‘भक्ति में लगा विचारवान व्यक्ति परमात्मा को पाता है’
डेह. रामस्नेही संत आनंदी राम आचार्य ने कहा कि भक्ति में लगे बिना केवल समस्त कर्मों का परित्याग करने से कोई सुखी नहीं बन सकता, परन्तु भक्ति में लगा हुआ विचारवान व्यक्ति शीघ्र ही परमेश्वर को प्राप्त कर लेता है। कस्बे के रामद्वारा में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संन्यासी दो प्रकार के होते हैं। मायावादी संन्यासी सांख्यदर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं तथा वैष्णव संन्यासी वेदान्त सूत्रों के यथार्थ भाष्य भागवत.दर्शन के अध्ययन में लगे रहते हैं। मायावादी संन्यासी भी वेदान्त सूत्रों का अध्ययन करते हैं, किन्तु वे शंकराचार्य द्वारा प्रणीत शारीरिक भाष्य का उपयोग करते हैं। भागवत सम्प्रदाय के छात्र पांचरात्रि की विधि से भगवान की भक्ति करने में लगे रहते हैं, अत: वैष्णव संन्यासियों को भगवान् की दिव्य सेवा के लिए कई प्रकार के कार्य करने होते हैं। उन्हें भौतिक कार्यों से सरोकार नहीं रहता, किन्तु तो भी वे भगवान् की भक्ति में नाना प्रकार के कार्य करते हैं, किन्तु मायावादी संन्यासी, जो सांख्य तथा वेदान्त के अध्ययन एवं चिन्तन में लगे रहते हैं, वे भगवान् की दिव्य भक्ति का आनन्द नहीं उठा पाते, चूंकि उनका अध्ययन अत्यन्त जटिल होता है। अत: वे कभी-कभी ब्रह्मचिन्तन से ऊब कर समुचित बोध के बिना भागवत की शरण ग्रहण करते हैं। फ लस्वरूप श्रीमदभागवत का भी अध्ययन उनके लिए कष्टकर होता है।