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VIDEO-खराबा का आकलन ‘कागजी’ तो नहीं, कंपनी को ही नहीं मालूम सर्वे कहां?

locationनागौरPublished: Sep 27, 2018 11:41:04 am

Submitted by:

Sharad Shukla

कृषि विभाग के अनुसार बीमा कंपनी के प्रतिनिधि नहीं दे रहे कोई जानकारी, फसलों का 35-40 प्रतिशत खराबा होने के बाद अन्नदाताओं के साथ सर्वे के नाम पर चल रहा यह खेल

Nagaur patrika

Will pay salaries every month, but will not even work

नागौर. जिले में असमय हुई बरसात में बरबाद हुई खरीफ की फसलों में नुकसान का आकलन अनुबंधित बीमा कंपनी के प्रतिनिधि कहां कर रहे हैं, इसकी जानकारी न तो इस कंपनी के जिला कोर्डिनेटर-कलस्टर हेड को है, और न ही कृषि विभाग को। दोनों ही के जिम्मेदारों की ओर से सर्वे की जानकारी एक-दूसरे के पास होना बताया जा रहा है, लेकिन दोनों को ही पता नहीं है कि जिले के किस गांव अथवा तहसील में सर्वे हो रहा है। यह हालत तब है, जबकि बरसात के कारण खराबा 35-40 प्रतिशत तक हो चुका है। जिले के परबतसर, कुचामन, रियांबड़ी, डेगाना, जायल आदि क्षेत्रों में बिन मौसम की बारिश ने फसलों की हालत खराब कर रख दी है। खेतों में कटे रखे बाजरा, मूंग ज्वार एवं मोठ आदि की ढेरियां बरसात ने निगल ली। पानी के कारण खराब हो गई। यही नहीं कई जगह पर ढेरियां पर पानी पड़ा तो वह अंकुरित हो गए। स्थिति इतनी खराब होने के बाद भी किसानों की ओर से फोन किए जाने के बाद भी उनकी शिकायतें ब्लॉकवार कंपनी प्रतिनिधियों की ओर से अनसुना कर दिया जाने लगा है। टोल फ्री नंबरों पर कभी फोन लगता है, तो कई बार नहीं लगता। लग भी गया तो कंपनी प्रतिनिधियों की ओर से अप्लीकेशन सहित कई औपचारिकताओं का पाठ किसानों को पढ़ा दिया जाता है। किसानों में भंवरलाल, रामलाल, रामसुमेर का कहना है कि बमुुश्किल बीमा कंपनी का टोल फ्री नंबर कृषि विभाग से मिला। इसके बाद जब उस पर फोन किया गया तो पहले तो करीब पौन घंटे तक इंगेज बताता रहा। जब मिला तो कह दिया गया कि एप्लीकेशन कृषि विभाग में जाकर दे आओ, सर्वे करा लिया जाएगा। किसानों का कहना है कि प्रीमियम लेने के दौरान कंपनी की ओर से इतनी औपचारिकताएं पूर्ण नहीं की जाती है, जब खराबा होता है तो कई प्रकार के नियम बताने शुरू कर दिए जाते हैं। जिले के संखवास के किसान रामनिवास ने बताया कि उनकी ओर से टोल फ्री नंबरों पर दो दिन पहले ही सूचना दी गई कि फसल खराब हो चुकी है। इसके बाद भी अब तक उनके गांव में कोई भी सर्वेयर नहीं पहुंचा। अब इस संबंध में कृषि विभाग जाते हैं तो कह दिया जाता है कि दिए गए नंबरों पर संपर्क करो। दिए गए नंबरों पर संपर्क किया जाता है तो नियम बताने शुरू कर दिए जाते हैं। यही हालत अन्य किसानों की है। स्थिति इतनी खराब होने के बाद भी सर्वे तो कोई नहीं कर रहा, तो फिर खराबा का मुआवजा कैसे मिलेगा, कि चिंता अन्नदाताओं को सताने लगी है।
तो फिर हकीकत क्या?
बीमा कंपनी एवं कृषि विभाग के जिम्मेदारों से बातचीत करने पर सामने आया कि दोनों के पास ही अन्नदाताओं के उपज की खराब स्थिति का आकलन के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। सर्वे कहां हो रहा है, जिम्मेदार जानकारी देने में असमर्थ रहे। इससे साफ है कि बीमा कंपनी एवं कृषि विभाग के बीच न तो सामंजस्य है, और न ही इन्हें किसानों की चिंता। अन्यथा ऐसी स्थिति नहीं होती। ऐसा जानकारों का कहना है। जानकारों ने यह भी आशंकाएं जतानी शुरू कर दी है कि पता नहीं, वास्तव में कंपनी की ओर से सर्वे हो भी रहा है, फिर केवल कागजी खानापूर्ति की जा रही है, नहीं तो फिर कंपनी के जिला एवं तहसील प्रतिनिधियों के पास इनके आंकड़े क्यो नहीं उपलब्ध हैं।
सर्वे कहां हो रहा पता नहीं, कृषि विभाग से पूछ लो
किसानों की खराब हुई फसलों के बाबत बीमा के संदर्भ में जब संबंधित कंपनी के जिला कोर्डिनेटर धीरज गुप्ता एवं कलक्टर हेड पंकज कुमार से बातचीत हुई तो उनका कहना था कि सर्वेयर आए तो हैं, लेकिन कहां पर सर्वे किया जा रहा है, किस गांव में किस तहसील में सर्वे हो रहा है, आदि की जानकारी उनके पास नहीं है, और न ही वह दे सकते हैं। इस पर जब कहा गया कि कंपनी के प्रतिनिधियों के पास ही जानकारी नहीं है तो फिर किसके पास इसकी जानकारी है तो जवाब मिला कि आप तो कृषि विभाग के उपनिदेशक से बात कर लीजिए, वही बता सकते हैं कि सर्वे कहां हो रहा है। इस पर कृषि विभाग के उपनिेदशक हरजीराम चौधरी से खराबा के संदर्भ में हो रहे सर्वे की जानकारी पर बातचीत की गई तो उनका कहना था कि सर्वे कंपनी की ओर से किया जा रहा है, वही बता सकते हैं कि कहां सर्वे हो रहा है। कृषि विभाग के पास इस तरह की कोई जानकारी नहीं है।
कोई जानकारी नहीं
कृषि विस्तार उपनिदेशक हरजीराम चौधरी से खराबा के संदर्भ में हो रहे सर्वे के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि उन्हें न तो कंपनी ने बताया है, और न ही इस तरह की कोई जानकारी कंपनी की ओर से उनके पास भेजी गई है। ऐसे में सर्वे कहां हो रहा है, कि नहीं हो रहा है, पर वह कुछ भी कहने में असमर्थ हैं।

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