scriptहादसों के साए में बसों का सफर | Bus travels in the shadow of accidents | Patrika News

हादसों के साए में बसों का सफर

locationनागौरPublished: Dec 20, 2018 05:57:36 pm

Submitted by:

Anuj Chhangani

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हादसों के साए में बसों का सफर

मूण्डवा. ‘नई बात नौ दिन खिंची ताणी तेरह दिन’ वाली कहावत प्रशासन के काम-काज के तरीके पर सटीक बैठती है। भडाणा गांव में पांच नवम्बर को यात्रियों के लिए ठहरी बस को ट्रेलर के टक्कर मारने से दो लोगों की जाने चली गई। भडाणा तथा जोधियासी गांव के दो परिवार अभी तक सदमें से नहीं उभरे हैं। हादसे का सबसे बड़ा कारण बसों के बाईपास से निकल जाना था। ग्रामीण उग्र हुए तो पुलिस ने भी एक दो दिन तक निजी तथा साधारण सेवा की रोड़वेज बसों को गांव के अन्दर से भेजने की व्यवस्था की।स्थिति फिर वही ढाक के तीन पात वाली बात हो गई। अब न तो निजी बस गांव से होकर निकलती है और न ही रोड़वेज की। जिस बस में गांव का स्टाफ हो तो इक्का-दुक्का बस अन्दर से निकलती है। गांव के मध्य में बस स्टैंड है जहां यात्री प्रतिक्षालय भी बना हुआ है। अब ये प्रतिक्षालय बच्चों की चहल कदमी व ताश खेलने वालों के लिए ही काम आता है। बसें नहीं आने से यहां कोई यात्री नहीं बैठता। बाईपास से बसें पकडऩे के लिए ग्रामीणों को करीब एक किलोमीटर तक पैदल सफर करना पड़ता है। बाईपास से बस पकडऩे पर वरिष्ठ नागरिकों, बीमार व्यक्तियों, निशक्तजनों तथा महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी होती है। शहर से खरीददारी कर लौटने पर सामान का बोझ भी ढोना पड़ता है। दूसरी ओर बस के इंतजार में तथा बस में बैठते समय बाईपास पर सदैव अनहोनी की आशंका सताती रहती है।

खतरनाक है बाईपास
गौरतलब है कि भडाणा गांव नेशनल हाईवे 89 पर आबाद है। इस गांव से बाईपास बना
हुआ है। इस बाईपास पर खतरनाक जानलेवा मोड़ हैं। वहां अनगिनत हादसे हो चुके हैं। इस बाईपास पर हादसे के निशान कभी मिटते ही नहीं हैं। फिर भी यात्रियों की जान जोखिम में डालकर बसें बाईपास ही निकल जाती है, जबकि गांव में नई सडक़ बने हुए अर्सा बीत गया।

गुमराह होते अधिकारी
अनहोनी के बाद तो प्रशासन के हाथ पांव फूल जाते हैं। सामान्य परिस्थितियों में अधिकारियों के संज्ञान में कोई जन समस्या लाई जाती है तो उनके मातहत कर्मचारी ही गुमराह कर देते हैं। कुछ ऐसा ही नागौर डिपो मैनेजर के साथ हो रहा है। निजी बसों के साथ कम्पीटीशन का कहकर बसें बाहर से ही निकाली जा रही है। असल में निजी बसों के साथ कम्पिटीशन एक्सप्रेस बसों का है। लोकल बसों में तो कोई कम्पिटीशन नहीं है।

रोड़वेज की बसें बहुत पहले गांव के अन्दर से होकर जाती थी। इन वर्षों में बाहर से ही जाती है। निजी बसें भी गांव के अन्दर नहीं जाती है। इसलिए इनके कम्पीटीशन में हमारी बसें भी बाहर से ही चली जाती है। यदि ग्रामीण निजी बसों को अन्दर से ले जाने के लिए राजी कर ले तो हमारी बसें भी अन्दर से ही जानी शुरू हो जाएगी।
गणेशराम शर्मा, मुख्य प्रबंधक, नागौर डिपो

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