कई बार तो चिकित्सक अपने स्तर पर दवाइयों का इंतजाम करते हैं। नागौर में तो एक मात्र चिकित्सक औषआलय खोलकर बैठते है ना कम्पाउण्डर है और ना ही चपरासी कई बार अस्पताल परिसर में झाडू लगाने से लेकर साफ सफाई तक का काम चिकित्सक करते हैं। ऐसा नहीं की होम्योपैथी व आयुर्वेदिक अस्पतालों में मरीज नहीं आते, यहां रोजाना की ओपीडी 30 से 40 के करीब रहती है।
नागौर में केन्द्र सरकार के आयुष मंत्रालय की योजना के तहत पुराना अस्पताल परिसर में होम्योपैथी, आयुर्वेद व यूनानी पैथी के औषधालय खोलकर एक ही छत के नीचे तीनों के चिकित्सकों को बैठाकर उपचार किया जाना था। होम्योपैथी व आयुर्वेद के औषधालय तो संचालित है, लेकिन यूनानी पैथी का बजट कम पडऩे के कारण कमरे की नींव भरकर छोड़ दी गई। वर्तमान में यह औषधालय तारकिशन की दरगाह के पास किराए के भवन में चल रहा है। पुराना अस्पताल परिसर में पहले तीनों पैथी के अस्पताल व जांच केन्द्र था। लेकिन एलोपैथिक चिकित्सालय को बीकानेर रोड पर स्फिट करने के बाद से पुराना अस्पताल परिसर का कोई धनीधोरी नहीं है। कई लोगों को तो यह तक पता नहीं कि यहां होम्योपैथिक व आयुर्वेदिक औषधालय भी संचालित है।
पुराना अस्पाताल परिसर में नागौर का एक मात्र राजकीय जिला होम्योपैथी औषधालय संचालित है। नागौर शहर का भी यह एक मात्र सरकारी होम्योपैथिक औषधालय है। जबकि शहर की जनसंख्या और विस्तार को देखते हुए दो- तीन औषधालय होना जरूरी है। पूरे जिले मेंं आठ होम्योपैथिक औषधालय है। जो नागौर, मूण्डवा, खींवसर, मेड़तासिटी, कुचेरा, डीडवाना, कुचामनसिटी, कसुम्बी व फिरवासी में है। नागौर में सबसे पहले 1980 में गांधी चौक में किराए के भवन में राजकीय होम्योपैथिक औषधालय खोला गया था। फिर यह अस्पताल वहां से बदलकर प्रतापसागर की पाल पर लाया गया। बाद में 2005 में केन्द्र सरकार की आयुष योजना के तहत पुराना अस्पाताल परिसर में अलग से बिल्ंिडग बनाकर एक ही छत के नीचे तीनों चिकित्सा पैथी के चिकित्सक बैठाए गए। लेकिन यूनानी औषधालय के लिए बजट के अभाव में कमरा नहीं बन पाया।
राज्यसरकार ने होम्योपैथिक औषधालयों के लिए पद तो स्वीकृत किए हुए हैं, लेकिन नियुक्ति नहीं होने से आज हालत यह है कि चपरासी के अभाव में चिकित्सक को मरीज देखने से पहले खुद को झाडू-बुहारी करने पड़ती है। जिला होम्योपैथिक औषधालय में एक चिकित्सक, एक कम्पाउण्डर व एक परिचारक का पद स्वीकृत, लेकिन एक मात्र चिकित्सक हीं लगा हुआ है। उन्हें किसी सरकारी काम से बाहर जाने या अवकाश पर होने पर औषधालय को ताला लगाना पड़ता है। इसी तरह मूण्डवा, कुचेर, खींवसर, मेड़तासिटी में चिकित्सक कार्यरत है, जबकि डीडवाना में पद रिक्त है। कुचामन व फिरवासी के औषधालय नर्स व कम्पाउण्डर के भरोसे है।
औषधालय मेंं सफाई के पेटे सरकार प्रतिमाह 500 रुपए का कंटीजेंसी के नाम पर बजट देती है। इसी में सफाईकर्मी का मेहताना व फिनाइल-पौछा-झाडू आदि शामिल है। अंदाजा इसी से लगाय जा सकता है कि आज के समय में 500 रुपए में सफाईकर्मी कहा मिलता है। दवाई की हालत यह है कि डिमांड के अनुसार पूरी नहीं आती है, लेकिन रूटीन में आवश्यक दवाई की आपूर्ति पूरी है। यहां आने वाले मरीजों में पेंशनर की संख्या अधिक होती है। औषधालय का समय सर्दी में सुबह 9 से 3 व गर्मियों में 8 से 2 रहता है।
देखरेख के अभाव व समय पर रंगाई-पुताई नहीं होने से नए बने भवन की भी हालत खराब होने लगी है। इस संबंध में निदेशालय को कई बार लिखा जा चुका है। लेकिन कोई ध्यान नहीं दे रहा है। दीवारों से चूना उतरने लगा है। पूरा परिसर जंगल सा बना हुआ है। रात को शराबी यहां बैठे रहते हैं।
आयुर्वेद औषधालय में भी एक चिकित्सक व एक परिचारक का पद स्वीकृत है। लेकिन सिर्फ चिकित्सक ही कार्यरत है। परिचारक का पद रिक्त पड़ा है। मांग के अनुरूप दवाई की सप्लाई नहीं है। कुछ कम ही श्रेणी की दवाईयां उपलब्ध रहती है। बाहर की दवाई मरीजों को ज्यादा लिखनी पड़ती है। निशुल्क दवा के कारण सरकारी व पेंशनर ज्यादा आते हैं। यहां भी प्रतिदिन 25 -30 मरीजों की ओपीड़ी रहती है।
औषधालय भवन की मरम्मत होनी चाहिए। पूरा स्टाफ लगा दिया जाए तो मरीजों को उपचार में अच्छी सुविधा मिल सकती है। प्रत्येक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र डिस्पेंसरी खुलनी चाहिए। एलोपैथी पर करोड़ों का बजट खर्च होता है। जबकि होम्योपैथी व आयुर्वेद की अनदेखी की जाती है।
डा, रामकिशोर लामरोड़,
वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी,
जिला होम्योपैथिक औषधालय, नागौर।
- प्रत्येक आयुर्वेदिक औषधालय में एक कम्पाउण्डर, एक परिचारक व एक सफाई कर्मचारी लगाना जरूरी है। औषध आपूर्ति नियमित होती है। एक चिकित्सक के भरोसे औषधालय रहने से शिविर आदि में ड्युटी लगने पर औषधालय बंद करना पड़ता है। इससे मरीजों को परेशानी होती है। इसकी अल्टरनेट व्यवस्था होनी चाहिए।
डा. सोहनराम गेट
चिकित्साधिकारी, आयुर्वेदिक औषधालय, नागौर।