video--सरकारी संरक्षण के अभाव में दम तोड़ रहा खजवाना का जूती उद्योग
नागौरPublished: Nov 08, 2023 03:58:44 pm
- देशभर में प्रसिद्ध है नागौरी जूती
- राज दरबार तक पहुंचती थी खजवाना की पगरखी
- कभी 35 परिवार बनाते थे जूती, अब केवल 7 परिवार बना रहे, तीसरी पीढी में केवल एक परिवार
- सरकारी सहायता मिले तो पुनर्जीवित हो सकता है चमड़ा उद्योग
- अधिक मेहनत व कम मजदूरी के कारण छोड़ रहे पुस्तैनी धंधा


खजवाना. कच्चे चमङे से पगरकी तैयार करता कारीगर।
राजवीर रोज
हस्त कला के दम पर पूरे देश में विशेष पहचान रखने वाला खजवाना का जूती उद्योग सरकारी संरक्षण के अभाव में दम तोड़ने लगा है। लम्बी चलने व मजबूत आकार के कारण किसान वर्ग की पहली पसंद बनकर उभरा खजवाना का यह उद्योग आधुनिकता के साथ वेंटीलेटर पर चला गया है।
एक जमाना था जब जयपुर और जोधपुर राज्य के लोग पैदल चलकर खजवाना जूती खरीदने आया करते थे। आए भी क्यों न इस जूती की खासियत ही कुछ ऐसी ही थी कि एक बार बनवाने के बाद यह कई साल चलती थी और दिखने में भी बहुत आकर्षक लगती थी। किसान परिवार के लोगों को खेती के काम के दौरान ऐसी ही जूती की तलाश रहती थी जो लम्बी भी चले और दिखने में भी सुन्दर हो। नई जूती को स्थानीय भाषा में पगरखी व मोजड़ी कहते हैं। जबकि पूरानी जूती को खुल्डा के नाम से पुकारा जाता है।
वर्ष 1950 के करीब जिले के बड़ीखाटू कस्बे से विस्थापित होकर खजवाना पहुंचे रेगर समाज के लोगों ने खजवाना में जूती उद्योग की शुरूआत की। उस समय खजवाना की जूती की तूती बोलती थी। जोधपुर दरबार के कई राजवी व दरबारी यहां की जूती मंगवाकर पहनते थे, लेकिन समय के साथ चमड़ा उद्योग पर आधुनिकता का साया छाने लगा। पिछले एक दशक से इस उद्योग से जुड़े हस्तशिल्प कारीगरों की आजीविका पर संकट खड़ा हो गया है। नई पीढी पुश्तैनी काम को छोड़कर सब्जी बेचने को मजबूर हो गई है।