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इतिहास गवाह है…भाजपा ने पहली बार नहीं किया नागौर में गठबंधन

locationनागौरPublished: Apr 05, 2019 08:23:19 pm

Submitted by:

Rudresh Sharma

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politics

BJP-RLP Allaince in Nagaur

बाबूलाल टाक @ नागौर . लोकसभा सीट के लिए भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी बार गठबंधन उम्मीदवार के लिए सीट छोड़ी है। इससे पहले भाजपा ने यह प्रयोग 1980 में संगठन की स्थापना के बाद हुए दूसरे चुनाव में 1989 में किया था। नागौर संसदीय सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी को हराने के लिए भाजपा ने 1989 के संसदीय चुनाव में जनता दल उम्मीदवार नाथूराम मिर्धा के लिए चुनाव समझौता कर यह सीट छोड़ी थी। इससे पहले 1984 में हुए चुनाव में नाथूराम मिर्धा इसी सीट से तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे।
लेकिन भाजपा से गठबंधन के बाद इस सीट से जनता दल के टिकट पर नाथूराम मिर्धा कांग्रेस प्रत्याशी रामनिवास मिर्धा से जीत गए थे। इस चुनाव के 35 वर्ष बाद भाजपा ने एक बार फिर कांग्रेस प्रत्याशी और नाथूराम मिर्धा की पौत्री डॉ.ज्योति मिर्धा को हराने के लिए राष्ट्रीय लोकतंात्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल के साथ हुए चुनावी गठबंधन में यह सीट छोड़ी है। भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व के सामने नागौर संसदीय सीट प्रतिष्ठा का प्रश्न बनी हुई थी।
कांग्रेस की डॉ.ज्योति मिर्धा को प्रत्याशी घोषित करने के बाद एक सप्ताह के मंथन के बाद यह सीट गठबंधन में देने का निर्णय केन्द्रीय नेतृत्व ने किया। एक बार फिर इस सीट पर चुनावी दंगल इसलिए भी रौचक हो गया है क्यों कि ज्योति मिर्धा के दादा नाथूराम मिर्धा और हनुमान बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी 1989 तक एक ही पार्टी में रहे थे। छात्र नेता से विधायक बनने तक के सफर में हनुमान बेनीवाल का कांग्रेस के विरोध में रहना भी भाजपा का बेनीवाल के लिए गठबंधन में सीट छोडऩा एक कारण रहा।

पहले चुनाव से ही देशभर में चर्चित रही सीट
स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्रीय पद्धति से 1952 में पहले चुनाव के समय से ही नागौर संसदीय सीट किसी न किसी कारण से देशभर में चर्चित रही। पहले चुनाव में जहां निर्दलीय प्रत्याशी गजाधर सोमानी यहां से सांसद चुने जाने से यह संसदीय क्षेत्र चर्चा में रहा, तो 1957 के दूसरे चुनाव में जोधपुर निवासी मथुरादास माथुर बाहरी उम्मीदवार होने के बावजूद कांग्रेस के टिकट पर महज इस कारण जीत गए कि आजादी से पहले उनका कार्यक्षेत्र नागौर ही रहा था, लेकिन 1962 के चुनाव में कांग्रेस ने दक्षिण भारतीय एस. के. डे को टिकट दिया और नागौर के मतदाताओं ने चुनाव जीता दिया था। चौथे चुनाव में पहले सांसद बने गजाधर सोमानी के पुत्र नंदकुमार सोमानी ने स्वतंत्र पार्टी से चुनाव जीतकर विरासत में मिली राजनीति के बीज बोए। कांग्रेस ने इससे अगले चुनाव में चार बार विधायक रहे नाथूराम मिर्धा को चुनाव मैदान में उतारा और मिर्धा के इस सीट पर एक बार कब्जा जमाने के बाद कोई गैर जाट नहीं जीत सका और भाजपा कांग्रेस के जाट प्रत्याशी के सामने जातिगत वोटों को साधने के लिए यह सीट गठबंधन के लिए छोड़ दी।

कोई न कोई रहा मिर्धा उम्मीदवार
नागौर लोकसभा सीट से 1971 का संसदीय चुनाव नाथूराम मिर्धा के जीतने के बाद से केवल दो बार को छोडकऱ ही इस सीट पर मिर्धा परिवार का कोई न कोई प्रत्याशी चुनाव मैदान में रहा है। इस दौरान तेरह बार हुए चुनाव में से केवल 1999 व 2004 के संसदीय चुनाव में ही मिर्धा परिवार का कोई प्रत्याशी इस सीट पर चुनाव मैदान में नहीं था। इन तेरह चुनाव में से तीन बार तो आमने-सामने की कड़ी टक्कर मिर्धाओं में होने से चुनावी मुकाबला रौचक रहा। इससे पहले नागौर संसदीय सीट से लगातार तीन बार संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले नाथूराम मिर्धा के सामने कांग्रेस ने 1984 के चुनाव में तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा को उतारा था। यह चुनाव भी एक ही गांव के रहने वाले सगोत्रीय रिश्तेदार नेताओं के आमने सामने होने से रौचक हो गया था और इस चुनाव में कल्याण सिंह कालवी और नाथूराम मिर्धा के वोट बंटने से रामनिवास मिर्धा आसानी से चुनाव जीत गए। इसके बाद 1989 में हुए चुनाव में नाथूराम मिर्धा ने अपने राजनीतिक कौशल से कल्याणसिंह कालवी से चुनावी गठबंधन किया और चुनाव जीत गए। इतना ही नहीं नाथूराम मिर्धा ने इसे चुनावी हथियार के रूप में काम लिया और अपनी हर चुनावी सभा में लोगों के सामने स्वीकार किया कि गत चुनाव में कल्याणसिंह कालवी से हाथ नहीं मिलाने का नुकसान दोनों को उठाना पड़ा था। दोनों को मिले वोट जोड़ कर एक प्रत्याशी बनने पर जीतते। नाथूराम ने नागौर से तथा कल्याण सिंह कालवी ने 1989 का चुनाव नागौर के स्थान पर बाड़मेर संसदीय सीट से लड़ा और दोनों ही चुनाव जीतकर केन्द्र सरकार में पहली बार मंत्री बने। इसके बाद भी इस सीट पर मिर्धा के सामने मिर्धा का रौचक चुनाव 1997 में नाथूराम मिर्धा के देहावसान के बाद हुआ जब तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा को कांग्रेस का टिकट देने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने नाथूराम मिर्धा के पुत्र भानुप्रकाश को चुनाव लड़ाया और भाजपा पहली बार नागौर की सीट पर कमल का फूल खिला सकी।

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