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नागौर

‘मां जन्म देती है पर जीवन तो गुरु ही देते हैं’

गुरु पूर्णिमा पर विशेष प्रवचन, जैन समणी ने कहा साधक के जीवन में गुरु आवश्यक है

नागौरJul 05, 2020 / 09:48 pm

Jitesh kumar Rawal

'मां जन्म देती है पर जीवन तो गुरु ही देते हैं'

नागौर. जयमल जैन पौषधशाला में ध्यान योग की साधना करती श्राविकाएं।

नागौर. श्वेतांबर स्थानकवासी जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में जयमल जैन पौषधशाला में रविवार को गुरु पूर्णिमा पर विशेष प्रवचन हुए। डॉ.पदमचंद्र महाराज की शिष्या जैन समणी सुगमनिधि ने कहा कि मोक्ष मंजिल की यात्रा प्रारंभ करने वाले साधक के जीवन में गुरु होना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि गुरु से ही जीवन शुरू होता है। जन्म देने वाली मां होती है अपितु जीवन देने वाले गुरु होते हैं। श्रद्धावान लभते ज्ञानं यानि श्रद्धा हो तो ज्ञान फौरन प्रवेश कर लेता है। समणी ने 4 प्रकार के गुरु का वर्णन बताया। पहले गुरु दीपक की तरह होते हैं उनके स्वयं का जीवन रोशनीमय होता है और वे दूसरों के जीवन में रोशनी प्रज्ज्वलित करते है। दूसरे गुरु पारस की तरह होते हैं। तीसरे गुरु भंवरे की तरह होते हैं। जिस प्रकार भंवरा एक लट को अपने स्वरूप बना लेता है ठीक उसी प्रकार गुरु भी अपने शिष्य को अपने जैसा बना लेते हैं। चौथे गुरु चंदन की तरह होते है। गुरु जैसे पारसमणि का स्पर्श मिल जाए तो लोहा रूपी भक्त भी सोना बन जाते हंै।
ध्यान योग की साधना करवाई
डॉ. पदमचंद्र महाराज प्ररूपित जैन अनुप्पेहा ध्यान योग साधना की पद्धति का विश्लेषण करते हुए समणी सुधननिधि ने कहा कि अस्थिर जीवों को स्थिर करने के लिए भगवान महावीर ने ध्यान की पद्धति बताई। चित को नियंत्रित करना ही ध्यान है। मन को नियंत्रित करने से पहले काया और वचन को नियंत्रित करना जरूरी है। यह साधना आत्मा को परमात्मा बनाती है। इस पद्धति में कुल सात चरण है । रविवार को प्रथम चरण की प्रथम क्रिया पंच परमेष्ठि वन्दनम का अभ्यास श्रावक-श्राविकाओं को करवाया गया।

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