'आपकी आस्था सराहनीय है तथा आपका अपनत्व प्रशंसनीय है। राजस्थान वीरों की भूमि है। सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत सर्वोपयुक्त है। वेदों का अनुशीलन करना आज की आवश्यकता है। गीता का संदेश है कि हमारा जीवन भगवान के लिए समर्पित हो, तभी जीवन की सार्थकता है।' यह बात गोवर्धन मठ के पीठाधीश्वर व शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने शनिवार शाम को बंशीवाला मंदिर में धर्म सभा में उमड़ी धर्म प्रेमियों की भीड़ एवं नागौर पहुंचने पर शहरवासियों की ओर से किए गए अभिनंदन से अभिभूत होकर को कही।
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती का बंशीवाला मंदिर में दर्शन
शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने बंशीवाला मंदिर में किया धर्मसभा को संबोधित
बंशीवाला मंदिर में दर्शन करने के बाद धर्मसभा को संबोधित करते हुए शंकराचार्य ने कहा कि प्रतिदिन सवा घंटे भजन-कीर्तन और ध्यान हो। सूर्योदय से पूर्व भगवान का स्मरण करें।
आधुनिक युग में भजन की आवश्यकता है, जो कुछ नश्वर है उससे पिंड छुड़ाकर हम सभी आनंद स्वरूप होकर रहें। प्रत्येक अंश अपने अंश की ही ओर समाहित होता है। जल की धारा समुद्र की ओर ही आकर्षित होती है। यह गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत है।उन्होंने कहा कि सही दृष्टि प्राप्त नहीं होने के कारण ही सांसारिक मोह-माया के प्रपंच में मानव भटकता है। मोह से वशीभूत होकर हम सभी को मोहित मान लेते हैं।
शंकराचार्य को सुनने के लिए बंशीवाला मंदिर का चौक खचाखच भर गया। जीवन के मूल लक्ष्य से बढ़ रही दूरी उन्होंने कहा कि महानगरों में शुद्ध जल, मिट्टी, वातावरण, प्रकाश, आकाश आदि उपलब्ध नहीं है। महानगरों में शुद्ध मनोभाव नहीं है। विकास के नाम पर जीवन के मूल लक्ष्य से दूरी बढ़ती चली जा रही है। सब कुछ हो, लेकिन गहरी नींद ना आए तो पागलखाने में जाने को तैयार रहें। जीव जगत जगदीश्वर का मौलिक स्वरूप परमतत्व भगवान स्वयं हैं, जिसका पुनर्जन्म ना हो, उसी का जन्म लेना सार्थक है।
भगवान के नाम में अपार शक्ति शंकराचार्य ने कहा कि भगवान के नाम का आधार लेकर हम भवसागर से पार हो सकतें हैं और भवसागर में डूबने से बच भी सकते हैं। भवसागर को सूखा भी सकते हैं। जैसे लिफ्ट का सहारा लेकर हम नीचे से ऊपर तक जाते हैं। उसी प्रकार सृष्टि का आलंबन लेकर सृष्टि से पार पहुंच सकते हैं। अनादि काल से सृष्टि का प्रवाह चलायमान हैं। भगवान की प्राप्ति होने पर जीवन सार्थक हो जाएगा।
विकास की अंधी दौड़ नुकसानदायक शंकराचार्य सरस्वती ने कहा कि सृष्टि की सरंचना का जो प्रयोजन है, उसको समझे बिना विकास की अवधारणा पूर्ण नहीं हो सकती है। विकास का मापदंड है महायंत्र। महायंत्रों के अधिक उपयोग से प्रदूषण होता है, जो पुनः हमें विनाश की ओर ही ले जाता है।
शंकराचार्य को सुनने के लिए बंशीवाला मंदिर का चौक खचाखच भर गया। स्थिति यह थी कि महिलाओं एवं पुरुषों को बैठने की जगह नहीं मिली तो सीढि़यों व छत पर भी बैठ गए। पुरुषों ने गले में भगवा दुपट्टा डाला हुआ था।
बंशीवाला मंदिर नागौर प्रज्ञा शक्ति और प्राण शक्ति विकास के अंधाधुंध प्रयोगों के कारण क्षीण हो रही है। स्थावर जंगम प्रजातियों का विलोप हो रहा है। विकास की अंधी दौड़ के कारण अनेक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं। कोरोना ने सिद्ध कर दिया कि प्राचीन वेद वांग्मय और संहिताओं व उपनिषदों का ज्ञान तर्क सम्मत है।