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गौण हुई नमक की चमक

locationनागौरPublished: Nov 25, 2018 12:08:28 am

Submitted by:

Pratap Singh Soni

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Nawa City News

नावां में एक नमक उत्पादन की क्यारियों में कार्य करते नमक श्रमिक।

नावां शहर. नमक नगरी नावां में पिछले कई दिनों से वर्षा से बाधित नमक उत्पादन में फिर एक बार तेजी आई है। अभी मौसम नमक उत्पादन के लिए अनुकूल माना जा रहा है। बाजार में मंदी होने के चलते नमक उत्पादकों के चेहरों पर कोई चमक नहीं है। बारिश में नमक उत्पादन बंद हो गया था। दीपावली के बाद नमक उद्यमियों ने अपने खारड़ों में सफाई करवा कर नमक उत्पादन शुरू किया ही है। अब इन दिनों दोपहर में चटक धूप रहने से नमक का उत्पादन प्रगति पर है। हर वर्ष गर्मी के मौसम में जहां नमक का अधिक उत्पादन होता है तो भाव पचास से साठ रूपए प्रति क्विंटल रहते हैं, लेकिन सर्दी के मौसम में जहां नमक रिफाइनरी में कच्चे माल की आवश्यकता बढती थी वहीं नमक के भावों में भी तेजी आ जाती थी। लेकिन इस वर्ष बाजार में मंदी होने व माल का उठाव कम होने के चलते नमक के भावों में तेजी नहीं आई है। अब नमक उत्पादकों के चेहरे मुरझाएं हुए है। आगामी दिनों में यदि मौसम अनुकूल रहता है तो नमक उत्पादन में तेजी आने की संभावना है।

कब कितना होता है उत्पादन
अजमेर जिले व नागौर जिले के नमक उत्पादन क्षेत्र में सर्दियों में लगभग आठ लाख क्विंटल नमक का उत्पादन होता है वहीं गर्मियों में यह उत्पादन पांच गुणा तक बढ़ जाता है। पूरे वर्ष भर में लगभग चालीस लाख क्विंटल नमक का उत्पादन किया जाता है। ऐसे में ग्रीष्मकाल में कच्चे नमक के भाव साठ से सत्तर रूपए क्विंटल रहते हैं तो वहीं सर्दियों में अस्सी रुपए तक भाव आ जाते हैं। लेकिन इस बार यह असंभव लग रहा है।

श्रमिकों के लिए नहीं सुविधाएं
भारत सरकार के नमक विभाग की ओर से नमक श्रमिकों के लिए कई कल्याणकारी योजनाएं चलाई जाती है लेकिन यह योजनाएं कुछ ही लोगों तक पहुंच कर सिमट जाती है। श्रमिकों को विभाग की ओर से साइकिल, गम ***** व चश्मे दिए जाते है, लेकिन क्यारियों में कार्य करने वाले श्रमिकों के पास यह योजनाएं नहीं पहुंचने के चलते सर्द मौसम में भी नमक श्रमिक नंगे पांव ही ठंडे पानी में कार्य करते आसानी से नजर आ सकते हैं, लेकिन पापी पेट का सवाल है श्रमिक करे भी क्या, चाहे भीषण गर्मी में गर्म पानी हो अथवा सर्दी में बर्फ सा पानी लेकिन काम तो करना ही पड़ेगा। ऐसे में सरकार की योजनाएं मात्र दिखावा साबित हो रही है। श्रमिकों की श्रम दर अधिक होने व ठेका पद्धति होने से श्रमिक चार घण्टे में ही पर्याप्त कमाई कर लेते हैं।

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