधी नहर आने तथा थार में तेल निकलने के बाद पश्चिमी राजस्थान का परिदृश्य ही बदल गया है। अब लोग इन क्षेत्रों में जानबूझकर न केवल नौकरी करना चाहते हैं, बल्कि उद्योग धंधे, होटल व्यवसाय आदि में भी काफी रुचि दिखा रहे हैं, इसकी प्रमुख वजह भी वातावरण में आया बदलाव ही है।
जिले में अब तक हुई बारिश
तहसील – बारिश एमएम में
नागौर – 433
मूण्डवा – 430
खींवसर – 450
जायल – 552
मेड़ता – 822
रियांबड़ी – 573
डेगाना – 368
डीडवाना – 433
लाडनूं – 386
परबतसर – 522
मकराना – 558
नावां – 530
कुचामन – 388
जिले की औसत – 495.8
इस वर्ष जनवरी से अब तक हुई बारिश के आंकड़े देखें तो कुचामन व डेगाना तहसील के अलावा शेष 11 तहसीलों में औसत से अधिक बारिश हो चुकी है। वहीं नागौर, मूण्डवा, खींवसर, जायल, मेड़ता, रियांबड़ी व मकराना में पिछले पांच वर्ष की औसत बारिश से भी अधिक बारिश हुई है।
इस पर रिसर्च चल रहा है
हां, यह सही है कि पिछले कुछ वर्षों में नागौर सहित पश्चिमी राजस्थान एवं पश्चिमी भारत में बारिश का औसत बढ़ा है। उत्तर-पूर्वी भारत के सातों राज्यों में पहले की तुलना में बारिश में कमी हुई है, जबकि पश्चिमी भारत में बढ़ी है। हालांकि इस पर अभी रिसर्च चल रहा है, लेकिन प्रारम्भिक तौर पर जो कारण सामने आए हैं, उनमें सबसे प्रमुख सिंचाई के साधन बढऩा है। नहरों एवं नलकूपों आदि से काफी बड़े क्षेत्र में सिंचाई होने लगी है, जिसके चलते वातावरण में नमी बढ़ी है, जो बारिश का प्रमुख कारण मानी जाती है। इसके साथ पेड़ भी सहायक बने हैं। पेड़ धरातल से 20 से 30 फीट तक की नमी को सोखकर सूर्य से आने वाली गर्मी में सकारात्मक बदलाव पैदा करते हैं। ऐसे में जब मानसून स्थापित होता है तब पश्चिमी राजस्थान व पाकिस्तान में गर्मी के कारण कम वायु दाब का क्षेत्र बनता है, वही बारिश में सहायक बनता है।
– लक्ष्मणसिंह राठौड़, पूर्व महानिदेशक, मौसम विभाग, भारत सरकार