जिले का कुल मिलाकर वर्ष 2017 में भूजल स्तर का औसतन 55.77 मीटर था। यह औसत वर्ष 2021 में घटकर 58.36 मीटर तक तक पहुंच गया। औसतन -2.58 मीटर भूजल का स्तर घटा है।
इनकी स्थिति है सर्वाधिक गंभीर
भूजल के लगातार उपयोग किए जाने के चलते जिले के कई ब्लॉकों की स्थिति बेहद गंभीर हो गई है। इसमें सर्वाधिक संवेदनशील ब्लॉकों में खींवसर पहले नंबर पर रहा है। इसका भूजल स्तर नौ मीटर से भी ज्यादा नीचे चला गया है। दूसरे नंबर पर जायल है। यहां पर भूजल स्तर सात मीटर से भी ज्यादा नीचे गया है। कुचामन तीसरे नंबर पर है। इसका भूजल स्तर भी छह मीटर से ज्यादा घटा है। इसके बाद क्रमश: मूण्डवा, डेगाना, मकराना, नावां एवं मौलासर आदि हैं। इन क्षेत्रों का औसत तो कम है, लेकिन यह भी अब अतिदोहन की स्थिति में शामिल हो चुके हैं।
भूजल मापन के आधारभूत मानीटरिंग स्टेशनों की स्थिति
पोजोमीटर-150
कुएं-114
जिले की सामान्यत: औसत वर्षा-380 मीटर
जलादोहन का औसत उपयोग-197.05
इन्होंने नहीं लिया सबक तो हो गए अतिदोहित
भूजल विभाग के अनुसार वर्ष 2001 में महज छह ब्लॉक अतिदोहित थे। इसमें मेड़ता, मूण्डवा, परबतसर, रियाबड़ी एवं कुचामन शामिल रहे। जबकि डेगाना, जायल एवं नागौर क्रिटिकल की श्रेणी में रहे। इसी तरह से वर्ष 2013 में तीन ब्लॉक और अतिदोहित हो गए। कुल मिलाकर अतिदोहित ब्लॉकों की संख्या नौ पहुंच गई। इन नौ ब्लॉकों में डेगाना, डीडवाना, जायल, कुचामन, मकराना, मेड़ता, मूण्डवा, परबसतर एवं रियाबड़ी आदि आ गए थे। जबकि लाडनू एवं नागौर इस वर्ष क्रिटिकल की श्रेणी में रहे। इसके बाद वर्ष 2020 ये 2021 तक में अतिदोहित ब्लॉक की संख्या कुल 13 तक जा पहुंची। इसमें विशेष बात यह रही है कि नागौर जिला फिलहाल क्रिटिकल की श्रेणी में अभी बना हुआ है।
इनका कहना है...
भूजल का स्तर पिछले कई सालों से लगातार घटा है। वर्षा से धरती के रिचार्ज होने के बाद भूजल उपयोग का औसत दोगुना से भी ज्यादा है। इस पर लोगों को जागरुक होने की आवश्यकता है, नहीं तो फिर स्थिति विकट हो सकती है।
आर. के. गोदारा, सहायक अभियंता भूजल विभाग