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नागौर

नागौर के थार में भी अब खिलेेंगे इसके फूल

शरद शुक्ला:नागौर के कृषि असंधान उपकेन्द्र में कृषि वैज्ञानिक थाई एप्पल आकार के बेर को यहां की खारे व कम पानीयुक्त जमीन के अनुकूल बनाने में जुटे हुए है

नागौरDec 07, 2017 / 12:44 pm

Sharad Shukla

Nagaur patrika

Nagaur Now in the desert district of Nagaur, Thai apple-shaped berry will soon soon be seen.

शरद शुक्ला:नागौर. रेगिस्तानी जिले नागौर में भी अब जल्द ही थाई एप्पल के आकार के बेर नजर आएंगे। कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र की ओर से इस पर अनुसंधान शुरू कर दिया गया है। केन्द्र में लगाए गए इसकी पौध पर स्थानीय वातावरण के प्रभावों का अध्ययन करने में वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। हालांकि प्रारंभिक चरण में इसकी पौध की जड़ मिट्टी में मजबूती से जम चुकी है, लेकिन अभी पूर्ण रूप से विकसित नहीं हो पाई है। इसके लिए प्रयास किए जा रहे है कि यहां की आबोहवा इसका विकास तेजी से हो सके। अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक इसकी गतिविधियों पर पूरी नजर रख
रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सबकुछ दुरुस्त रहा तो फिर, यह प्रजाती भी स्थानीय स्तर पर सहजता से उगाई जा सकेगी। निकटवर्ती जेएलएन राजकीय हॉस्पिटल के पास स्थित कृषि विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कृषि अनुसंधान उपकेन्द्र में थाई एप्पल के आकार के बेर के पौधों की नई उन्नत किस्म के पौधों में वैज्ञानिक जान फूंकने में जुटे हुए हैं। पूर्व में इसके दो पौधे लगाए गए थे, लेकिन वह वातावरण के अनुकूल नहीं बन पाए, और सूख गए। अब केन्द्र की ओर से इस बार आठ पौधे और लगाए गए हैं। इस बार पौधों के लगने के बाद केन्द्र की ओर से प्रतिदिन इस पर नजर रखी जा रही है। सुबह, दोपहर एवं शाम के समय इस पर वातावरण के प्रभावों का अध्ययन करने के साथ ही इसकी जमीन के अंदर जड़ की स्थिति का पूरा आंकलन किया जा रहा है। इसी तरह आंवला एनए-7 की उन्नत किस्म के पौधे भी यहां पर लगाए गए हैं। ऑंवला की उन्नत किस्म के पौधों पर अब तक दो सप्ताह के प्रभावों के अध्ययन में परिणाम सकारात्मक सामने आए हंै। इससे वैज्ञानिक उत्साहित हैं। केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि वातावरण के अनुकूल सिद्ध साबित तो इस किस्म के आंवले की बुवाई से काश्तकार न केवल मालामाल हो जाएंगे, बल्कि औषधिपरक एवं सब्जियों के क्षेत्र में इसकी खेती जिले के लिए कृषि क्षेत्र में वरदान सिद्ध हो सकती है।
ऐसे होते हैं यह पौधे ,ह्यऐसे करेंगे इसकी बुवाई
ऐसे होते हैं यह पौधे
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि वातावरण पौधों के अनुकूल सिद्ध होने पर लंबाई चार से पांच फिट तक पहुंच जाती है, नहीं तो फिर इसकी ऊंचाई केवल ढाई से तीन फिट तक रहती है। इसके बाद भी इसकी गुणवत्ता बनी रहती है। लंबाई कम होने की स्थिति में भी फल आने की प्रक्रिया बाधित नहीं होती है। कृषि केन्द्र के वैज्ञानिकों का कहना है कि थाई एप्पल के आकार के बेर एवं आंवला के उन्नत किस्म की बुवाई में सफलता मिलने पर इसके सीड्स यहां के किसानों को दिए जाएंगे। इसके साथ ही उन्हें इसके खेती की नवीन तकनीकी भी समझाई जाएगी।
इसकी बुवाई नहीं होने के कारण
नागौर क्षेत्र की मिट्टी बलूई दोमट होने के कारण केवल पानी वाले एवं कठोर किस्म के माने जाने वाले पौधों के लिए ही मुफीद सिद्ध होती है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि वह थाई एप्पल की पौध एवं आंवला की पौध को यहां की मिट्टी के अनुकूल बनाने के लिए नवीन तकनीकियों का सहारा ले रहे हैं। इसके लिए वैज्ञानिकों ने बडिंग कटिंग पद्धति का प्रयोग किया है। इसमें पौध के निचले मुख्य हिस्से में टी के आकार का ढांचा बनाए जाने के बाद उन्नत किस्म की पौध का प्रवर्धन करते हैं। साफ अर्थों में इसे कलिकायन की प्रक्रिया कहते हैं। थाई एप्पल आकार के बेर एवं आंवला की उन्नत किस्म की पौध तैयार करने के लिए इसी तकनीकी का सहारा लिया गया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पौधे हालांकि काफी हद तक विकसित हो चुके हैं, लेकिन अभी इसके पूर्ण रूप से विकसित होने में थोड़ा समय और लगेगा। इनके विकसित होने पर इस तरह की और पौध तैयार करने के साथ ही इसका विस्तार किया जाएगा। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार दोनों ही पौध में शरीर को प्राप्त होने वाले लगभग सभी आवश्यक तत्वों का भंडार है। ऐसे में सफलता मिली तो फिर रेगिस्तान में भी थाई एप्पल के आकार के बेर एवं आंवला की नवीन किस्म नजर आने लगेगी।
इनका कहना है
&अनुसंधान उपकेन्द्र में थाई एप्पल के आाकार के बेर एवं आंवला की उन्नत किस्म के पौधे लगाए गए हैं। स्थानीय वातावरण का इन पर पडऩे वाले प्रभावों के अध्ययन में फिलहाल प्रारंभिक स्तर पर सफलता मिली है। सबकुछ दुरुस्त रहा तो निश्चित रूप से जिले में कृषि के क्षेत्र में यह वरदान सिद्ध होगी।
एम. एल. मीना, प्रभारी, कृषि अनुंसधान उपकेन्द्र नागौर

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