नागौरPublished: Nov 30, 2022 10:40:10 pm
Sharad Shukla
Nagaur. सूफी हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह पर कोई भी नहीं बना पाया गुंबदसूफी साहब के उर्स पर उमड़ते हैं हर वर्ष हजारों जायरीनख्वाजा गरीब नवाज के दूसरे नंबर के शिष्य थे सूफी हमीदुद्दीन नागौरी
No one could make a dome in this dargah of Nagaur
नागौर. हजरत सूफी हमीदुदीन नागौरी रहमत उल्लाह अलैह का उर्स पर हर साल हजारों जायरीनों की भीड़ दुआओं के साथ उमड़ती है। आजीवन शाकाहारी रहने वाले सूफी हमीदुद्दीन नागौरी की दरगाह इबादत के साथ ही दरगाह में बने बड़े गुंबद व इसमें हुई शानदार नक्कासी के लिए भी मशहूर हैं। दरगाह के अंदर प्रवेश करने से पूर्व शानदार बुलंद दरवाजा नजर आता है। यह बुलंद दरवाजा सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक ने बनवाया था। बुलंद दरवाजा से अंदर जाने के बाद मुख्य दरगाह यानि की सूफी साहब की मजार पर कोई गुंबद नहीं मिलता है। हालांकि यूं तो ज्यादारत दरगाहों पर जाने पर मुख्य मजार के ऊपर गुंबद रहता है। कहते हैं कि पूर्व में कई मुरीदों ने बनवाने का प्रयास किया, लेकिन सफलता किसी को भी नहीं मिली। ऐसे ही मुरीदों में सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक था। दरगाह के नायब सज्जादानशीन जमाल अहमद बताते हैं कि सूफी साहब के दरगाह के चमत्कारों को सुनकर सुलतान तुगलक लाव-लश्कर के साथ यहां पर पहुंचा था। यहां पर मुख्य मजार यानि की दरगाह सूफी हमीदुद्दीन सूफी साहब की दरगाह पर गुंबद नहीं देखा तो उसने बनवाने का प्रयास किया, लेकिन उसे भी सफलता नहीं मिली। सुलतान की जिद थी कि वह बनवाएंगे, लेकिन इसी दौरान वह सो गए तो उनको फारसी इबारत में एक खत मिला। जिस पर लिखा था कि मुझे खुला आसमान व पंक्षी पसंद हैं। इसलिए गुंबद बनवाने का प्रयास मत करो। इसके बाद सुलतान ने निराश होकर मुख्य गेट का बुलंद दरवाजा व दरगाह परिसर की चारदीवारी का निर्माण कराने के बाद लौट गया था। दरगाह के अंदर कई जगहों पर विशेषकर बुलंद दरवाजे पर हुई नक्कासी कलात्मकता व शैली उस दौर के निर्माण कला की विशेषताओं को दर्शाती हुई नजर आती है। इस बुलंद दरवाजे पर कुरान की आयत भी उत्कीर्ण की हुई है। नायब सज्जादानशीन जमाल अहमद सूफी साहब के वंशजों में 22वीं पीढ़ी के हैं।
पूरी जिंदगी में महज सवा मण खाना खाया
दरगाह के सज्जादानशीन पीर अब्दुल बाकी चिश्ती सुलेमानी ने बताया कि हजरत सूफी हमीदुदीन नागौरी रहमतउल्लाह का जन्म 588 हिजरी को राजधानी देहली में हुआ था। चालीस साल की उम्र में राजस्थान तशरीफ लाए थे, सूफी साहब के दो बेटे और दो बेटियां थी। सूफी साहब का इंतकाल इस्लामिक साल के चौथे माह की 28 तारिख को अस्र और मगरिब की नमाज के दौरान हुआ था। उन्होंने बताया कि सूफी साहब ने 89 साल की उम्र में सवा मण यानी लगभग 50 किलो जौ की रोटी खाई। इसलिए दरगाह में शाकाहारी खाना जिसमें मोठ बाजरे का खिचडा, मीठे चावल, आलू के चावल, सोयाबीन के चावल, खीर पूडी ही बनाई जाती है। यहां पर इन्हीं चीजों नियाज भी दिलाई जाती है। मजार के पास ही जाल का पेड़ लगा हुआ है। इस पेड़ के पत्तों को जायरीन प्रसाद के तौर पर अपने साथ ले जाते हैं।
सुबह तीन से चार होती है खिदमत
दरगाह में सूफी साहब की खिदमत सुबह तीन बजे लेकर चार बजे तक की जाती है। इसके बाद से सामान्यजनों के इबादत शुरू हो जाती है। यहां पर दिन भर इबादत का दौर चलता रहता है। देश के विभिन्न जगहों पर यहां पर उर्स के दौरान हर वर्ष जायरीन पहुंचते हैं।
व्यवस्थाएं की है पूरी
दरगाह में आने वाले जायरीनों के लिए बेहतर इंतजामात करने के पूरे प्रयास किए गए हैं। जायरीनों के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं की गई है। उर्स के दौरान प्रयास रहेगा कि जायरीनों को कोई तकलीफ न पहुंचे
शमशेर खान, अध्यक्ष दरगाह सूफी साहब वक्फ कमेटी