हैड मास्टर पद से सेवानिवृत्त हुए बलारा ने करीब पचास साल पहले पौधे लगाने की शुरूआत की थी। उस वक्त गांव के ही मोहनलाल शर्मा की अगुवाई में सार्वजनिक श्मशान भूमि पर 15-20 पौधे लगाए थे। उनमें से आज दो पीपल के बड़े पेड़ खड़े हैं। वे बताते है कि इस लम्बे अंतराल के बाद कई लोग संसार छोड़ कर चले गए, लेकिन आज भी उन पेड़ों को देखकर मोहन चाचा की याद ताजा हो जाती है।
इस कहावत से हुए प्रेरित प्रचलित कहावत कै तो गीतड़ो, कै भींतड़ो और कै रूखड़ों। मनुष्य जीवन में गाये हुए गीत, बनाये हुए स्मारक और लगाए हुए पेड़। अर्थात मनुष्य के लिए इस दुनिया के नाश पथ पर अपने निशान छोडऩे के लिए यह तीन माध्यम है। बस यहीं से प्रेरणा लेकर बलारा ने पौधे लगाना शुरू किया।
जिस स्कूल में की सेवा, उसे हराभरा कर दिखाया
जिस स्कूल में की सेवा, उसे हराभरा कर दिखाया
बलारा ने बताया कि राजकीय सेवा के दौरान उन्होंने जिस स्कूल में सेवा दी उनका पहला उद्देश्य उस स्कूल में पौधे लगाकर स्कूल परिसर को हराभरा करना रहा। उन्होंने बताया कि १९७७ में जब वे आकोदा सरकारी स्कूल में थे तब यातायात के साधन बहुत कम हुआ करते थे। उस वक्त नर्सरी से ऊंटगाड़ी में पौधे लाकर स्कूल में लगाए थे।
रामबाग के नाम से विकसित किया बाग बलारा को पेड़-पौधों से इतना प्रेम है कि उन्होंने हाल ही में धनकोली रोड पर रामबाग नाम से एक शानदार बाग विकसित किया है। उन्होंने मौलासर सहित स्कूलों, धार्मिक स्थलों, शमशान भूमि सहित जहां भी उन्हें जगह मिली वहां पेड़ लगाएं है। उनके द्वारा रामबाग में अब तक साढ़े सात सौ से अधिक पेड़-पौधे लगाए जा चुके है। रामबाग के समीप से २१ बीघा जमीन पर जहां कंटीले किकर व झाडिय़ां थी उन्हें काटकर जमीन को समतल किया गया है। यहां पर्यावरण संरक्षण के लिए पांच हजार पौधे लगाने की योजना है।
सरकार से अपील
सरकार से अपील
बलारा का मानना है कि लोग सडक़ों की बजाय सुबह-शाम बगीचों में भ्रमण करें। बच्चे बाग में खेले और युवा अपने आपको देश सेवा के लिए उपयुक्त बनाए। उन्होंने सरकार से राजस्थान पत्रिका के माध्यम से आग्रह किया है कि हर गांव में बच्चों के खेलने व घूमने के लिए मनरेगा के मजदूरों की सहायता से अधिक से अधिक बगीचे विकसित करावें।