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खेजड़ी का लूंग बना पशुपालकों का आर्थिक सहारा

locationनागौरPublished: Nov 26, 2018 06:08:35 pm

Submitted by:

Anuj Chhangani

रेतीले धोरों का कल्पवृक्ष

Roon news

खेजड़ी का लूंग बना पशुपालकों का आर्थिक सहारा

रुण. क्षेत्र के प्रत्येक गांव में इन दिनों किसान अपने खेतों में लगी खेजड़ी की छंगाई में व्यस्त हैं। मारवाड़ का कल्पवृक्ष कहलाने वाले खेजड़ी के वृक्ष किसानों व पशुपालकों के आर्थिक मददगार साबित हो रहे हैं। खेजड़ी के लूंग से किसानों को अच्छी आमदनी हो रही है। मारवाड़ के जोधपुर, नागौर, जैसलमेर, बाड़मेर सहित रेतीले धोरों व पहाड़ी इलाकों में उगने वाले खेजड़ी के पेड़ सागवान की तरह नजर आते हैं। मारवाड़ में अकाल हो या सुकाल यह कल्पवृक्ष हर वर्ष किसानों व पशुपालकों के लिए मददगार रहा है। इन दिनों कई खेत खाली होने की वजह से किसान इन वृक्षों की छंगाई में व्यस्त है। खेजड़ी का लूंग भेड़,बकरियों, गाय ,भैंसों के खाने में मुख्य खुराक होती है। दीपावली का त्योहार निकलते ही किसान खेजड़ी की छंगाई में लग जाते हैं। किसान रामरतन जांगिड़ ,सरवन जांगिड़ ने बताया कि इन दिनों लूंग के भाव 7 से लेकर 10 रुपए किलो तक मिल रहे हैं। किसान सूखी टहनियां ईधन के लिए एकत्रित करने में जुटे हैं। खेजड़ी छंगाई में लगे मजदूरों को प्रतिदिन 600 रुपए से ज्यादा की मजदूरी मिल रही है। मजदूर एक दिन में 8 से 10 वृक्षों की छंगाई कर देते हैं। कृषि पर्यवेक्षक अनिल कुमार वर्मा ने बताया कि खेजड़ी के वृक्ष की अगर किसान अच्छे से सार संभाल करे तो यह वृक्ष फलदार वृक्षों से ज्यादा कमाई देने वाला साबित हो सकता है। खेजड़ी के वृक्षों की टहनियों पर असंख्य छोटी-छोटी पत्तियां होती है। इन पत्तियों को ही मारवाड़ी में लूंग कहते हैं। इस लूंग को पशु चाव से खाते हैं। किसान इन पत्तियों को सूखाकर स्टॉक कर लेते हैं और वर्ष भर पशुओं को खिलाते हैं। असिंचित क्षेत्रों में किसान सूखे चारे के साथ मिलाकर या फिर लूंग को हांडे में उबालकर बांटे के रूप में पशुओं को खिलाते हैं। यह लूंग पशुओं के लिए पौष्टिक आहार माना जाता है। इससे उनके दूध और घी की मात्रा बढ़ती है।

एक पंथ दो काज
किसानों को मारवाड़ के इस कल्पवृक्ष से दो फायदे होते हैं। लूंग पशुओं को खिलाया जाता है और टहनियां ईंधन के रूप में काम में लेते हैं।

विश्नोई समाज नहीं करता खेजड़ी की छंगाई
मारवाड़ में विश्नोई समाज के लोग खेजड़ी की छंगाई या कटाई को अपराध मानते हैं। गुरु जंभेश्वर भगवान ने 17 नियमों के पालन में खेजड़ी को काटना वर्जित बताया था। गुरु के बनाए नियमों की पालना के लिए इस वृक्ष की छंगाई विश्नोई समाज नहीं करता है।

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