कुचामन की झील में पानी की अच्छी आवक हुई है, वहीं सांभर झील की सतह पर भी पानी नजर आने लगा है। सांभर झील में प्रशासनिक कार्रवाई के चलते नमक का उत्पादन प्रभावित हुआ है। दूसरी ओर जिला कलक्टर की ओर से झील में धारा 144 लगाने से नमक ढुलाई में लगे ट्रैक्टरों की आवाजाही प्रभावित हुई। इसके अलावा झील में बोरवेल बंद करने व मोटरें जब्त करने से भी अधिकांश नमक उद्यमियों को नुकसान झेलना पड़ा। अब बारिश के बाद नमक उत्पादकों ने स्वत: ही अपने बोरवेल से मोटरें निकाल कर सुरक्षित कर ली है। वर्षा ऋतु खत्म होने के बद ही नमक का उत्पादन शुरू हो सकेगा।
बारिश के मौसम से पहले ही नमक उद्यमी अपनी रिफाइनरियों पर नमक का पर्याप्त भण्डारण कर लेते हैं। गर्मियों में होने वाले अतिरिक्त उत्पादन को रिफाइनरियों पर लाकर बड़े-बड़े ढेर लगाकर नमक एकत्रित किया जाता है। यह एकत्रित नमक बारिश के दिनों में रिफाइंड करके राजस्थान समेत बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बंगाल के अलग-अलग हिस्सों में भिजवाया जाता है।
राजस्थान देश का अकेला ऐसा राज्य है जो पूरा 12 फीसदी नमक उत्पादन करता है। हालांकि पिछले कुछ सालों में भूगर्भ में जल की कमी और सांभर झील के पानी पर दोहन की रोक से नमक उत्पादन प्रभावित जरुर हुआ है, लेकिन उत्पादन के आंकड़ों में कोई गिरावट नहीं आई है। प्रदेश में सर्वाधिक नमक सांभर झील के खारे पानी से ही किया जाता है। इसके अलावा कुचामन, डीडवाना और फलोदी-पचपदरा में भी नमक का उत्पादन होता है।
सांभर झील समेत कुचामन इलाके में स्थित झील में पानी की आवक होने से अब यहां कई प्रजातियों के पक्षियों का रहवास भी सुरक्षित हो गया है। सांभर झील में ग्रेटर फ्लेमिंगो व लेसर फ्लेमिंगो बहुतायत में आते हैं । कुचामन झील में कई जलमूर्गियां अपना आसरा बनाती है। यहां पक्षी झील में पानी रहने तक यहां पर प्रवास करते हैं। इसके बाद यह पक्षी अन्य जलाशयों में चले जाते हैं।
नमक उत्पादन के कार्य में नावां-कुचामन में 30 हजार से ज्यादा नमक श्रमिक कार्य करते हैं। इनमें से कई श्रमिक दूसरे राज्यों से भी आते है। बारिश के बाद सभी कृषि कार्य में जुट जाते हैं। बारिश का मौसम खत्म होने के बाद नवम्बर-दिसम्बर तक नमक उत्पादन फिर से शुरू हो जाता है और श्रमिक भी वापस अपने कृषि कार्य से नमक उत्पादन के कार्य में लौट जाते हैं।
वित्तीय वर्ष- नावांं -राजस्थान 2012-13 - 13.65 18.25
2013-14 - 12.10 -17.01 2014-15 - 16.50- 21.58
2015-16 -18.90- 23.84 2016-17 -18.50 -24.88
2017-18 -21.88- 27.18 2018-19- 22.10- 28.05
2019-20 -20.54 - 25.75
2021-22 -20.78 -24.19 2022-23 -18.68 -23.20
---- (आंकड़ें लाख मीट्रिक टन में)