खेल के क्षेत्र में नागौर की बालिकाएं प्रदेश ही नहीं देशभर में अपनी धाक जमा रही हैं। फिर चाहे तेजास्थली मूण्डवा की जिम्नास्टिक की बालिकाएं हो या फिर गत 26 सितम्बर को झुंझुनूं के पचलंगी में आयोजित राज्य स्तरीय कबड्डी प्रतियोगिता में परचम लहराने वाली नागौर जिले की बालिकाएं हों, खेल के क्षेत्र में बेटियों ने लडक़ों से अच्छा प्रदर्शन किया है। कबड्डी 17 वर्ष आयु वर्ग में नागौर की खिलाड़ी छात्राओं ने कप्तान आर्यना चौधरी के नेतृत्व में प्रदेश में तीसरा स्थान प्राप्त किया, जबकि 19 आयु वर्ग में नागौर की बेटियों ने कल्पना सेन के नेतृत्व में प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त कर लोहा मनवाया। दो दिन पहले ही मूण्डवा तेजास्थली की सुरभि पूनिया, सरोज डूडी, मनीषा चौधरी, गरिमा, मोनिका, योगिता व अंकिता 17 वर्ष आयु वर्ग की श्रीगंगानगर में आयोजित होने वाली राज्य स्तरीय जिम्नास्टिक खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लेने पहुंची हैं। इसी प्रकार 19 वर्ष में पूजा चौधरी, संजना पूनिया, सुमन गोदारा, अंजू बाला, सोनू, मनीषा व सीमा खेलने पहुंची हैं। खो-खो की बात करें तो नागौर की सरकारी स्कूलों में पढऩे वाली जमना, गुड्डी, सुशीला, मुन्नी सियाग, मनीषा, सुमिता दुधवाल, निकिता, जस्सु गोरा, अमिता पुरी, सुशीला, सुनीता गुर्जर व सुनीता ग्वाला का चयन राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए हुआ है।
जिला मुख्यालय के कांकरिया स्कूल के व्याख्याता अजय शर्मा के दो बालिकाएं ही हैं। शर्मा ने बेटे की चाह नहीं रखी और बच्चियों की परवरिश पर ध्यान दिया। आज दोनों बच्चियां पढऩे के साथ नृत्य व गायन अपनी प्रतिभा दिखा रही हैं। एसबीआई बैंक के केशियर महेश सांखला के भी दो पुत्रियां ही हैं- परी व ईशानी। बच्चियां छोटी हैं परन्तु नृत्य तथा पढ़ाई में होशियार हैं। शिक्षक श्रवणकुमार सोनी व रेखा सोनी के भी दो पुत्रियां हैं – दिशा व परिधि। दोनों ही चित्रकला के साथ नृत्य, गायन व संगीत में अपनी हूनर दिखाना शुरू कर दिया है। दिशा ने इस वर्ष दसवीं कक्षा में 95 प्रतिशत से भी अधिक अंक प्राप्त किए हैं। समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जिन माता-पिता के केवल बेटियां ही हैं और उन्होंने बेटों की आस किए बिना बेटियों की परवरिश पर ध्यान दिया और आज वे खुश हैं।
– बालिका शिशु की भूमिका व महत्व के प्रति सभी को जागरूक करना।
– देश में बाल लिंगानुपात को दूर करने के लिए काम करना है।
– कोशिश यह रहनी चाहिए कि हर बेटी को समाज में उचित मान-सम्मान मिले।
– लड़कियों को उनका अधिकार प्राप्त हो।
– बालिका के पालन-पोषण, सेहत, पढ़ाई, अधिकार पर विचार-विमर्श करना और उल्लेखनीय कदम उठाना।
– इस दिन देशभर में बालिकाओं को लेकर बने कानून के बारे में सभी को बताना।
– बाल-विवाह, घरेलू हिंसा, दहेज प्रताडऩा आदि को लेकर विचार करना और सार्थक पहल करने पर निर्णय लेना।
बेटियां हर घर का अभियान होती हैं, पर समाज की मानसिकता के रहते उन्हें इस धरती पर आने का भी मौका नहीं मिल पाता। वैसे वर्तमान परिस्थितियों में काफी सुधारात्मक प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन फिर भी बेटियों को भी एक खुला आसमान मिलना चाहिए, जिससे वह अपेन सपनों की बुलंदियों को छू सके। आज हर क्षेत्र में लड़कियां लडक़ों से कम नहीं हैं और कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं। जरूरत है तो उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने की, बाकि तो वे हर संघर्ष आसानी से कर सकती हैं। बालिकाओं को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जाए, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो।
– अर्चना व्यास, आरएएस
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस को मनाने का उद्देश्य लोगों को इस बात के लिए जागरूक करना है कि लड़कियों को भी समाज में उतने ही अधिकार और इज्जत देनी चाहिए, जितनी लडक़ों को मिलती है। लड़कियों का भी पूरा अधिकार बनता है कि वे समाज में अपनी बात को रख सकें और उन पर हो रहे किसी भी प्रकार के अन्याय के खिलाफ आवाज उठा सकें। यह दिन उन लोगों को भी जागरूक करने के लिए है जो कि लड़कियों को सामाजिक सीमाओं में बांध कर रखते हैं।
– दिनेश कुमार यादव, जिला कलक्टर, नागौर