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जब नागौर के संत ने प्रताप सागर तालाब के पानी से पूरा करवाया हवन

locationनागौरPublished: Apr 21, 2018 06:18:15 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

राजस्थान के नागौर में जन्मे महर्षि जनार्दनगिरी महाराज ऋषिकेश में कैलाश आश्रम के द्वितीय पीठाधिश्वर…

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Janardan Giri maharaj

-श्री महर्षि जनार्दन गिरी महाराज की पुण्यतिथि पर विशेष
नागौर. महापुरुषों की साधना व उनके चमत्कारों के बारे में साहित्य में पढऩे व सुनने को मिलता है वहीं इतिहास भी सिद्ध पुरुषों के चमत्कारों से भरा पड़ा है। ऐसे ही संत हुए जर्नादन गिरी, जिन्होंंने हवन पूरा करने के लिए घी कम पडऩे पर प्रताप सागर तालाब के पानी को घी बना दिया। जानकारी के अनुसार नागौर में जन्मे महर्षि जनार्दन गिरी महाराज अपनी योग्यता और तपस्या के बल पर उन्नति करते हुए ऋषिकेश में कैलाश आश्रम के द्वितीय पीठाधीश्वर बने। उनका जन्म नागौर के तेलीवाड़ा में पुष्करणा ब्राह्मण कुल के बोहरा परिवार में बैजनाथ के यहां हुआ।
गुरु ने की थी भविष्यवाणी
उनका जन्म का नाम जेठाराम था और इनकी जन्म तिथि के बारे में कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ। नागौर के ज्योतिष सम्राट ‘राजा साहबÓ लक्ष्मण दास निरंजनी से इन्होंने संस्कृत व ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की। ‘राजा साहबÓ ने भविष्यवाणी कर दी कि वह एक दिन महान संत बनकर नागौर का नाम व कीर्ति फैलाएगा। बीजराज गुरोसा ज्योतिषी ने इन्हें गायत्री पुरश्चरण करने की सलाह दी। उन्होंने नागौर में प्रताप सागर तालाब पर स्थित श्री बड़लेश्वर महादेव बगीची में जाकर लगातार गायत्री के तीन पुरश्चरण किए। वे अखण्ड ब्रह्मचारी थे और इन्होंने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य की दीक्षा प्राप्त की। इसी बगीची में इन्होंने तपस्या के समय कई चमत्कार भी दिखाए।

देखते ही रह गए चमत्कार

ऐसा कहा जाता है कि एक बार श्री बड़लेश्वर महादेव बगीची में बड़ा यज्ञ हवन चल रहा था। रात्रि हो चुकी थी और होम के लिए घी समाप्त हो गया। बाजार में दुकानें बन्द हो चुकी थी। लोग घबरा गए। स्वामी जी ने शिष्यों को कहा कि तालाब से 2 डिब्बे पानी भर लाओ और हवन चालू रखो। कल प्रात: बाजार से 2 घी के डिब्बे लाकर पुन: तालाब में डालकर उधार चुका देना। पानी के दोनों डिब्बे घी से भरे मिले और उसी से हवन पूर्ण किया। लोग स्वामी के चमत्कार को देखते ही रह गए।

विभिन्न शास्त्रों का किया अध्ययन

वे नागौर से चलकर काशी पहुंचे और वहां विभिन्न शास्त्रों का गहन अध्ययन कर पूर्ण विद्वता प्राप्त की। वहां से ज्ञान प्राप्त करके सीधे ऋषिकेश, कैलाश आश्रम पहुंचे। कैलाश आश्रम के संस्थापक व प्रथम पीठाधीश्वर स्वामी धनराज गिरी से दीक्षा ली एवं सन्यास ग्रहण कर प्रस्थानमयी एवं वेदान्त संबंधी समस्त ग्रंथों का विधिवत अध्यययन किया।

 

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