लेकिन शराब की दुकानें खुली हुई हैं। पुस्तकें हमारा भविष्य संवारती हैं, जबकि नशा व्यक्ति के जीवन को बर्बाद कर देता है। इसके बावजूद इस तरह के दृश्य सामने आ रहे हैं कि एक ही शहर में शराब की दुकान पर ग्राहक आ रहे हैं, जबकि स्टेशनरी की दुकानों के शटर डाउन हैं। यानी, शराब खुल कर खरीद सकते हैं, लेकिन जिस पढ़ाई से बच्चों का भविष्य बनेगा, उससे संबंधित संस्थान खोलने के लिए सरकार ने कोई अनुमति नहीं दी है। गाइडलाइन बनाते समय सरकार यह क्यों नहीं तय कर पाई कि समाज के लिए जरूरी क्या है, किताब या शराब?
अवैध शराब की दुकानें खोलकर सोशल डिस्टेंस की कर रहे पालना
यह सत्य है कि सरकार द्वारा जारी आदेश में शराब बिक्री करने वाले एक आदेश को आसानी से पालन कर रहे हैं। उपखण्ड क्षेत्र में शराब की अवैध ब्रांचों का संचालन कर दूरी के साथ सोशल डिस्टेंस बनाकर लोगों को शराब उपलब्ध करा रहे हैं। क्षेत्र में पुरानी रेल्वे स्टेशन, मोहनपुरा रोड , जोगियों के आसन, गंगा सागर रोड, रेल्वे पुलिया के पास सहित अनेक इलाकों में अवैध ब्रांचों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं।