scriptगुमनामी में खोई ग्लास पेटिंग आर्ट | Glass painting art lost in oblivion | Patrika News
नागौर

गुमनामी में खोई ग्लास पेटिंग आर्ट

रवीन्द्र मिश्रा
नागौर . यूं तो चित्रकारी कला की कई शैली है। इनमें मारवाड़, बूदीं, किशनगढ़ व ढूढांढ शैली प्रमुख है। इन शैलियों में काम करते हुए कई चित्रकारों ने देश-विदेश में नाम कमाया। लेकिन यहां हम बात कर रहे हैं मुगलकालीन ग्लास पेंटिंग की, जो आज गुमनामी में खोने लगी है।

नागौरJan 24, 2022 / 05:34 pm

Ravindra Mishra

गुमनामी में खोई ग्लास पेटिंग आर्ट

नागौर. पेटिंग बनाते इलाही बक्श खिलजी


पत्रिका टेलेन्ट

– नागौर शहर में इस कलाकारी को जिंदा रखे हुए थे

80 वर्षीय घनश्याम पाराशर

– धार्मिक स्थलों व महलों में नजर आती है ग्लास पेंटिंग

– कम्प्यूटर डिजाइनिंग व पोर्टेट के बढ़ते चलन ने कम किया क्रेज
नागौर के चुनिंदा चित्रकारों में शामिल 80 वर्षीय घनश्याम पाराशर ऐसे कलाकार थे, जो इस शैली को नागौर में जीवंत रखे हुए थे। उनकी बनाई ग्लास पेंटिंग आज भी कई धार्मिल स्थलों व मंदिरों में अपना सौन्दर्य बिखेर रही है। यह कला रिवर्स पेंटिंग के नाम से भी जानी जाती है।
घनश्याम पाराशर थे ग्लास पेंटिंग के आर्टिस्ट
शहर के चित्रकारों ने बताया कि ग्लास पेंटिंग को दर्पण में उल्टा बनाया जाता था। इसकी खासियत यह है कि बाद में नजर आने वाले हिस्से को पहले बनाया जाता है। जैसे चेहरा, नाक आदि। आउट लाइन के बाद फेस कलर किया जाता है। यह मुगल शैली का हिस्सा है। इसे ईरानी आॢटस्ट बनाते थे। चित्रकार इलाहीबक्श खिलजी के अनुसार नागौर में पेशे से शिक्षक रहे घनश्याम पाराशर इस शैली की चित्रकारी के अच्छे जानकार थे। इन्होंने राठौड़ी कुआ स्थित सदगुरु रामद्वारा में ग्लास पर पेंटिंग की है, जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करती हैं। पाराशर प्रमुख रूप से धार्मिक चित्र बनाते थे। इस शैली में बेल-बूटे, राजा-महाराजाओं की तस्वीर, देवी-देवताओं की तस्वीर व प्राकृतिक दृश्यों को दर्शाती हुई चित्रकारी शामिल थी। इसमें ऑयल पेंट व ग्लास कलर का इस्तेमाल किया जाता है। मुगलकालीन इस शैली को भारतीय चित्रकारों ने ब्रिटिश शासन के समय ऊंचाईयां दी। हाल ही में पाराशर का निधन हो गया है।
नागौर में यहां मिलती है ग्लास पेंङ्क्षटग
नागौर शहर में बंशीवाला मंदिर, कांच का मंदिर व रामद्वारा सहित कई मंदिरों में ग्लास पेंटिंग को बहुत खूबसूरती से उकेरा गया है। आगरा के ताजमहल, लाल किला में भी यह कला नजर आती है।
भारत में मुगलकाल में प्रारम्भ हुई चित्रकला
शहर के चित्रकार बताते है कि भारत में चित्रकला का विकास हुमायूं के शासन-काल में प्रारंभ हुआ। शेरशाह से पराजित होने के बाद उसने ईरान में रहते तारीख-ए-खानदानी तैमुरिया की पाण्डुलिपि को चित्रित करने के लिए इरानी चित्रकारों की सेवा प्राप्त की। भारतीय चित्रकार अधिकतर धार्मिक विषयों का चित्रण करते थे। जबकि इरानी चित्रकारों ने राजदरबारों के जीवन, युद्ध के दृश्य आदि का चित्रण किया। इसी दौर में कांच पर की जाने वाली ग्लास पेंटिंग भी भारत में आई और देश के कई हुनरमंद चित्रकारों ने इस कला में काफी नाम कमाया।
बचपन के शौक ने खिलजी को बना दिया हुनरमंद
बाल्यावस्था में भगवान के मिले उपहार और लगन ने एक ऐसे बालक को हुनरमंद बना दिया, जिसने पठान परिवार में जन्म लिया। राजाओं के समय पठानों का काम सिपाही के तौर पर लडऩा हुआ करता था। यह शख्सियत है पठानों का मोहल्ला में रहने वाले 63 वर्षीय इलाहीबक्स खिलजी। पेशे से सरकारी शिक्षक रहे इलाहीबक्स भी चित्रकारी के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम है। वे बताते हैं कि उन्हें बचपन से चित्रकारी करने का शौक रहा है। उनका गांधी चौक में रियासत की ओर से मिला दो मंजिला मकान है, वहां पूरा परिवार रहता था। बीएसएफ में पेंटर थे आनन्द, जो किले में तैनात थे। वे उनके पास पेंङ्क्षटग सीखने जाया करते थे। बारह साल की उम्र में उन्होंने मेरे चित्रकारी के शौक को परवान चढ़ाया। दसवीं कक्षा पास करने के बाद चित्रकारी सीखने की ललक में नागौर शहर छोटा लगने लगा तो मुम्बई चले गए। वहां फिल्म सिटी में पोस्टर आर्टिस्ट महेश कुमार से पेंटिंग की कई शैली सीखी।पढ़ाई की अहमियत पता चली तो लौटे नागौर
खिलजी बताते हैं कि छह साल मुम्बई में रहने के बाद जीवन में पढ़ाई की अहमियत पता चली। वापस नागौर लौट कर कॉलेज की पढ़ाई की और बीएड करके अंग्रेजी विषय का अध्यापक बना। लेकिन इस बीच अपने चित्रकारी के शौक को भी बरकरार रखा। पत्नी अनिशा खिलजी भी गिनाणी बालिका विद्यालय में चित्रकला की अध्यापिका है। नातिन जोया व नाती विवान छोटी उम्र में ही फिल्मों व एड फिल्मों में काम करने लगे हैं।
मॉर्डन ऑर्ट खास पसंद
खिजली पोर्टेट, सीनरीज, राजस्थानी शैली व मॉर्डन आर्ट पर काम करते हैं। इनकी बनाई मॉर्डन आर्ट देश की कई आर्ट गैलेरियों में प्रदर्शित हो चुकी है। नागौर किले में लगी अमरसिंह राठौड़ की छह फीट ऊंची आदमकद पेंटिंग भी इन्हीं की बनाई हुई है। हाल ही में जिला स्टेडियम में ओलम्पिक खेलों व खिलाडिय़ों से जुड़ी तस्वीरों की वालपेंटिंग की। ओल्ड इंग्लिश मेंं अक्षर लिखना इनका खास हुनर है। इसमें अक्षर ऐसे लगते हैं जैसे स्टेन्सिल काटा गया हो। यूनानी शिलालेख इसी शैली में लिखे मिलते हैं। जिला प्रशासन खिलजी को इनकी कला के लिए कई बार सम्मानित कर चुका है। हाल ही में अभिनेता विवेक ओबेराय ने भी इन्हें प्रशंसा पत्र भेजा है।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो