नागौर

अपने लाभ की खातिर दबाई केबिनेट की मंजूरी…!

शहरी परियोजना भंग होती तो निजी लाभ की कड़ी हो सकती थी प्रभावित

नागौरAug 06, 2018 / 06:24 pm

Sharad Shukla

Guinani school again operated in single innings

नागौर. आईसीडीएस शहरी परियोजना भंग करने के लिए केबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद भी अधिकारियों ने यह प्रकरण विभागीय स्तर लटकाए रखा, जबकि प्रदेश के सभी जिलों में करवाए गए सर्वे रिपोर्ट में सभी तथ्य अधिकारियों को मिल चुके थे। विभागीय जानकारों का कहना है कि सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद भी इसे भंग नहीं करने के पीछे यही कारण था कि, इससे लंबे समय से चल रहे उनके निजी लाभ प्रभावित न हो सकें। अन्यथा तकनीकी एवं प्रशासनिक दृष्टि से संपूर्ण आंकलन के बाद शहरी परियोजन भंग करने पर आंगनबाड़ी केन्द्रों में बरसों से लागू अपरोक्ष लाभ की व्यवस्था प्रभावित हो सकती थी। इसलिए इसको पहले दबाया, लेकिन बाद में सरकार के स्तर पर दबाव बड़ा तो लागू करना ही पड़ा। जानकारों का कहना है कि इस बिंदु को ध्यान में रखकर एसीबी की पड़ताल हुई तो कई आला अधिकारी संलिप्तता उजागर हो सकती है।
पोषाहार में भ्रष्टार के मामले में एसीबी की जांच में अब तक कइयों के नाम सामने आए हैं। यह पूरा कार्य उच्च स्तर की मिलीभगत से चल रहा था। लेकिन जांच की चपेट में फिलाहल प्यादे ही आएं हैं। आडिट के दौरान कई आक्षेप या सवाल उठाए उठाने पर सवालों का निस्तारण विभागीय स्तर पर ही किया गया। ऑडिट में भी गड़बडिय़ां नहीं पकड़ा जाना पूरे मामले के तार जयपुर तक जुड़े होने को दर्शाते है। अन्यथा यह गड़बड़ी पहले ही पकड़ में आ जाती। यही वजह रही कि आईसीडीएस की शहरी योजना को भंग करने की सिफारिश भी अधिकारियों ने ठंडे बस्ते में डाल दी। केबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद भी दो साल से ज्यादा समय तक इसे भंग करने को लेकर आला अधिकारियों ने कोई कार्यवाही नहीं की। सूत्रों का मानना है कि अफसरों की इसके पीछे सोच थी कि शहरी परियोजना भंग होने पर उनकी पूरी चेन गड़बड़ा जाएगी। नए सिरे से व्यवस्था जमानी होगी। परियोजना भंग करने पर आंगनबाड़ी केन्द्रों के सेक्टर वाइज कई अधिकारी इधर-उधर हो जाते। जबकि इनमें से कुछ ऐसे थे जिनका सोचना था कि इस कड़ी में नए अधिकारी के जुडऩे पर बात बाहर भी जा सकती है।
कुर्सी-टेबल में पकड़ा था फर्जीवाड़ा
तीन से चार महीने पहले आदर्श आंगनबाड़ी केन्द्रों के लिए मुख्यालय स्तर पर कुर्सी, टेबल एवं स्टेशनरी की आपूर्ति के लिए निजी एजेंसी को अनुबंधित किया था। सामन की आपूर्ति की जांच के दौरान सामने आया कि निविदा में तय प्रावधान के तहत एक भी सामान नहीं दिया गया। मसलन कुर्सी एवं टेबलों का वजन बढ़ाने के लिए उनके नीचे वाले पायों के अंदर मिट्टी भर दी गई, ताकि प्रावधान में तय वजन के मानक पर सामान खरा उतर सके। इस दौरान कुछ केन्द्रों की जांच में मामला सामने आने पर एसीबी में शिकायत की गई। इसमें भी जांच के दौरान गड़बडिय़ां तो पकड़ी गई, लेकिन निदेशालय स्तर के अफसरों की संलिप्तता सामने आने के बाद भी कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी। एससीबी की जांच में इस तरह के और भी कई प्रकरण सामने आने पर कई उच्च अधिकारियों की कारगुजारी सामने आ सकती है।

पहले भी लगे आरोप
आईसीडीएस ने नियमों की आड में दो साल से ज्यादा समय तक शहरी परियोजना को भंग करने की मंजूरी फाइलों में दबाए रखी, कुर्सी एवं टेबलों की आपूर्ति में उच्च स्तर पर एसीबी ने तीन से चार माह पहले पकड़ी थी गड़बड़ी, लेकिन कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई, और न ही अफसर हुए निलंबित, लंबे समय से चल रहा था मामला, कई शिकायतों को भी आला अफसरों पर दबाए रखने के लग चुके हैं आरोप

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