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नागौर

शहीद हवलदार भारमल ईनाणियां की देह पंचतत्व में विलीन

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1 year ago
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आगे चल रहे दुपहिया वाहन जब खेंण फांटा पहुंच गए, तब पिछले वाहनों का काफिला बाईपास के दूसरे किनारे रामदेवजी के खेजड़ा तिराहे से भी पीछे था। खेंण फांटा से खेड़ा धणी बाबा के थान के सामने से होते हुए शहीद की देह को मुख्य मार्ग से होते हुए घर लाया गया।

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शहीद मां सोनी देवी, पत्नी सरला देवी, बहिन भगवती बेहोश हो गई। वहीं भाई कानाराम, पुत्र आदित्य (11), पुत्री पीहु चौधरी (4) के विलाप को देखकर हर किसी की आंखें भर आई।

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Martyr funeral with state honors

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मूण्डवा. निकटवर्ती गांव ईनाणा हवलदार भारमल ईनाणियां का गुरुवार को राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। 11 वर्षीय पुत्र आदित्य ने मुखाग्नि दी। शहीद की पार्थिव देह बुधवार रात जेएलएन अस्पताल पहुंच गई थी। सुबह बड़ी संख्या में ग्रामीण दुपहिया वाहनों व कारों से जिला मुख्यालय पहुंच गए। शहीद के सम्मान में पूरा गांव नतमस्तक दिखा। गौरतलब है कि ईनाणा निवासी भारमल ईनाणियां पुत्र स्व. हरसुखराम 617 ईएमई बटालियन में हवलदार के पद पर कार्यरत थे। जिनका बैटल कैजुअल्टी में निधन हो गया।

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शहीद हवलदार भारमल ईनाणियां की देह पंचतत्व में विलीन राजकीय सम्मान के साथ खुद के खेत में किया अंतिम संस्कार 24 राऊंड फायर कर सेना ने दी सलामी, नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल, विधायक मोहनराम चौधरी सहित कई जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने पुष्प चक्र अर्पित किए

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रास्ते में ग्रामीणों ने गुलाब के पुष्पों से शहीद का सम्मान किया। देह घर पहुंचते ही कोहराम मच गया। शहीद मां सोनी देवी, पत्नी सरला देवी, बहिन भगवती बेहोश हो गई। वहीं भाई कानाराम, पुत्र आदित्य (11), पुत्री पीहु चौधरी (4) के विलाप को देखकर हर किसी की आंखें भर आई।

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काफिला इतना बड़ा था कि नागौर अस्पताल से 9:00 बजे रवाना होने के बावजूद घर पहुंचने में ढाई घंटे लग गए। गांव का मुख्य मार्ग भी संकरा पड़ गया। काफिले आगे चल रहे दुपहिया वाहन जब ण फांटा पहुंच गए, तब पिछले वाहनों का काफिला बाईपास के दूसरे किनारे रामदेवजी के खेजड़ा तिराहे से भी पीछे था। खेंण फांटा से खेड़ा धणी बाबा के थान के सामने से होते हुए शहीद की देह को मुख्य मार्ग से होते हुए घर लाया गया। रास्ते में ग्रामीणों ने गुलाब के पुष्पों से शहीद का सम्मान किया।

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11 वर्षीय पुत्र आदित्य ने मुखाग्नि दी।

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धार्मिक रीति रिवाज के अनुसार विदाई दी गई तो हर किसी की आंखें नम थी। गम को दबाए लोगों को गांव के लाल के शहीद होने का गौरव था। गांव के इतिहास में पहली बार कोई सेना का शहीद तिरंगे आया । अंतिम यात्रा जब निकली तो सड़क पर पैर रखने को जगह नहीं थी।

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