डॉ. पदमचंद्र महाराज प्ररूपित जैन अनुप्पेहा ध्यान योग साधना की पद्धति का विश्लेषण करते हुए समणी सुधननिधि ने कहा कि अस्थिर जीवों को स्थिर करने के लिए भगवान महावीर ने ध्यान की पद्धति बताई। चित को नियंत्रित करना ही ध्यान है। मन को नियंत्रित करने से पहले काया और वचन को नियंत्रित करना जरूरी है। यह साधना आत्मा को परमात्मा बनाती है। इस पद्धति में कुल सात चरण है । रविवार को प्रथम चरण की प्रथम क्रिया पंच परमेष्ठि वन्दनम का अभ्यास श्रावक-श्राविकाओं को करवाया गया।