नागौर के जेएलएन अस्पताल में एमसीएच यूनिट की स्थापना प्रसूताओं व बच्चों को बेहतर उपचार देने के उद्देश्य से की गई थी। यहां महिलाओं व शिशुओं के लिए तीन अलग-अलग यूनिट बनाई गई थी। इनमें महिलाओं के लिए बनी एएनसी यूनिट में गर्भवती महिलाओं की गर्भ के दौरान सभी प्रकार की जांच व उपचार करने, पीएनसी यूनिट में प्रसव उपरांत महिलाओं का इलाज व देखरेख करने तथा जेएसवाई वार्ड की सुविधाएं देेने की व्यवस्था की गई थी। वहीं कुपोषित शिशुओं के लिए एमटीएस यूनिट, एफबीएनसी यूनिट व दो शिशु वार्ड अलग से बनाए गए थे। लेकिन पर्याप्त मेडिकल स्टाफ नहीं होने तथा ज्यादातर गंभीर केस रेफर करने की परम्परा यथावत रखने के चलते आधा अस्पताल भवन आज भी उपयोग नहीं आ रहा है। स्थिति यह है कि सूने पड़े भवन में लोग शौच तक करने लगे हैं और खिड़कियां व दरवाजे गायब होने लगे हैं।
चिकित्सा विभाग के विशेषज्ञों का कहना है कि जिला मुख्यालय के अस्पताल में चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने में मेडिकल कॉलेज की अहम भूमिका रहेगी। कॉलेज शुरू होने पर एक ओर जहां चिकित्सकों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, वहीं अन्य संसाधन भी बढ़ेंगे, जिसके बाद जेएलएन अस्पताल व एमसीएच विंग के बड़े भवनों का सही उपयोग हो पाएगा। गौरतलब है कि 4 अक्टूबर 2019 को भारत सरकार ने नागौर की मेडिकल कॉलेज के लिए 325 करोड़ रुपए की वित्तीय स्वीकृति जारी की थी। इसमें 60 प्रतिशत राशि के 195 करोड़ केन्द्र सरकार देगी, जबकि 40 प्रतिशत राशि के 130 करोड़ राज्य सरकार को वहन करने पड़ेंगे। वहीं इससे पहले जिला प्रशासन ने मेडिकल कॉलेज के लिए जेएलएन अस्पताल के सामने 50 बीघा जमीन आवंटित कर पट्टा जारी कर दिया था।
जेएलएन अस्पताल के एमसीएच विंग में कोटेज वार्ड बने हुए हैं, लेकिन अब तक किसी ने कॉटेज की डिमांड नहीं की है, क्योंकि कॉटेज में शुल्क लगता है। यदि कोई मरीज कॉटेज की डिमांड करेगा तो हम खुलवा देंगे। यदि कोई दिक्कत आएगी तो उनका समाधान करेंगे, कोई डिमांड तो करे।
– डॉ. शंकरलाल, पीएमओ, जेएलएन अस्पताल, नागौर