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राजस्‍थान में यहां बन रहा कांटों से कोयला, कमाई का नायाब तरीका

locationनागौरPublished: Jun 12, 2021 01:30:24 pm

Submitted by:

Rudresh Sharma

ग्राम विकास समिति को अच्छी आमदनी : जाब्ती नगर में ढाई साल से बबूल से बन रहा कोयला

Coal from thorns is being made here in Rajasthan

जाब्ती नगर में ढाई साल से बबूल से बन रहा कोयला

मोतीराम प्रजापत @ चौसला (नागौर) . सकारात्मक सोच के साथ प्रयास किया जाए तो असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। हनुमानगढ़ जिले से आए लोगों ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया है। वे ढ़ाई साल से कांटों से ही कमाई कर रहे हैं।

वह भी ऐसे वक्त में जब महामारी के चलते लोगों की आमदनी के जरिए प्रभावित हुए हैं। उन्होंने आपदा को अवसर में बदलने का काम किया है। हनुमानगढ़ के जयप्रकाश व राजेश जाट ढ़ाई साल से नागौर जिले के जाब्दीनगर में अंग्रेजी बबूल (जूली फ्लोरा) से कोयला बना रहे हैं। इससे गांव की विकास समिति को भी लाभ मिला है। वहीं कंटीले बबूलों का सफाया होने से ग्रामीणों को राहत मिली है।
वे चरागाह, बंजर जमीन या जंगल के अंग्रेजी बबूल को बोली लगाकर खरीदते हैं, फिर इसे जड़ सहित उखाडक़र कोयला तैयार करते हैं। यहां जाब्दीनगर, गोविन्दी पंचायत, राजास, मेंढा नदी व राजास पहाड़ी क्षेत्र के आस-पास धरती पर तीन गुना से ज्यादा अंग्रेजी बबूल है। यह लगातार फैलता जा रहा है।
पहले कंटीले बबूल साफ करने के लिए मजदूर लगाना पड़ता था। बबूल का कांटा सख्त और नुकीला होने से श्रमिकों को काटने में परेशानी होती थी। ये मवेशियों और जानवरों का भी दुश्मन है। बारिश के दिनों में सडक़ के दोनों ओर फैलने से हादसों में इजाफा होता है, लेकिन जब से क्षेत्र में बबूल से कोयला बनाने कार्य चालू हुआ है। तब से जहां किसानों को बबूल से मुक्ति मिल रही है, वहीं आर्थिक लाभ हो रहा है।

ऐसे बनता है कांटों से कोयला
जाब्दीनगर में अंग्रेजी बबूल से कोयला बनाने वाले कोटा व बारां के श्रमिकों ने बताया कि पहले बबूल को जड़ से उखाड़ते हैं फिर कुछ दिन धूप में सुखाते हैं। सूखने के बाद बबूल की टहनियां व कांटेदार लडक़ी को अलग कर देते है। भट्टी में बबूल की जड़ों को डाला जाता है। बाद में आग लगा दी जाती है और भट्टी को बंद कर दिया जाता है। करीब आठ 8-10 दिन में भट्टी में कोयला बनकर तैयार होता है। एक भट्टी में 3 से 4 क्विंटल कोयला बनता है।
भट्टे में टहनियों की कुतर आती है काम
बबूलों की जड़ों से कोयला बनाता है, वहीं इनकी हल्की टहनियों व कांटेदार लडक़ी को मशीन से बारीक पीसकर भट्टों पर काम में लिया जाता है। इससे भी आमदनी हो जाती है।

इनका कहना
जाब्दीनगर ग्राम पंचायत से सवा तीन लाख रुपए में तीन साल के लिए अंग्रेजी बबूलों का टेंडर लिया है। लॉकडाउन में थोड़ा काम प्रभावित हुआ है। यहां 13 भट्टी में कोयला बनता है। कोयला बनाने के लिए कोटा व बारां के श्रमिक लगा रखे हैं। कोयला 15 रुपए प्रति किलो के भाव से बिकता है।
जयप्रकाश जाट, कोयला व्यापारी
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