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कुल की रस्म के साथ उर्स का समापन

locationनागौरPublished: Jan 04, 2018 01:10:46 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

सैयद सैफुद्दीन जीलानी रोड स्थित दरगाह बड़े पीर साहब का सालाना उर्स बुधवार को कुल की रस्म के साथ सम्पन्न।

Nagaur News

Bade Peer sahab ursh end in nagaur

नागौर. सैयद सैफुद्दीन जीलानी रोड स्थित दरगाह बड़े पीर साहब का सालाना उर्स बुधवार को कुल की रस्म के साथ सम्पन्न हो गया। बुधवार को कईं धार्मिक कार्यक्रम हुए। उर्स के अंतिम दिन जायरिनों ने मजार पर चादर चढ़ाकर अकीदत के फूल पेश किए। अस्र की नमाज के बाद हुई कुल की रस्म में बड़ी संख्या में जायरिनों ने भाग लिया। कार्यक्रम के अंत में दरगाह के सज्जादानशीन पीर सैयद सदाकत अली जिलानी ने मजार पर चादर चढ़ाकर मुल्क में भाईचारा व मोहब्बत की दुआ करवाई।
कव्वालों ने बांधा समा
अंतिम दिन दोपहर में कव्वाली के कार्यक्रम का आयोजन हुआ जिसमें अय्यूब जयपुरी एण्ड कव्वाल पार्टी, नईमुद्दीन सरफुद्दीन कव्वाल पार्टी व जोधपुर के फिरोज शाबरी एण्ड कव्वाल पार्टी ने भी कलाम पेश किया। अंतिम दिन कलंदरों ने दरगाह में हैरतअंगेज करतब दिखा जायरिनों को हैरत में डाल दिया। महिलाओं ने मैदान में लगी अस्थाई दुकानों से खरीदारी की तो बच्चों ने झूलों का लुत्फ उठाया।
मुस्लिम परिषद की ओर से पेश की चादर
राजस्थान मुस्लिम परिषद की ओर से सैयद सैफुद्दीन जीलानी रोड स्थित बड़े पीर साहब की दरगाह
में चादर चढ़ाकर फूल पेश किए गए। इस दौरान अजमेंर संभाग उपाध्यक्ष नईम अशरफी, जिलाध्यक्ष आरिफ गौरी, आदिल गौरी, ईलयास गौरी, अनवर, शाहरूख गौरी, ईमरान सहित कार्यकर्ता मौजूद थे।

पत्रिका से खास बातचीत

इससे पूर्व सलमान ने पत्रिका से खास बातचीत में कहा था की गाने का रंग-ढंग भले ही बदला हो पर संगीत प्रेमियों की तादाद कम नहीं हुई है। बदले जमाने के बाद भी गायकों की इज्जत पहले की तरह बरकरार है। यह कहना है सारेगामापा-2011 लिटिल चेम्प के उप विजेता रहे सलमान अली का। वे मंगलवार को नागौर में आए हुए थे। पत्रिका से विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि संगीत की बदलती विधाओं से लगता है कि सात-आठ साल बाद तो ऐसा आलम आने वाला है कि गाने अथवा बोलने का फर्क तक करना मुश्किल हो जाएगा।
सलमान का कहना है कि उनके घर में सभी संगीत के शौकीन हैं। दादा और फिर वालिद ने भी इसी फील्ड में अपना नाम कमाया। पिता युसूफ अली व भाई समीर भी गाना गाते है। उन्होंने 12 साल की उम्र में गायकी की दूनिया में कदम रखा। वे कव्वाली, नाते रसूल, गजलों की प्रस्तुति ज्यादा देते हैं। मार्च में उनका एक और एलबम आने वाला है। फिल्मों में गाने के सवाल पर सलमान ने कहा कि दो से चार बार मौका मिला, लेकिन दूसरे कार्यक्रमों में व्यस्त होने के कारण फिल्मों में काम नहीं कर पाया। उन्होंने कहा कि संगीत जादू है जो रोतों को हंसाता और हंसाते को रुला देता है। उन्होंने इस बात को स्वीकारा कि रफी, मुकेश, लता जैसे फनकारों का होना अब संभव नहीं है। गजलें बरसों चलती है जबकि गानों में से कुछ ही लंबा सफर तय कर पाते हैं। राजस्थान में जयपुर , अजमेर , कोटा सहित जिलों में 25 बार वे प्रस्तुति दे चुके हैं लेकिन नागौर में पहली बार।
दोस्तों का रहा सहयोग
सारेगामापा मंच पर पहुंचने के सफर के बारे में उन्होंने कहा कि मेरे दोस्त/फेन की वजह से ही मैं इस मुकाम पर पहुंचा। पढ़ाई से ज्यादा संगीत को तव्ज्जो देता हूं। हसन मुस्तली का प्रशंसक हूं, उनकी गजल, ‘तुम्हें दिल्लगी भूल जानी पड़ेगी, मोहब्बत के रास्ते में आकर’ पंसद है।
राज रहे तो अच्छा
सलमान कहते हैं कि सारेगामापा सेमीफाइनल तक पहुंचा, लेकिन वहां पर विजेता नहीं बनने के पीछे एक राज है वो राज ही रहे तो अच्छा है। बस वहां पर केवल सियासत काम आई। वर्ष 2011 में जनता ने बहुत प्यार व सम्मान दिया। उपविजेता बनने पर पैसा, गाडिय़ों के साथ हरियाणा में मकान मिला। जहां पर बड़े भाई लोगों को गायक बना रहे हैं। युवाओं को चाहिए कि वो गायकी में आएं, राजस्थान व पंजाब में सुरों के बादशाह छिपे बैठे हैं।

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