नागौरPublished: Aug 23, 2021 10:00:25 pm
Sharad Shukla
Nagaur. जिले में नदी क्षेत्र एवं इसके किनारों पर लगी रोक के बाद भी प्रतिदिन जेसीबी से निकाली जा रही कई टन बजरी, प्रतिदिन करीब पांच सौ बजरी लदी गाडिय़ों का यहां से हो रहा परिवहन, रोक नहीं लगने से पर्यावरणीय खतरा बढऩे के साथ ही अनहोनी की बढ़ी आशंका
Nagaur. Gravel being removed from JCB in restricted areas after the ban
नागौर. जिले में नदी किनारे एव इसके नजदीकी किनारों पर रोक लगी होने के बाद भीबजरी खनन माफिया बेखौंफ धड़ल्ले से अवैध खनन करने में लगे हुए हैं। इसकी वजह से नदी क्षेत्र के हालात बेहद खराब होने केसाथ ही कई जगहों पर काफी गहरे खड्डे हो चुके हैं। सूत्रों की माने तो इन क्षेत्रों में खनन के चलते बजरी लदे तकरीबन पांच सौ गाडिय़ा प्रतिदिन प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की ओर रवाना होतीहै। इसके चलते विभागीय अधिकारियों के दावों के बीच अवैध खनन की वजह से पर्यावरणीय संकट की स्थिति उत्पन्न होने के साथ ही सरकार को लाखों के राजस्व की हानि भी उठानी पड़ रही है। यह स्थिति तब है, जबकि नदी क्षेत्र में खनन पर पहले ही रोक लगाने के साथ 15 सितंबर तक मानसून में लगाई जाने वाली रोक लगी हुई है।
बजरी खनन माफियाओं ने नदी एवं इसके आसपास के क्षेत्रों की हालत बिगाडकऱ रख दी है। नदी में गरजती जेसीबी से रोजाना कई टन बजरी खुलेआम निकाली जा रही है। आलनियावास, झिंटिया, लूंगिया आदि क्षेत्रों में तो यह स्थिति है कि कभी भी जेसीबी से खुदाई देखी जा सकती है। इन क्षेत्रों में मार्गों से गुजरने के दौरान भी जेसीबी की गडग़हाट के बीच नदी के पेटे से खुदाई होती देखी जा सकती है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष के अक्टूबर माह में आई सुप्रीम कोर्ट की ओर से नामित कमेटी ने नदी क्षेत्रों में खनन की स्थिति देखने के साथ ही इस पर नाराजगी भी जताई भी थी। यह भी कहा गया था कि नदी व इसके किनारों के क्षेत्रों में खुदाई नहीं कराने की नसीहत दी थी। इस पर पूरी तरह से रोक लगाने के लिए स्पष्ट तौर पर कह दिया गया था।
बिगड़े हालात, पर्यावरणीय खतरा
लगातार प्रतिबंधित क्षेत्रों में खुदाई के बाद कई जगहों पर इतने गहरे खड्डे हो चुके हैं कि बारिश के दौरान पानी आने की स्थिति में नदी का प्राकृतिक स्वरूप अपने प्रवाह के साथ अब नहीं रह पाएगा। यही नहीं, इसकी वजह से पानी आने के रास्तों पर इन गहरे गड्ढों के चलते पूरी तरह से आवक का मार्ग भी अवरुद्ध हो चुका है। इस संबंध में पर्यावरणविदों का मानना है कि नदी को उसके मूल स्वरूप में नहीं लौटाया गया तो फिर इस क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि इसके आसपास के कई किलोमीटर के क्षेत्रों में भी जल संकट की स्थिति बेहद खतरनाक हो जाएगी। जबकि नदी के अपने मूल स्वरूप में होने की स्थिति में वन जीवों के साथ ही आवासीय बस्ती को भी जल संकट का सामना नही करना पड़ेगा। भूजल का स्तर भी बढ़ेगा, लेकिन अब नदी में हुए गड्ढों एवं इसके आसपस खातेदारी के लीज की आड़ में हुए खनन के चलते हालात विस्फोटक हो चुके हैं। ऐसे में खनन के दौरान बारिश के चलते उपजी कठिन स्थिति में कोई हादसा हो गया तो फिर कौन जिम्मेदार होगा सरीखे सवाल अब हवा में तैरने लगे हैं।
केरो की ढाणी बना खनन का बड़ा गढ़
सूत्रों के अनुसार गत 18 जून को केरो की ढाणी में खनन के लिए भूमि पूजन किया गया। इसकी स्थानीय स्तर पर खनिज विभाग एवं प्रशासन को जानकारी भी दी गई, लेकिन इसके बाद भी कार्रवाई नहीं हो पाई। इसकी वजह से अब इस क्षेत्र में लगातार हुए खनन के चलते यहां पर से रोजाना दर्जनों बजरी लदी गाडिय़ां इसी क्षेत्रों से रवाना की जा रही हैं। कार्रवाई के लिए विभाग के पास आरएसी की टुकड़ी भी दी गई है, लेकिन इसके बाद भी एक-दो डंपर विभाग पकडकऱ खानापूर्ति कर लेता है।
इनका कहना है…
क्षेत्रों में अवैध खनन पर रोक लगाने के लिए मोबाइल टीम घूमती रहती है। इसके साथ ही विशेष टीम बनाकर इसके खिलाफ लगतार कार्रवाइयां की जा रही है।
जयप्रकाश गोदारा, एमई खनिज विभाग गोटन नागौर