पकड़ा खूब जा रहा है फिर भी छूट नहीं पा रहा नशा
नागौरPublished: Jul 15, 2023 08:31:14 pm
नागौर. अवैध मादक पदार्थ तस्करों पर कार्रवाई के लिहाज से नागौर राज्य के टॉप फाइव जिलों में शुमार है। बावजूद इसके युवाओं में बढ़ती नशाखोरी पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। पूरे जिले में ना तो अस्पताल में अब तक नशामुक्ति वार्ड खुला है ना ही शिविरों के माध्यम से नशा छुड़ाने की पहल कोई रंग ला रही है।


स्वयंसेवी संस्था नशा खत्म करने के नाम पर सरकारी मद से पैसा तो उठा रही हैं, लेकिन उनकी कवायद सिर्फ कागजों तक सिमटी हुई है। इसी साल के छह महीने में 64 मामलों में कार्रवाई कर 80 तस्कर पकड़ में आए और भारी मात्रा में अवैध मादक पदार्थ जप्त हुआ।
स्वयंसेवी संस्था नशा खत्म करने के नाम पर सरकारी मद से पैसा तो उठा रही हैं, लेकिन उनकी कवायद सिर्फ कागजों तक सिमटी हुई है। इसी साल के छह महीने में 64 मामलों में कार्रवाई कर 80 तस्कर पकड़ में आए और भारी मात्रा में अवैध मादक पदार्थ जप्त हुआ। पांचौड़ी पुलिस ने बुधवार को करीब पचास लाख का डोडा-पोस्त पकड़ा है।
सूत्रों के अनुसार नशे के सौदागरों के लिए कभी ऐशगाह बना नागौर अब उनके लिए मुसीबत बन गया है। तीन-चार साल पहले जहां सालभर में दो दर्जन कार्रवाई नहीं होती थी, वहां अब रोजाना ही तस्करों को पकड़ा जा रहा है।
मध्यप्रदेश/दिल्ली समेत अन्य बाहरी राज्यों से अफीम व डोडा पोस्त ही नहीं स्मैक-एमडी की सप्लाई की जा रही थी। इस पर अंकुश लगा भी और भारी मात्रा में खेप आना लगभग बंद हो गया। बावजूद इसके नशे के आदी युवक अब खुद इस काम में जुड़ गए। छोटी-छोटी पुडिय़ा का लेन-देन कर वो जो कमा रहे हैं, उसे नशे में उड़ा रहे हैं। सूत्र बताते हैं कि नागौर में अफीम/डोडा पोस्त के बाद स्मैक/एमडी के नशेड़ी सर्वाधिक हैं। डोडा पोस्त के ठेके बंद हुए करीब सात साल हो गए।
ऐसे में नशे के आदी अवैध डोडा-पोस्त की खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। राजस्थान के ही चित्तौड़/प्रतापगढ़/बांसवाड़ा तो मध्यप्रदेश के नीमच / मंदसौर / रतलाम से इसकी सप्लाई की जा रही है। पुलिस की पकड़ में आने वाले हर तस्कर/युवा अपनी आपबीती में यही बता रहे हैं कि पहले तो नशे के आदी हुए फिर खुराक पूरी करने के लिए तस्करी करने लगे। यही नहीं छोटी-मोटी चोरी, यहां तक की टूटियां तक चुराने लगे हैं।
सूत्रों का कहना है कि पिछले वर्ष 2022 में नागौर पुलिस ने 126 मामलों में कार्रवाई कर 142 तस्कर गिरफ्तार किए तो वर्ष 2023 में जून माह तक 64 कार्रवाई कर करीब 80 आरोपियों को पकड़ा गया। जबकि इसके विपरीत वर्ष 2021 में केवल 66 कार्रवाई हुई और वर्ष 2020 में इनकी संख्या केवल 36 थी। यानी नशे के अवैध सौदागरों के खिलाफ पुलिस की कार्रवाई तीन गुनी से भी अधिक हो चुकी है। कभी चावल के कट्टों में छिपाकर डोडा-पोस्त पकड़ा गया तो कभी कंटेनर में। इस डेढ़ साल में पुलिस की इस कार्रवाई का डर यह रहा कि नामी/बड़े तस्कर पर लगाम लगी, नशेड़ी युवकों ने छोटी-मोटी सप्लाई कर कमाई के साथ नशे की खुराक का जुगाड़ करना शुरू कर दिया।
जिले के सबसे बड़े जेएलएन अस्पताल में करीब डेढ़ साल से मनोचिकित्सक ही नहीं है। डीडवाना की मनोचिकित्सक जरूर शिविरों के माध्यम से नशाविरोधी अभियान चला रही हैं। जेएलएन अस्पताल के पीएमओ डॉ महेश पंवार का कहना है कि मनोचिकित्सक के नहीं होने से वार्ड कैसे खुले। उधर, सीएमएचओ डॉ महेश वर्मा ने बताया कि जिले में शिविरों के माध्यम से नशा छुड़ाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए दवाएं भी दी जा रही है।
एसपी राममूर्ति जोशी का कहना है कि प्रयास/कवायद कितनी ही हो, नशे की प्रवृत्ति स्वयं से छोड़ी जा सकती है। अपने स्तर पर मन मजबूत कर कोई भी नशा छोड़ सकता है। इसको लेकर परिवार ही नहीं हर बड़े-बुजुर्ग के साथ मित्र-परिजन को भी समझाइश के साथ राह से भटके लोगों को सही दिशा दिखानी होगी। पुलिस अपने स्तर पर कार्रवाई कर तस्करों को पकड़ती ही है, लेकिन नशे की राह पर सरपट दौड़ते युवा को रोकना उसके साथ पूरे परिवार/समाज ही नहीं सभी संस्था/संगठन जनप्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी है। नशे के आदी होने के बाद इस जुगाड़ में लगे युवक ही अब नशे की सामग्री की छुटपुट सप्लाई करते हैं।
राजकीय बांगड़ चिकित्सालय डीडवाना की मनोचिकित्सक डॉ प्रियंका रुहिला का कहना है कि नशा छुड़ाने के लिए शिविर लगाते हैं। इन शिविरों में जो स्वयं आते हैं वो तो नशा छोड़ भी देते हैं, लेकिन परिजनों के दबाव/डर से आने वालों का नशा नहीं छूटता। प्रयास हर तरफ से होना जरूरी है। समझाइश के साथ इसके बुरे प्रभाव को बताने की जिम्मेदारी को भी समझना होगा।