पुलिस के दरबार में झूठी एफआइआर का अम्बार
नकबजनी, डकैती की वारदात सच्ची, माल को ज्यादा बताने का चलन
वर्ष 2019 से वर्ष 2021 तक
जिलेभर में दर्ज मामलों की हकीकत
बीस फीसदी मामलों में प्रारंभिक जांच के बाद एफआर के हालात
बलात्कार, अपहरण ही नहीं हत्या व लूट तक के मामलों में हेराफेरी : तीन साल में तीस फीसदी मामले झूठे
नागौर
Published: June 25, 2022 09:21:04 pm
संदीप पाण्डेय नागौर. थाने में एफआइआर दर्ज करने से पुलिस की ना-नुकर बंद होने को भले ही सुकून माना जाए पर झूठे मामलों की बढ़ी संख्या ने पुलिस का चैन लूट लिया है। चोरी-नकबजनी को छोड़ दें तो अधिकांश आपराधिक वारदातों के दर्ज मामलों में बीस से तीस फीसदी तक झूठे निकल रहे हैं।
दर्ज आपराधिक मामलों की संख्या देखकर हर कोई खाकी को कटघरे में खड़ा देता है, लेकिन झूठे मामले दर्ज कराकर पुलिस का काम बढ़ाने वालों पर न कोई निशाना साधता है न ही कार्रवाई होती है। पिछले तीन साल के नागौर जिले के आपराधिक आंकड़ों को देखने से पता चला कि कई वारदातें तो घटी ही नहीं और पुलिस में दर्ज कर लम्बी जांच तक करवा दी।
सूत्रों के अनुसार अपराध बढ़ रहा है, इस पर किसी को कोई शंका नहीं है। कुछ बरस पहले तक थानों में एफआईआर दर्ज कराने में यूं तो किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। कई बार ना-नुकर के साथ ही अन्य सिफारिश-साधनों से रिपोर्ट दर्ज हो पाती थी। हालात सुधरे, नियम-कायदे कड़े हुए तो एफआईआर लिखवाना हर किसी के लिए बड़ा आसान सा हो गया।
अब हालात यह है कि दर्ज एफआइआर की कॉपी तक फरियादी को तुरंत मुहैया करा दी जाती है। इसे अच्छा संकेत माना जाने लगा, लेकिन इसका बुरा असर यह भी हुआ कि दर्ज आपराधिक मामलों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी हुई। मामूली कहासुनी-मारपीट से लेकर छोटे-मोटे सामान की चोरी तक की रिपोर्ट दर्ज होने लगी। बड़ा परिवर्तन यह भी हुआ कि बड़ी-बड़ी आपराधिक वारदातों को सच बताकर मामले दर्ज होने लगे।
लज्जाभंग से लेकर जातिसूचक गालियां तक: सूत्रों का कहना है कि जिले में रोजाना करीब डेढ़ दर्जन मामले दर्ज होते हैं। अधिकांश छोटी-मोटी लड़ाई के। महिला, युवती लज्जा भंग का मामला दर्ज कराएगी तो कई जातिसूचक गालियां देने का। यही नहीं जान से मारने के लिए हथियार लाने के अलावा घर से नकदी ले जाने, तोडफ़ोड़ करने के दर्ज मामलों का अंबार लगा हुआ है। इसमें बीस फीसदी मामले ही सही होते हैं, अधिकांश में तिल का ताड़ बना दिया जाता है। छोटी सी घटना को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है। यह पिछले तीन सालों में दर्ज करीब 17 हजार मामलों में से 6 हजार मामले केवल दर्ज कराने की रस्म अदायगी निकले, यानी तीस फीसदी से अधिक को प्रारंभिक जांच में ही खारिज कर दिया गया।
इन तीन साल के अपहरण, बलात्कार के आंकड़ों पर नजर डाले तो इनमें पचास फीसदी से अधिक मामले रंजिशन फंसाने के लिए नामजद कराए गए। अधिकांश मामलों में पहले से मित्रता, रिलेशन होने पर भागने अथवा पकड़े जाने पर पारिवारिक दबाव के चलते अपहरण, बलात्कार के मामले झूठे दर्ज कराए जाते हैं। वर्ष 2019 में बलात्कार के 170 मामले में से 77, वर्ष 2020 में दर्ज 149 में से 56 व वर्ष 2021 में दर्ज 183 में से 58 मामले झूठे पाए गए हैं। इसी तरह अपहरण के मामलों में तो स्थिति इससे भी भयावह है। प्रेम संबंधों में भागने के मामलों में अधिकांश अपहरण के मामले दर्ज होते हैं। रिकॉर्ड के अनुसार वर्ष 2019 में दर्ज 221 में से 139, वर्ष 2020 में 171 में से 83 व 2021 में 217 में से 90 एफआइआर फिजूल दर्ज हुई थीं।
सूत्रों के अनुसार पिछले तीन साल में जिलेभर के थानों में 168 हत्या के मामले दर्ज किए गए। वर्ष 2019 में 67 मामले दर्ज हुए, जिनमें करीब पंद्रह मामले पूरी जांच के बाद झूठे पाए गए। दो मामलों में तो साथी के साथ गए व्यक्ति की दुर्घटना में मौत होने पर परिजनों ने मित्रों के खिलाफ ही मामला दर्ज करा दिया। इसी तरह आपसी-कहासुनी, पारिवारिक कलेश समेत कई ऐसे वाकये में हत्या का मामला झूठा निकला, पुलिस को एफआर तक लगानी पड़ी। वर्ष 2020 में 36 में से सात व वर्ष 2021 में दर्ज 34 में से 9 मामले जांच के बाद हकीकत से परे यानी फर्जी पाए/लिखाए गए।

चोरी-नकबजनी को छोड़ दें तो अधिकांश आपराधिक वारदातों के दर्ज मामलों में बीस से तीस फीसदी तक झूठे निकल रहे हैं।
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