scriptबैठने का स्थान नहीं, कहां करें पढ़ाई | No place to sit, where to study | Patrika News

बैठने का स्थान नहीं, कहां करें पढ़ाई

locationनागौरPublished: Jul 06, 2018 05:13:05 pm

Submitted by:

Dharmendra gaur

किराए के कमरे में संचालित हो रहे आंगनबाड़ी केन्द्र

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नागौर/लाम्बा जाटान. कस्बे में महिला एवं बाल विकास विभाग के आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों के बैठने के लिए स्थान नहीं होने से बच्चों की पढ़ाई ही नहीं हो पाती है। स्थिति तो यह है कि केन्द्र के लिए आवंटित सामान रखने की जगह नहीं होने के कारण सामान भी उसी कमरे में ही रखना पड़ रहा है। अपने भवन के अभाव में भाड़े के एक कमरे में आंगनबाड़ी संचालित किए जा रहे हैं। केन्द्र में पंजीकृत बच्चों की तुलना में स्थान छोटे साबित हो रहे हैं। जानकारी के अनुसार लाम्बा जाटान में 6 केन्द्र संचालित हैं। इनमें तीन केन्द्र के पास अपना स्वयं का भवन नहीं है। वहीं गांव में तीन केन्द्र किराए के भवनों में हैं। किराए पर भवन लेने से महज एक कमरे में ही केन्द्र संचालित किया हुआ है। क्षेत्र के कई केन्द्रों पर 30 से 40 तक की संख्या में बच्चे पंजीकृत हैं। ऐसे में पोषाहार खिलाने के लिए सभी बच्चों को एक साथ बिठाना भी संभव नहीं हो रहा है। महज एक कमरे में खेलकूद सहित अन्य गतिविधियां संचालित करना तो दूर की बात है।

कम किराए में कैसे मिले पर्याप्त स्थान
नाममात्र के किराए के भवन में आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के बच्चों के लिए सुविधाएं जुटा पाना टेढ़ी खीर बना हुआ है। गांवों में सामान्य तौर पर भवन मालिकों की ओर से एक कमरे का किराया 500 से 700 रुपए लिया जाता है। महज 700 रुपए के किराए पर सभी कमरों में भूतल पर सुविधायुक्त भवन नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में आंगनबाड़ी केन्द्रों पर सिर ढकने के लिए महज कमरे के अलावा कोई सुविधा नहीं है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि वार्ड क्षेत्र के बाशिन्दे होने से परस्पर व्यवहार से नाममात्र के किराए में उन्होंने कमरे लिए हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में तो विभाग की ओर से महज 200 रुपए मासिक किराया निर्धारित किया हुआ है। लेकिन कार्यकर्ता अपनी जेब से कोई तीन सौ तो कोई पांच सौ रुपए दे रही है, ओर सामग्री लाती है। एक कमरे के आंगनबाड़ी केन्द्र में सबसे ज्यादा परेशानी गर्मियों व बारिश के दिनों में होती है। बिजली सुविधा नहीं होने से संकरे कमरे में पोषाहार खाने वाले बच्चे पसीने से बेहाल हो जाते हैं। सामान के बीच बच्चों को एक-दूसरे से सटकर बैठना पड़ता है।

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