पत्रिका से खास बातचीत
इससे पूर्व सलमान ने पत्रिका से खास बातचीत में कहा था की गाने का रंग-ढंग भले ही बदला हो पर संगीत प्रेमियों की तादाद कम नहीं हुई है। बदले जमाने के बाद भी गायकों की इज्जत पहले की तरह बरकरार है। यह कहना है सारेगामापा-2011 लिटिल चेम्प के उप विजेता रहे सलमान अली का। वे मंगलवार को नागौर में आए हुए थे। पत्रिका से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि संगीत की बदलती विधाओं से लगता है कि सात-आठ साल बाद तो ऐसा आलम आने वाला है कि गाने अथवा बोलने का फर्क तक करना मुश्किल हो जाएगा।
सलमान का कहना है कि उनके घर में सभी संगीत के शौकीन हैं। दादा और फिर वालिद ने भी इसी फील्ड में अपना नाम कमाया। पिता युसूफ अली व भाई समीर भी गाना गाते है। उन्होंने 12 साल की उम्र में गायकी की दूनिया में कदम रखा। वे कव्वाली, नाते रसूल, गजलों की प्रस्तुति ज्यादा देते हैं। मार्च में उनका एक और एलबम आने वाला है। फिल्मों में गाने के सवाल पर सलमान ने कहा कि दो से चार बार मौका मिला, लेकिन दूसरे कार्यक्रमों में व्यस्त होने के कारण फिल्मों में काम नहीं कर पाया। उन्होंने कहा कि संगीत जादू है जो रोतों को हंसाता और हंसाते को रुला देता है। उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि रफी, मुकेश, लता जैसे फनकारों का होना अब संभव नहीं है। गजलें बरसों चलती है जबकि गानों में से कुछ ही लंबा सफर तय कर पाते हैं। राजस्थान में जयपुर , अजमेर , कोटा सहित जिलों में 25 बार वे प्रस्तुति दे चुके हैं लेकिन नागौर में पहली बार।
दोस्तों का रहा सहयोग
सारेगामापा मंच पर पहुंचने के सफर के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे दोस्त/फेन की वजह से ही मैं इस मुकाम पर पहुंचा। पढ़ाई से ज्यादा संगीत को तव्ज्जो देता हूं। हसन मुस्तली का प्रशंसक हूं, उनकी गजल, ‘तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी, मोहब्बत के रास्ते में आकर’ पंसद है।
राज रहे तो अच्छा
सलमान कहते हैं कि सारेगामापा सेमीफाइनल तक पहुंचा, लेकिन वहां पर विजेता नहीं बनने के पीछे एक राज है वो राज ही रहे तो अच्छा है। बस वहां पर केवल सियासत काम आई। वर्ष 2011 में जनता ने बहुत प्यार व सम्मान दिया। उपविजेता बनने पर पैसा, गाडिय़ों के साथ हरियाणा में मकान मिला। जहां पर बड़े भाई लोगों को गायक बना रहे हैं। युवाओं को चाहिए कि वो गायकी में आएं, राजस्थान व पंजाब में सुरों के बादशाह छिपे बैठे हैं।