scriptडीडवाना के पाढाय मंदिर में 14 दिन होती है घट स्थापना | Deedwana's Padayav Temple is 14 days in decline | Patrika News

डीडवाना के पाढाय मंदिर में 14 दिन होती है घट स्थापना

locationनागौरPublished: Oct 11, 2018 07:12:34 pm

Submitted by:

Pratap Singh Soni

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Didwana News

डीडवाना. मंदिर में विराजित पाढाय माता की प्रतिमाएं(बालिका रूप व महिषासुर मर्दिनी के रूप मे)।

कैर के दो वृक्षों से प्रकट हुई थी माता, साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश देती मंदिर के पास स्थित मस्जिद
डीडवाना. यूं तो नवरात्र के मौके पर माता के सभी मंदिरो में 9 दिन तक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, लेकिन डीडवाना के 12 किलोमीटर दूर मारवाड़ बालिया के पास स्थित पाढाय माता मंदिर में नवरात्र के मौके पर 14 दिन तक घट स्थापना होती है। मंदिर में लगे शिलालेख के अनुसार मंदिर का निर्माण लगभग 1173 वर्ष पूर्व हुआ था। यहां पर वर्ष में दो बार नवरात्र के अवसर पर 14 दिन तक घट स्थापना होती है। वर्ष में एक बार चैत्र चतुर्दशी के मौके पर मेले का आयोजन किया जाता है। मंदिर न केवल स्थानीय बल्कि राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, गुजरात, हरियाणा सहित अन्य स्थानों के लाखो श्रद्धालुओं की आस्था का केन्द्र है। यहां एक बड़ी विशेषता यह भी है कि मंदिर के ठीक पास में ही मस्जिद है जो कि लगभग साढे चार सौ वर्ष पुरानी बताई जा रही है। सैकड़ो वर्षो से मंदिर मस्जिद का पास होना साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल है। मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा को लेकर भी कहा जाता है कि यहां लगे कैर के दो वृक्ष हैं जहां से माता प्रकट हुई थीं।

ऐसे प्रकट हुई माता
माता के दो मंदिर है, एक डीडवाना स्थित मंदिर है, जिसका निर्माण मंदिर में लगे शिला लेख के अनुसार विक्रम संवत 902 को हुआ थ। जिसे पाढाय माता को परा, पराख्या, पड़ाय, पाड़ला, पाढा, पाढाय, पाड़ोदा, पाण्डोख्या, पाण्डुक्या के नाम से भी पूकारते है। दूसरा मंदिर पांडोराई में है जहां माता को पाण्डोख्या व पाण्डुक्या के नाम से पूजा जाता है। डीडवाना के पाढाय माता मंदिर के संबध में वर्षाे से चला आ रहा एक कथानक है, जिसके अनुसार माता यहां स्थित कैर के दो वृक्षों से प्रकट हुई थी। कथा के अनुसार प्राचीन समय में यहां जंगल था। जहां गाय चरा करती थी, उन गायों में एक सेठ की गाय भी चरने आती थी जो कि वहां स्थित कैर के वृक्ष के पास बैठ जाती। कथा के अनुसार कैर के वृक्ष से एक कन्या प्रकट होती ओर गाय का दूध पी जाती। सेठ ने चरवाहे से पूछा गया कि गाय का दूध कौन निकाल लेता है तो उसने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए पता लगाने की बात कही। चरवाहे ने गाय की निगरानी की तो पाया कि कैर के वृक्ष से एक कन्या प्रकट होकर गाय का दूध पी रही हैं। यह बात उसने शाम को सेठ से कही। जिसके बाद सेठ भी उस स्थान पर गया। उसने भी देखा कि एक बालिका गाय का दूध पी रही है। सेठ ने बालिका से पूछा आप कौन हो? तो कन्या ने कहा मैं आदिशक्ति हूं। तू मेरा मंदिर बना। सेठ ने कहा कि मंदिर बनाने के लिए मैं असमर्थ हूं, इतना धन मेरे पास नही। तो कन्या ने कहा कि तू तेरे घोड़े को लेकर चला जा, जहां तक तेरा घोड़ा दौड़ेगा वह स्थान चांदी की खान में बदल जाएगा। सेठ ने जब घोड़ा दौड़ाया तो धरती कांपने लगी। घबराते हुए सेठ ने पीछे मुड़ कर देख लिया। ओर माता के पास जाकर बोला कि यदि यह जमीन चांदी की खान मे बदल गई तो लोग इसे लूट लेंगे। जिसके बाद कहा जाता है कि माता ने स्थान को कच्ची चांदी (नमक की खान) में बदल दिया।

अन्य भी कथा
पाढाय माता के चमत्कारों को बताने वाली ओर भी कथाएं है। मंदिर पुजारी मोहनलाल सेवक ने बताया कि विश्वभर में प्रसिद्ध डीडवाना की नमक की खान माता का ही आशीर्वाद है। साथ ही जिस सेठ भैरूलाल सारड़ा ने मंदिर का निर्माण करवाया था उस संबध में भी एक कथा है जिसके अनुसार सेठ की र्मंछ का एक बाल एक लाख रुपए की कीमत का था। लक्खी बनजारे की माता के द्वारा डाकुओं से रक्षा करना, झील क्षेत्र में बरसों पहले भरे पानी को अंग्रेज अधिकारी की प्रार्थना के बाद माता द्वारा सुखा देने की कथा भी है। कथा के अनुसार अंग्रेज अधिकारी की ओर से मंदिर में बरामदा भी बनवाया गया।

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