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नागौर में पैदा हुआ प्लास्टिक बेबी, डाल्फिन मछली की तरह चमकते बच्चे को देख परिवार सदमे में

locationनागौरPublished: May 17, 2019 03:41:15 pm

Submitted by:

Nidhi Mishra

6 लाख में से एक बच्चा होता है प्लास्टिक की परत के साथ पैदा

collodion baby born in Nagaur

collodion baby born in Nagaur

नागौर। नागौर जिले में शुक्रवार को जिला हॉस्पिटल राजकीय जवाहरलाल नेहरू चिकित्सालय के मदर एण्ड चाइल्ड विंग में विश्व की दुर्लभतम बीमारियों में कोलोडियन बेबी हुआ। बच्चे की हाथ और पैरों की उंगलियां परस्पर जुड़े होने के साथ ही पूरे शरीर पर प्लास्टिक सरीखी स्किन की पर्त चढ़ी हुई है। चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि यह बीमारी छह लाख बच्चों में से एक को होता है। इसमें टरमीटोसिस होता है। इसमें सांस लेने में तकलीफ होती है। इसमें धीरे-धीरे इस तरह की समस्याएं और बढ़ती हैं। बच्चा फिलहाल चिकित्सकों की निगरानी में है। इधर बच्चे की इस हालत से परिवार सदमे में है।

जिले के निकटवर्ती गूढ़ा भगवानदास गांव के रहने वाले सहदेव का यह पांचवां बच्चा है। इसके पूर्व तीन बच्चे हुए थे, लेकिन उनकी मृत्यु हो चुकी है। चौथा जरूर जीवित है, अब यह पांचवां बच्चा पैदा हुआ तो यह दुर्लभतम जटिल बीमारी से ग्रसित पाया गया। प्लास्टिक सरीखी पर्त में हुए बच्चे को देखकर चिकित्सक भी हैरान रह गए। सहदेव ने बताया कि पत्नी को गॉयनिक समस्या होने पर प्रसव के लिए भर्ती कराया गया। उस समय किसी ने नहीं सोचा था कि प्लास्टिक बेबी पैदा होगा। इसके पैदा होते ही डॉक्टर्स और नर्स दोनों ही हतप्रभ हर गए। इसके बाद सहदेव ने भी देखा तो वह उसे डाल्फिन मछली की तरह चमकता हुआ लग रहा था। बच्चे की स्थिति को गंभीर देखते हुए रेफर कर दिया गया। बच्चे का वजन 2.3 किलोग्राम है।

डॉ. मूलाराम कड़ेला ने बताया कि जेनेटिक डिसऑर्डर के कारण होती है। दुनिया भर में छह लाख बच्चे के जन्म पर एक ऐसा बच्चा पैदा होता है। जिंदगी और मौत से जद्दोजहद कर रहा बच्चे की हालत से परिवार सदमे में है। इसके पूर्व अलवर में भी एक ऐसा ही बच्चा पैदा हुआ था। यह कोलोडियन बीमारी वर्ष 2014 व 2017 में अमृतसर में दो कोलोडियन बच्चों का जन्म हुआ था। दुर्भाग्यवश दोनों की चंद दिनों बाद ही मौत हो गई थी।

चिकित्सा जगत में हुई शोध के अनुसार कोलोडियन बेबी का जन्म जेनेटिक डिस्ऑर्डर की वजह से होता है। ऐसे बच्चों की त्वचा में संक्रमण होता है। कोलोडियन बेबी का जन्म क्रोमोसोम (शुक्राणुओं) में गड़बड़ी की वजह से होता है। सामान्यत महिला व पुरुष में 23-23 क्रोमोसोम पाए जाते हैं। यदि दोनों के क्रोमोसोम संक्रमित हों तो पैदा होने वाला बच्चा कोलोडियन हो सकता है। इस रोग में बच्चे के पूरे शरीर पर प्लास्टिक की परत चढ़ जाती है। धीरे-धीरे यह परत फटने लगती है और असहनीय दर्द होता है। यदि संक्रमण बढ़ा तो उसका जीवन बचा पाना मुश्किल होगा। कई मामलों में ऐसे बच्चे दस दिन के भीतर प्लास्टिक रूपी आवरण छोड़ देते हैं। इससे ग्रसित 10 प्रतिशत बच्चे पूरी तरह से ठीक हो पाते हैं। उनकी चमड़ी सख्त हो जाती है और इसी तरह जीवन जीना पड़ता है।
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