scriptअमानवीय यातनाएं सहकर भी नहीं दिया देश का भेद | Inhuman torture is not given even by the distinction of the country | Patrika News

अमानवीय यातनाएं सहकर भी नहीं दिया देश का भेद

locationनागौरPublished: Jul 26, 2019 06:58:33 pm

Submitted by:

Suresh Vyas

बूढी के शहीद अर्जुन राम बसवाणा की वीरता की चौपालों पर आज भी चर्चा, शहीद परिवार को प्रतिमा नहीं लगने का मलाल

Khinwsar Shaeed News

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खींवसर. कश्मीर में पाकिस्तानी घुसपैठियों का भारतीय भूमि पर नाजायज कब्जा करने का प्रयास विफल करने में अपने प्राणों की आहुति देने वाले सिणोद ग्राम पंचायत के छोटे से ग्राम बूढी (अर्जुनपुरा) के लाल अर्जुनराम बसवाना की शहादत को 20 वर्ष बाद भी याद करके युवाओं व बुजुर्गों में देशभक्ति का जज्बा उफान पर आ जाता है। वतन पर अपने प्राण न्यौछावर करने वाले सूरवीरो में अर्जुनराम को याद करते ही छाती चौडी हो जाती है। शहीद अर्जुनराम की माता भंवरी देवी काअपने लाड़ले को खो देने का गम भले दो दशक में कम नहीं हुआ हो, लेकिन मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की कीमत भी कम आंकने वाले सपूत की वीरता के आगे सारे दर्द भूल जाती है। देश की रक्षा के लिए शहादत देने वाले अर्जुन राम के पिता चोखाराम बसवाना को उनके शहीद का पिता होने का फक्र हैं
सामरिक गोपनीयता के लिए नहीं खोला मुंह
20 अक्टूबर 1996 को भारतीय थल सेना की 4 जाट रेजीमेंट में भर्ती हुए अर्जुनराम को 1998 में कश्मीर के करगिल क्षेत्र में सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया। इस दौरान करगिल के काकसर क्षेत्र में गश्त करते हुए पाक घुसपैठियों ने धोखे से उन्हें पकड़ लिया। अन्य साथियों के साथ अमानवीय यातनाएं दी। शूरवीर अर्जुनराम ने अपनी मातृभूमि के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए, लेकिन भारत की सामरिक गोपनीयता रखने के लिए मुंह नहीं खोला। 9 जून 1999 को शहीद हुए अर्जुन राम की वीरता के बखान आज भी गांव की चौपाल पर सुने जाते हैं।
सरकार ने नहीं लगाई प्रतिमा
देश की रक्षा के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले शहीद की शहादत के किस्से भले ही सदियों तक याद रहे, लेकिन सरकार द्वारा घोषणा करने के बाद भी प्रतिमा नहीं लगाना शहीद का अपमान है।

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