सूत्रों के अनुसार चंद्रप्रकाश, रामकुंवार समेत 23 कांस्टेबल को पदोन्नत कर हैड कांस्टेबल बनाया गया है। इनमें चार एससी/चार एसटी तो पंद्रह जनरल वर्ग के हैं। करीब तीन माह पूर्व पंद्रह कांस्टेबल हैड कांस्टेबल बनाए गए थे। एक अनुमान के मुताबिक सात-आठ साल से रुकी पदोन्नति दिसम्बर तक पूरी होगी। वरिष्ठता को लेकर हाईकोर्ट में दाखिल एक याचिका के कारण एएसआई-हैड कांस्टेबल पदों पर पदोन्नति करीब आठ-नौ साल से रुकी हुई थी। 36 छाया (काल्पनिक) पद पर चल रहे इस विवाद का पटाक्षेप गत अप्रेल में हुआ, जब सरकार ने छाया पद स्वीकृत कर दिए। इन छाया पदों पर वरीयता के आधार पर भर्ती दी गई।
नागौर-डीडवाना जिले में एएसआई (सहायक उप निरीक्षक) के स्वीकृत पदों की संख्या 292 है जबकि इस समय केवल ढाई दर्जन यानी तीस एएसआई पद पर कार्यरत हैं। जबकि अस्सी-नब्बे पद हैड कांस्टेबल के भी खाली हैं। सूत्र बताते हैं कि नागौर (डीडवाना-कुचामन) में एक अनुमान के मुताबिक हजार की आबादी पर एक पुलिसकर्मी तक नहीं है। यहां आबादी करीब 37 लाख के आसपास बताई जाती है, कुल पुलिसकर्मियों की संख्या 2300 के आसपास है। नई भर्ती नहीं हो रही और उस पर 122 हैड कांस्टेबल और कम किए जा रहे हैं। करीब दस साल पहले ये पद बढ़ाए गए थे, तब से यह चल भी रहे थे पर वर्ष 2024-25 से इनको खत्म किया जा रहा है।
…तो ऐसे-कैसे पूरे होंगे हैड कांस्टेबल/एएसआई के पद सूत्र बताते हैं कि लम्बित पदोन्नति पूरी करने के बाद भी हैड कांस्टेबल के रिक्त पद पूरे नहीं होंगे। वो इसलिए कि इतने कांस्टेबल पदोन्नति की कतार में नहीं है। जैसे-तैसे हो भी गए तो नई भर्ती हो नहीं रही और 122 हैड कांस्टेबल के पद और कम किए जा रहे हैं। यानी जितने पद भरे जाएंगे उससे अधिक तो रिक्त होंगे। लगभग यहीं हाल एएसआई पद का है, अभी ढाई सौ पद रिक्त हैं, हैड कांस्टेबल से एएसआई पद पर महज पंद्रह-सोलह की पदोन्नति हुई है, उनमें भी आधे बाहरी जिलों में हैं। यह पदोन्नति वैसे भी पचास-साठ से ज्यादा नहीं होनी है, एएसआई पद पर सीधी भर्ती भी नहीं है, ऐसे में खाली पद फिर खाली रह जाएंगे।
जांच पड़ी रहती है, बदलते रहते हैं आईओ लम्बित जांच पुलिस के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द है। ठगी/धोखाधड़ी हो या चोरी/नकबजनी और तो और हत्या या फिर बलात्कार के अनेकानेक मामलों में अनुसंधान की रफ्तार काफी धीमी रहती है। अनुसंधान का अधिकाधिक काम हैड कांस्टेबल/एएसआई के जिम्मे रहता है। उस पर आए दिन की डीओ ड्यूटी, कोर्ट-कचहरी का काम तो जनता से जुड़ी वारदात/ राजनीतिक/ धार्मिक/ सामाजिक कार्यक्रम की जवाबदेही ही नहीं चुनाव समेत अन्य पाबंदी के काम। ऐसे में बड़े केस/मामले खासतौर से चोरी/नकबजनी/लूट ही नहीं हत्या समेत कई बड़ी वारदात के आरोपी तक पकड़ में नहीं आते । ऐसे में अनुसंधान कैसे जल्द पूरा हो, अपराधी पुलिस समय पर कैसे पकड़े। चोरी/नकबजनी के पचास फीसदी से अधिक मामलों में एफआर तक लगा दी जाती है। असल में सीसीटीवी फुटेज अथवा अन्य किसी सूत्र से मिली जानकारी के आधार पर बदमाश को पकडऩे जाए कौन, गिने-चुने पुलिसकर्मी रोजमर्रा की ड्यूटी में लगे रहते हैं।
नया तौर-तरीका और उलझा रहा काम नए आपराधिक कानून में अनुसंधान पूरी तरह आडियो/वीडियो पर आधारित है। घटनास्थल से समूची रिकॉर्डिंग कर आईओ (जांच अधिकारी) सीधे ऐप पर डालने में उलझा है। यही नहीं सभी एविडेंस/बयान आदि भी इसी के जरिए हो रहे हैं। किसी थाना इलाके में दो-तीन घटनाएं एक साथ होने पर आईओ तक नहीं होते। आपराधिक मामले की चार्जशीट समय पर पेश करने व फरियादी को समय-समय पर मामले की जानकारी देने का जिम्मा भी आईओ का है। मुश्किल यह है कि हैड कांस्टेबल से एएसआई पहले ही पूरे नहीं हैं और जो हैं वो आधुनिक अनुसंधान के तरीकों में पूरी तरह फिट नहीं है।
इनका कहना पदोन्नति की प्रक्रिया चल रही है, दिसम्बर तक लम्बित पदोन्नति पूरी हो जाएंगी। अब देखना है कि पदोन्नति के बाद एएसआई/हैड कांस्टेबल के कितने पद रिक्त रहते हैं। यह भी सही है कि पूरे पद नहीं भरेंगे। अनुसंधान में हैड कांस्टेबल और एएसआई ही महत्वपूर्ण कड़ी है, इनकी कमी से जांच में समय लगता है।
-नारायण टोगस, एसपी नागौर